Karwa chauth: श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को सुनाई थी ये करवा चौथ व्रत कथा, पति की दीर्घायु के लिए आप भी पढ़ें

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 Oct, 2022 10:33 AM

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हिंदू नारियों के लिए करवा चौथ का व्रत अखंड सुहाग देने वाला माना जाता है। विवाहित स्त्रियां इस दिन अपने पति की दीर्घायु एवं स्वास्थ्य की मंगल कामना करके चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित कर अपने व्रत

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हिंदू नारियों के लिए करवा चौथ का व्रत अखंड सुहाग देने वाला माना जाता है। विवाहित स्त्रियां इस दिन अपने पति की दीर्घायु एवं स्वास्थ्य की मंगल कामना करके चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित कर अपने व्रत का समापन करती हैं। वास्तव में करवा चौथ का व्रत हिंदू संस्कृति के उस पवित्र बंधन का प्रतीक है, जो पति-पत्नी के बीच होता है। हिंदू संस्कृति में पति को परमेश्वर की संज्ञा दी गई है। करवा चौथ पति एवं पत्नी दोनों के लिए नव प्रणय, निवेदन, प्रेम, त्याग और उत्सर्ग की चेतना लेकर आता है। 

इस दिन महिलाएं पूर्ण सुहागिन वेष धारण कर वस्त्र- आभूषण पहन कर चंद्रमा से अपने अखंड सुहाग की प्रार्थना करती हैं। स्त्रियां सुहाग चिन्हों से युक्त शृंगार करके ईश्वर के समक्ष दिन भर के व्रत के उपरांत यह प्रण लेती हैं कि वे मन, वचन एवं कर्म से पति के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना रखेंगी। 

यह पर्व गृहस्थ आश्रम में विवाह की विधि से प्रवेश के समय की गई प्रतिज्ञाओं का स्त्रियों को पुन: स्मरण कराने तथा उन प्रतिज्ञाओं के पथ पर दृढ़ता से चलने की प्रेरणा प्रदान करता है। सम्मान एवं प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए नारी शक्ति सदैव सर्वस्व बलिदान के लिए तैयार रहती है।

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एक बार अर्जुन नीलगिरि पर तपस्या करने गए। द्रौपदी ने सोचा कि यहां हर समय अनेक प्रकार की विघ्न-बाधाएं आती रहती हैं। उनके शमन के लिए अर्जुन तो यहां हैं नहीं, अत: कोई उपाय करना चाहिए। यह सोचकर उन्होंने भगवान श्री कृष्ण का ध्यान किया। 
भगवान वहां उपस्थित हुए तो द्रौपदी ने अपने कष्टों के निवारण हेतु कोई उपाय बताने को कहा। इस पर श्रीकृष्ण बोले, ‘‘एक बार पार्वती जी ने भी शिव जी से यही प्रश्न किया था तो उन्होंने कहा था कि करवा चौथ का व्रत गृहस्थी में आने वाली छोटी-मोटी विघ्न-बाधाओं को दूर करने वाला है। यह पित्त प्रकोप को भी दूर करता है। फिर श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को एक कथा सुनाई :

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चीन काल में एक धर्मपरायण ब्राह्मण के सात पुत्र तथा एक पुत्री थी। बड़ी होने पर पुत्री का विवाह कर दिया गया।कार्तिक की चतुर्थी को कन्या ने करवा चौथ का व्रत रखा। सात भाइयों की लाडली बहन को चंद्रोदय से पहले ही भूख सताने लगी। उसका फूल सा चेहरा मुरझा गया। भाइयों के लिए बहन की यह वेदना असहनीय थी। अत: वे कुछ उपाय सोचने लगे।
उन्होंने बहन से चंद्रोदय से पहले ही भोजन करने को कहा, पर बहन न मानी। तब भाइयों ने स्नेहवश पीपल के वृक्ष की आड़ में प्रकाश करके कहा, ‘‘देखो ! चंद्रोदय हो गया। उठो, अर्घ्य देकर भोजन करो।’’ 

बहन उठी और चंद्रमा को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। भोजन करते ही उसका पति मर गया। वह विलाप करने लगी। दैवयोग से इन्द्राणी (शची) देवदासियों के साथ वहां से जा रही थीं। रोने की आवाज सुन वह वहां गई और उससे रोने का कारण पूछा।
ब्राह्मण कन्या ने सब हाल कह सुनाया। तब इन्द्राणी ने कहा, ‘‘तुमने करवा चौथ के व्रत में चंद्रोदय से पूर्व ही अन्न-जल ग्रहण कर लिया, इसी से तुम्हारे पति की मृत्यु हुई है। अब तुम मृत पति की सेवा करती हुई बारह महीनों तक प्रत्येक चौथ को यथाविधि व्रत करो, फिर करवा चौथ को विधिवत गौरी, शिव, गणेश, कार्तिकेय सहित चंद्रमा का पूजन करो तथा चंद्रोदय के बाद अर्घ्य देकर अन्न-जल ग्रहण करो, तो तुम्हारे पति अवश्य जीवित हो उठेंगे।’’ 

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ब्राह्मण कन्या ने अगले वर्ष 12 माह की चौथ सहित विधि पूर्वक करवा चौथ का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उसका मृत पति जीवित हो गया।  इस प्रकार यह कथा कहकर श्रीकृष्ण द्रौपदी से बोल, ‘‘यदि तुम भी श्रद्धा एवं विधि पूर्वक इस व्रत को करो तो तुम्हारे सारे दुख दूर हो जाएंगे और सुख-सौभाग्य, धन-धान्य में वृद्धि होगी।’’

फिर द्रौपदी ने श्रीकृष्ण के कथनानुसार करवा चौथ का व्रत रखा। उस व्रत के प्रभाव से महाभारत के युद्ध में कौरवों की हार तथा पांडवों की जीत हुई।

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