Karwa chauth katha: आइए पढ़ें, करवा चौथ व्रत की कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 20 Oct, 2024 06:24 AM

karwa chauth katha

Karwa chauth katha: करवाचौथ का व्रत एक ऐसा पर्व है, जिसमें भारतीय नारी की अपने पति के प्रति स्नेह तथा उसकी रक्षा की कामना की झलक साफ दिखाई देती है। इस दिन हर सौभाग्यवती स्त्री एक नई दुल्हन की तरह सजी दिखाई देती है। मेहंदी और चूड़ियों का इस दिन विशेष...

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Karwa chauth katha: करवाचौथ का व्रत एक ऐसा पर्व है, जिसमें भारतीय नारी की अपने पति के प्रति स्नेह तथा उसकी रक्षा की कामना की झलक साफ दिखाई देती है। इस दिन हर सौभाग्यवती स्त्री एक नई दुल्हन की तरह सजी दिखाई देती है। मेहंदी और चूड़ियों का इस दिन विशेष महत्व है इसलिए इस दिन हर चूड़ियों की दुकान पर भारी भीड़ जमा रहती है।

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अखंड सुहाग देने वाला करवाचौथ का व्रत अन्य सभी व्रतों से कठिन है क्योंकि इस दिन महिलाएं दिनभर निर्जल रहने के बाद रात को चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही भोजन करती हैं। इस बीच दोपहर बाद करवाचौथ की पौराणिक कथा सुनती हैं जो कुछ इस प्रकार है:

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महाभारत काल में जब एक समय पांडव अर्जुन नीलगिरि पर्वत पर तप करने चले गए और काफी समय तक नहीं लौटे तो द्रौपदी चिंता में डूब गई। उसने भगवान श्री कृष्ण को याद किया तो उन्होंने तुरंत दर्शन देकर उसकी चिंता का कारण पूछा।

द्रौपदी ने कहा कि हमारे सब कष्ट दूर हों तथा पति अर्जुन की दीर्घायु हो। श्री कृष्ण ने कहा कि पार्वती ने भी शंकर जी से एक समय यही प्रश्न किया था तो शंकर जी ने उन्हें जो कथा सुनाई थी, वही सुनो :

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कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि करके चतुर्थी (करवाचौथ) को निर्जल व्रत करके यह कथा सुनी जाती है। किसी समय स्वर्ग से भी सुंदर शुक्र प्रस्थ नाम के नगर (जिसे अब दिल्ली कहा जाता है) में वेद शर्मा नामक एक विद्वान ब्राह्मण रहता था। उसके सात पुत्र और संपूर्ण लक्षणों से युक्त वीरवति नाम की एक सुंदर कन्या थी, जिसका विवाह सुदर्शन नाम के एक ब्राह्मण से किया गया। वीरवति के सभी सातों भाई विवाहित थे।

जिस दिन करवाचौथ का व्रत आया तो वीरवति ने भी अपने भौजाइयों के साथ व्रत किया। दोपहर बाद श्रद्धा भाव से कथा सुनी और फिर अर्घ्य देने के लिए चंद्रमा देखने की प्रतीक्षा करने लगी मगर इस बीच दिनभर की भूख-प्यास से वह व्याकुल हो उठी तो उसकी प्यारी भौजाइयों ने यह बात अपने पतियों से कही। भाई भी बहन की पीड़ा से द्रवित हो उठे और उन्होंने जंगल में एक वृक्ष के ऊपर आग जला कर आगे कपड़ा तान कर नकली चंद्रमा-सा दृश्य बना डाला और घर आकर बहन से कहा कि चंद्रमा निकल आया है तो बहन ने नकली चंद्रमा को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया मगर उसका व्रत नकली चंद्रमा को अर्घ्य देने से खंडित हो गया और जब वह ससुराल लौटी तो पति को गंभीर बीमार तथा बेहोश पाया और वह उसे उसी अवस्था में साल भर लिए बैठी रही।

अगले वर्ष जब इंद्रलोक से इंद्र पत्नी इंद्राणी पृथ्वी पर करवाचौथ का व्रत करने आई और वीरवति से इस दुख का कारण पूछा तो इंद्राणी ने कहा कि गत वर्ष तुम्हारा व्रत खंडित हो गया था। इस बार तू पूर्ण विधि से व्रत कर, तेरा पति ठीक हो जाएगा।

वीरवति ने पूर्ण विधि से व्रत किया तो उसका पति फिर से ठीक हो गया। श्री कृष्ण ने कहा कि द्रौपदी तुम भी इस व्रत को विधि से करो सब ठीक हो जाएगा। द्रौपदी ने ऐसा ही किया। अर्जुन ठीक से घर लौट आए। सब ठीक हुआ राज्य वापस मिला।

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एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि एक समय देवताओं तथा दैत्यों के बीच घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में देवताओं की पराजय होने लगी तो कुछ देवता ब्रह्मा जी के पास गए और विनय करके कहा कि विजय प्राप्ति के लिए कोई उपाय बताओ तो ब्रह्मा जी ने देवताओं से कहा कि यदि तुम्हारी रक्षा के लिए आपकी पत्नियां कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को पूर्ण विधि से व्रत करें और रात्रि को चंद्रोदय होने पर उसे अर्घ्य देकर भोजन करें तथा दिन में गणेश पूजा करें तो आपकी पत्नियों का सुहाग अटल रहेगा और आप सबकी दीर्घायु होगी।

यह आदेश सुनकर देव-स्त्रियों ने पूर्ण विधि से निर्जल रह कर व्रत किया। दिन में गणेश पूजा की और रात्रि को चंद्रमा उदय होने पर अर्घ्य देकर भोजनपान किया तो इस व्रत के प्रभाव से देवाओं की रक्षा तथा विजय हुई। उस समय से भी व्रत प्रचलित कहा जाता है।

कथाएं तो अनेक हैं परन्तु सभी का सार एक ही है पति की रक्षा के लिए करवाचौथ का व्रत चाहे यह व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों का ही पर्व माना गया है मगर कुंवारी कन्याएं भी यह व्रत करके गौरी पूजन करके शिव जैसे वर की कामना करती हैं।

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