Edited By Niyati Bhandari,Updated: 20 Oct, 2024 06:25 AM
Karwa Chauth geet: करवाचौथ एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे विशेष रूप से सुहागन महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए मनाती हैं। करवा चौथ का व्रत सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक का व्रत है।
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Karwa Chauth geet: करवाचौथ एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे विशेष रूप से सुहागन महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए मनाती हैं। करवा चौथ का व्रत सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक का व्रत है। जो विशेष तौर पर सुहागन महिलाओं द्वारा सदा सुहागन रहने की कामना से किया जाता है। इसे करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत में महिलाएं सूर्योदय से पहले सुबह चार बजे के करीब शिव-परिवार की पूजा करके व्रत का संकल्प लेती हैं। वे नहा-धोकर सबसे पहले सासू मां के लिए बया निकालती हैं।
‘बया’ यानी एक थाली में फल, मिठाई, नारियल, कपड़े और सुहाग का सामान जैसे रिबन, चूड़ियां, मेहंदी, सिंदूर, बिंदी आदि रख कर सासू मां को दिया जाता है और उनके पांव छूकर आशीर्वाद लिया जाता है। इसके बाद ‘सरगी’ खाने का विधान है। सरगी में फल, मिठाई वगैरह सासू मां की तरफ से और लड़की के मायके की तरफ से भी भेजे जाते हैं। सरगी खाने के बाद पूरा दिन जब तक रात को चांद नहीं निकलता तब तक निर्जला रह कर औरतें व्रत रखती हैं। जब रात को चांद निकलता है तो वे अर्घ्य देकर पति के हाथों जल ग्रहण करती हैं और तब उनका व्रत पूरा होता है।
Playing karva on karvachauth करवाचौथ का करवा खेलना
करवा चौथ के दिन शाम को सभी सुहागिनें खूब सज-धज कर एक नियत स्थान पर इकट्ठी होती हैं और गोल घेरे में बैठ कर अपनी पूजा की थाली एक-दूसरे के साथ बांटती हुई करवा के गीत गाती हैं। इसी दौरान पंडित जी महिलाओं को करवाचौथ की कथा सुनाते हैं। फिर थाली बंटाते हुए ये गीत गाती हैं-
वीरा कुड़िए करवड़ा, सर्व सुहागन करवड़ा,
ए कटी न अटेरीं न, खुंब चरखड़ा फेरीं ना,
ग्वांड पैर पाईं ना, सुई च धागा फेरीं ना,
रुठड़ा मनाईं ना, सुतड़ा जगाईं ना,
बहन प्यारी वीरां, चंद चढ़े ते पानी पीना,
लै वीरां कुड़िए करवड़ा, लै सर्व सुहागिन करवड़ा।