Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Aug, 2024 07:22 AM
केंद्र सरकार के खिलाफ संसद में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के अविश्वास प्रस्ताव पर हुई बहस पर अपने जवाब के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कच्छतीवु टापू का जिक्र
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History of Katchatheevu Island: केंद्र सरकार के खिलाफ संसद में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के अविश्वास प्रस्ताव पर हुई बहस पर अपने जवाब के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कच्छतीवु टापू का जिक्र किया। विपक्ष के सदन की कार्रवाई से वॉकआउट के बाद उन्होंने कहा, ‘‘ये जो बाहर गए हैं न... कोई पूछे इनसे (विपक्ष) की कच्छतीवु क्या है। इतनी बड़ी बातें करते हैं न पूछिए कि कच्छतीवु कहां है। डी.एम.के. वाले, उनकी सरकार, उनके मुख्यमंत्री मुझे चिट्ठी लिखते हैं कि मोदी जी कच्छतीवु वापस ले आइए। ये कच्छतीवु है कहां। तमिलनाडु से आगे श्रीलंका से पहले एक टापू किसने किसी दूसरे देश को दे दिया था।’’
History and Geography of Kachchativu Island कच्छतीवु द्वीप का इतिहास और भूगोल
कच्छतीवु भारत के रामेश्वरम और श्रीलंका की मुख्य भूमि के बीच एक छोटा-सा द्वीप है। इस द्वीप को वापस लेने के लिए लगातार मांग उठती रहती है। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि भारत ने इस द्वीप को सरेंडर कर दिया था। आइए हम विस्तार से जानते हैं कि कच्छतीवु द्वीप का पूरा मामला क्या है। श्रीलंका के उत्तरी तट और भारत के दक्षिण-पूर्वी तट के बीच पाक जलडमरूमध्य क्षेत्र है। इस जलडमरूमध्य का नाम रॉबर्ट पाक के नाम पर रखा गया था, जो 1755 से 1763 तक मद्रास प्रांत के गवर्नर थे।
पाक जलडमरूमध्य को समुद्र नहीं कहा जा सकता। मूंगे की चट्टानों और रेतीली चट्टानों की प्रचुरता के कारण बड़े जहाज इस क्षेत्र से नहीं जा सकते। कच्छतीवु द्वीप इसी पाक जलडमरूमध्य में स्थित है। यह भारत के रामेश्वरम से 12 मील और जाफना के नेदुंडी से 10.5 मील दूर है। इसका क्षेत्रफल लगभग 285 एकड़ है। इसकी अधिकतम चौड़ाई 300 मीटर है।
सेंट एंटनी चर्च भी इसी निर्जन द्वीप पर स्थित है। हर साल फरवरी-मार्च के महीने में यहां एक हफ्ते तक पूजा-अर्चना होती है। 1983 में श्रीलंका के गृहयुद्ध के दौरान ये पूजा-अर्चना बाधित हो गई थी। ‘द गजेटियर’ के मुताबिक, 20वीं सदी की शुरुआत में रामनाथपुरम के सीनिकुप्पन पदयाची ने यहां एक मंदिर का निर्माण कराया था और रंगाची मठ के एक पुजारी इस मंदिर में पूजा करते थे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने इस द्वीप पर कब्जा कर लिया।
The island is under the control of Sri Lanka श्रीलंका के कब्जे में है टापू
कच्छतिवु बंगाल की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है। भारत और श्रीलंका के बीच इसे लेकर विवाद है। साल 1976 तक भारत इस पर दावा करता था और उस वक्त यह श्रीलंका के अधीन था। साल 1974 से 1976 की अवधि के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने श्रीलंका की तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमाव भंडारनायके के साथ चार सामुद्रिक सीमा समझौतों पर दस्तखत किए थे। उन्हें समझौतों के फलस्वरूप कच्छतीवु श्रीलंका के अधीन चला गया। लेकिन तमिलनाडु की सरकार ने इस समझौते को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था और मांग की थी कि कच्छतीवु को श्रीलंका से वापस लिया जाए। साल 1991 में तमिलनाडु विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित किया गया और कच्छतीवु को वापस भारत में शामिल किए जाने की मांग दोहराई गई।
कच्छतीवु को लेकर तमिलनाडु और केंद्र सरकार के बीच का विवाद केवल विधानसभा प्रस्तावों तक ही सीमित नहीं रहा। साल 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने कच्छतीवु को लेकर केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट तक घसीटा। उनकी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कच्छतीवु समझौते को निरस्त किए जाने की मांग की। जयललिता सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से श्रीलंका और भारत के बीच हुए उन दो समझौतों को असंवैधानिक ठहराए जाने की मांग की, जिसके तहत कच्छतीवु को तोहफे में दे दिया गया था।
What was the situation during the British अंग्रेजों के समय क्या स्थिति थी
यह दलील दी जाती रही है कि कच्छतीवु साल 1974 तक भारत का हिस्सा था और ये रामनाथपुरम के राजा की जमींदारी के तहत आता था। रामनाथपुरम के राजा को कच्छतीवु का नियंत्रण 1902 में तत्कालीन भारत सरकार से मिला था। मालगुजारी के रूप में रामनाथपुरम के राजा जो पेशकश (किराया) भरते थे, उसके हिसाब-किताब में कच्छतीवु द्वीप भी शामिल था। रामनाथपुरम के राजा ने द्वीप के चारों ओर मछली पकड़ने का अधिकार, द्वीप पर चराने का अधिकार और अन्य उद्देश्यों के लिए इसका उपयोग करने का अधिकार पट्टे पर दिया था।
इससे पहले जुलाई, 1880 में, मोह मद अब्दुल कादिर मरईकयार और मुथुचामी पिल्लई और रामनाथपुरम के जिला डिप्टी कलेक्टर एडवर्ड टर्नर के बीच एक पट्टे पर दस्तखत हुए। पट्टे के तहत डाई के निर्माण के लिए 70 गांवों और 11 द्वीपों से जड़ें इकट्ठा करने का अधिकार दिया गया। उन 11 द्वीपों में से कच्छतीवु भी एक था। इसी तरह का एक और पट्टा 1885 में भी बना। साल 1913 में रामनाथपुरम के राजा और भारत सरकार के राज्य सचिव के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इस पट्टे में कच्छतीवु का नाम भी शामिल था। दूसरे शब्दों में कहें तो भारत और श्रीलंका दोनों पर शासन करने वाली ब्रितानी हुकूमत ने कच्छतीवु को भारत के हिस्से के रूप में मान्यता दी और इसे श्रीलंका का हिस्सा नहीं माना।