Edited By Niyati Bhandari,Updated: 20 Oct, 2024 06:24 AM
Karwa chauth Katha: एक परिवार में सात भाई थे, उनकी चंद्रावती नाम की एक लाडली बहन थी। जब वह विवाह योग्य हुई तो भाइयों ने एक अच्छे परिवार में उसकी शादी कर दी। बहन ने शादी के बाद पहला करवाचौथ का व्रत रखा। जब शाम को भाई भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी...
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Karwa chauth Katha: एक परिवार में सात भाई थे, उनकी चंद्रावती नाम की एक लाडली बहन थी। जब वह विवाह योग्य हुई तो भाइयों ने एक अच्छे परिवार में उसकी शादी कर दी। बहन ने शादी के बाद पहला करवाचौथ का व्रत रखा। जब शाम को भाई भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन करने को कहा लेकिन चंद्रावती ने कहा कि जब चांद निकलेगा तो मैं उसके बाद ही भोजन करूंगी।
भाई उसे बहुत प्यार करते थे अत: उन्होंने एक उपाय सोचा। उन्होंने घर से दूर पेड़ों के पीछे जाकर आग जला कर चांद निकलने जैसा दृश्य उत्पन्न कर दिया। वे घर आए और एक भाई छलनी पकड़ कर खड़ा हो गया और बहन को पुकारने लगा कि जल्दी से आकर चांद देख लो। बहन ने चांद निकला जान कर उसे अर्घ्य दे दिया और व्रत खोल दिया। इतनें में उसके ससुराल से खबर आई कि उसके पति की तबीयत बहुत खराब है। चंद्रावती ने सोचा कि मैंने तो ऐसा कोई अपराध नहीं किया जिसका मुझे दंड मिल रहा है। सारे संसार में आज पत्नियां अपने पति की लम्बी आयु के लिए व्रत रख रही हैं पर मेरे सुहाग को क्या हुआ कि वह इतना बीमार हो गया। उसने पंडित जी को बुला कर इसका कारण पूछा तो पंडित जी ने कहा कि पूजा में अवश्य कोई विघ्न आया है। आपके पति के ठीक होने का उपाय यह है कि पूरा वर्ष कृष्ण पक्ष की चौथ को व्रत रखना शुरू करो। चंद्रावती ने वैसा ही करना शुरू किया।
चंद्रावती के पति को कांटे वाली बीमारी थी। वह पूरा वर्ष पति के शरीर से कांटे निकालती रही। जब केवल आंखों पर कांटे रह गए तो करवाचौथ का व्रत आ गया। उसने अपनी नौकरानी से कहा कि मैं करवाचौथ के व्रत का सामान लेने जा रही हूं तुम मेरे पति का ध्यान रखना। नौकरानी के मन में लालच आ गया। उसने चंद्रावती के पति की आंखों पर रह गए कांटों को निकाल दिया। होश में आते ही चंद्रावती के पति ने नौकरानी से पूछा कि चंद्रावती कहां है? तब नौकरानी ने कहा कि वह तो घूमने गई है। पति ने समझा कि इसी औरत ने एक साल तक मेरी सेवा की है। अब यही मेरी स्त्री होगी। जब चंद्रावती सामान लेकर वापस आई तो उसकी कोई बात सुने बिना ही उसके पति ने उसे घर से निकाल दिया। अगले वर्ष जब करवाचौथ का व्रत आया तो पूजा के वक्त चंद्रावती अपनी ही कहानी कहने लगी। जब उसके पति ने पूरी कहानी सुनी तो उसे सब समझ में आ गया। उसने नौकरानी को निकाल कर चंद्रावती को पुन: अपना लिया। इस प्रकार चंद्रावती के सुहाग की रक्षा हुई।
उसने मां पार्वती से प्रार्थना की हे गौरी माता, जिस तरह आपने मेरे सुहाग की रक्षा की, उसी तरह सब के सुहाग बने रहें।
पारंपरिक कथा
प्रचीन काल की बात है, इंदरप्रस्थ शहर में एक साहूकार रहता था। उसके सात पुत्र और एक पुत्री थी। पुत्री का नाम वीरा था। वीरा सातों भाईयों की एक बहन थी। सभी भाई अपनी बहन वीरा को बहुत प्यार करते थे। वीरा जब बड़ी हुई तब उसके पिता ने उसकी शादी सुदर्शन नाम के एक ब्राह्मण से कर दी। विवाह के बाद वीरा ख़ुशी-ख़ुशी अपने सुसराल रहने लगी। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत आता है। शादी के बाद वीरा का ये पहला करवाचौथ होता है और वह अपने मायके करवा चौथ का व्रत रखने के लिए आती है।
वीरा अपनी भाभियों संग करवा चौथ का व्रत रखती है। इस व्रत के दौरान चाकू चलाना, कसीदे निकालना और उधेड़ना मना होता है लेकिन वीरा व्रत रखने के बाद सारा दिन कसीदे निकालती रहती है। ऐसे ही सारा दिन निकल जाता है और रात को वीरा के भाई भी काम से घर आ जाते हैं। रात को जब सभी भोजन करने लगे तो उसके भाई वीरा को बोलते हैं कि बहन वीरा तू भी हमारे साथ खाना खा ले लेकिन वीरा अपने भाईयो को कहती है आज मेरा करवा चौथ का व्रत है और चांद को अर्घ्य देकर ही खाना खाऊंगी।
भाइयों से अपनी भूखी बहन का हाल देखा न गया। उन्होंने एक तरकीब सोची। बाहर जाकर घास-फुस इकट्ठा करके अग्नि जला दी और छलनी ले जाकर उसमें से प्रकाश दिखाते हुए उन्होनें बहन से कहा, ' बहन! बहन, चांद निकल आया है अर्घ्य देकर भोजन कर लो।'
यह सुनकर उसने अपनी भाभियों से कहा, 'आओ, तुम भी चन्द्रमा को अर्घ्य दे लो।'
भाभियों ने कहा, ये तेरा चांद है, अभी हमारा चांद नहीं आया।'
इस तरह भाइयों के कहने पर वीरा छलनी में से चांद को देखकर अर्घ्य दे देती है।
जब वह अपने भाइयों के साथ खाना खाने लगती है तो पहले कौर में बाल आ जाता है, दूसरे कौर में कंकर और तीसरे में सुसराल से फ़ोन आ जाता है। वह जल्दी आ जाये उसका पति बहुत बीमार है और वीरा रोती-रोती अपने सुसराल वापिस चली जाती है। जब वीरा सुसराल पहुंचती है तो देखती है उसका पति पूरी तरह से सील पत्थर बना होता है। वीरा ने जितनी सुईया कसीदे निकलने में लगायी होती हैं, उतनी सुईया उसके पति के सिर में छुबि होती हैं।
वीरा उन सुईयों को हर रोज निकालती। इस तरह पूरा साल बीत जाता है और अगले साल फिर करवा चौथ का व्रत आता है। वीरा फिर सभी रीति-रिवाज के साथ व्रत रखती है। वे जब अपने पति का सिर गोदी में रखकर सुईयां निकाल रही होती है तब बाहर कर्वे बेचने वाला आता है। तब वीरा अपनी नौकरानी गोली को बोलती है, 'तुम इनका ध्यान रखना।'
और खुद बाहर कर्वे खरीदने चली जाती है। इतनी देर में जितनी बची सुईया होती हैं, गोली उसके सिर से निकाल देती है और इस तरह उसके पति को होश आ जाता है। वीरा का पति जो गोली होती है, उसे रानी समझ बैठता है और रानी थी उसे गोली समझ लेता है। इस तरह जो रानी थी वो गोली बन गयी और जो गोली थी वो रानी बन गई।
राजा ठीक होकर ख़ुशी-ख़ुशी गोली के साथ रहने लगता है। एक दिन राजा को किसी काम से बाहर जाना पड़ता है तो वह गोली जो कि रानी बनी थी उसे पूछता है, 'तुम्हारे लिए क्या लांऊ।'
तो वो कहती है, ' मेरे लिए बाजार से हार-शिंगार लेकर आना।'
रानी जो गोली थी, उससे भी पूछता है,' वह कहती है, मेरे लिए काठ की गुड़िया लेकर आना।'
राजा जब बाहर जाता है, तो बाजार से एक गुड़िया और हार-शिंगार लेकर आता है और दोनों को दे देता है। इस तरह रानी जो कि गोली बनी होती है। वह हर रोज अपने कमरे में काठ की गुड़िया से बातें करती है "जो रानी थी वो गोली बन गयी-गोली थी वो रानी बन गई। "
इस तरह वह हर रोज ये बोलती रहती है। एक दिन राजा उसके कमरे के बाहर से गुजर रहा होता है तो यह सब सुन लेता है। रानी जो गोली बनी होती है उससे पूछता है, ' ये तू क्या बोलती रहती है।'
जब वह नहीं बताती तो राजा तलवार लेकर दरवाजे पर खड़ा होता है। फिर रानी जो कि गोली बनी होती वह राजा को सारी सच्चाई बता देती है। तब राजा को भी सारा कुछ याद आ जाता है। फिर राजा गोली जो कि रानी बनी होती है उसे घर से बाहर निकाल देता है। इस तरह राजा वीरा के साथ ख़ुशी-ख़ुशी सुखमय नए जीवन की शुरूआत करता है।
अन्य कथा
करवा का मतलब होता है ‘कलंकित’। करवा एक भिलनी थी। श्री गणेश महाराज सबके कष्टों के हरने वाले हैं। श्री गणेश की कृपा दृष्टि के बाद ही उस भिलनी को श्राप से मुक्ति मिल पाई थी। बताया जाता है कि करवा हर चतुर्थी को श्री गणेश महाराज की पूजा करती थी। उसने गणेश महाराज से विनिम्र प्रार्थना करते हुए कहा कि मुझे ये श्राप कैसे लगा और कैसे इससे मुक्ति मिल पाएगी।
श्री गणेश महाराज ने बतलाया कि व्रत करने के बाद अपने पति को पहले भोजन दिए बिना ही तूने भोजन कर लिया। इससे तुझे यह श्राप लगा है। इसी के चलते तेरा पति भी कुष्ठ रोग से पीड़ित है। अगर इस दोष से मुक्ति पाना चाहती है तो कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को पूजन कर व्रत रखना होगा और अपने पति का पूजन करना होगा। तभी तू इस दोष से मुक्ति पा सकती है और तुम्हारे पति भी स्वस्थ हो जाएंगे।
करवा ने श्री गणेश महाराज के द्वारा बताए तरीके से व्रत किया। इससे भगवान श्री गणेश प्रसन्न हुए और उन्होंने करवा को दोष मुक्त कर दिया। साथ ही आशीर्वाद दिया कि भविष्य में जो सुहागिन मेरी पूजा करने से पहले तुम्हारी उपासना करेगी उसके सुहाग की मैं रक्षा करुंगा। तभी से ही यह परंपरा चलती आ रही है।