केदारेश्वर ज्योतिर्लिंगः यहां जानें, इससे जुड़ी पुराणों में वर्णित कथा

Edited By Lata,Updated: 29 Jul, 2019 12:17 PM

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भगवान शिव, जिन्हें उनके भक्तगण भोलेनाथ, महादेव, महाकाल और न जान कितने नामों से जानते हैं और उनकी पूजा लिंग के रूप में भी करते हैं

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भगवान शिव, जिन्हें उनके भक्तगण भोलेनाथ, महादेव, महाकाल और न जान कितने नामों से जानते हैं और उनकी पूजा लिंग के रूप में भी करते हैं व जिन्हें लोग शिवलिंग कहते हैं। हमारे देश में ऐसे बहुत से शिवलिंग है जो मानव द्वारा स्थापित होते है तो कई स्वयंभू भी हैं। ठीक वैसे ही हमारे देश में कुल 12 ज्योतिर्लिंग हैं, जिनके दर्शन मात्र से ही व्यक्ति के सारे पाप धूल जाते हैं। जैसे कि हम पहले चार ज्योतिर्लिंगों के बारे में बता चुके हैं कि तो आज हम बात करेंगे पांचवें ज्योतिर्लिंग यानि श्री केदारेश्वर के बारे में। 
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भगवान शिव के कुछ ऐसे मंदिर है जहा साक्षात भगवान वास करते है और उनके दर्शन के लिए भक्तो का तांता लगा रहता है। भगवान शिव के इन्हीं मंदिरों में से एक मंदिर है केदारनाथ जो महादेव के 12 ज्योतिर्लिंगों में भी शामिल है। केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड में पर्वतराज हिमालय की केदार नामक चोटी पर स्थित है और समुन्द्र तट से 3583 मीटर की ऊंचाई पर है। ऋषिकेश से इसकी दूरी लगभग 223 किलोमीटर है। पुराणों एवं शास्त्रों में श्री केदारेश्वर-ज्योतिर्लिंग की महिमा का वर्णन बारंबार किया गया है। 

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इस पुण्यफलदायी ज्योतिर्लिंग की स्थापना के विषय में पुराणों में कथा वर्णित है कि हिमालय के केदार नामक अत्यंत शोभाशाली श्रृंग पर महातपस्वी श्रीनर और नारायण ने बहुत वर्षों तक भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बड़ी कठिन तपस्या की। कई हजार वर्षों तक वे निराहार रहकर एक पैर पर खड़े होकर शिव नाम का जप करते रहे। इस तपस्या से सारे लोकों में उनकी चर्चा होने लगी। देवता, ऋषि-मुनि, यक्ष, गन्धर्व सभी उनकी साधना और संयम की प्रशंसा करने लगे। चराचर के पितामह ब्रह्माजी और सबका पालन-पोषण करने वाले भगवान विष्णु भी महापस्वी नर-नारायण के तप की प्रशंसा करने लगे, अंत में भगवान शंकरजी भी उनकी उस कठिन साधना से प्रसन्न हो उठे। उन्होंने प्रत्यक्ष प्रकट होकर उन दोनों ऋषियों को दर्शन दिए। 

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नर और नारायण ने भोलेनाथ के दर्शन से भाव-विह्वल और आनंद-विभोर होकर बहुत प्रकार की पवित्र स्तुतियों और मंत्रो से उनकी पूजा-अर्चना की। शिवजी ने अत्यंत प्रसन्न होकर उनसे वर मांगने को कहा। भगवान शिव की यह बात सुनकर दोनों ऋषियों ने उनसे कहा, 'देवाधिदेव महादेव! यदि आप हम पर प्रसन्न हैं तो भक्तों के कल्याण के लिए आप सदा के लिए अपने स्वरूप को यहां स्थापित करने की कृपा करें। आपके यहां निवास करने से यह स्थान सभी प्रकार से अत्यंत पवित्र हो उठेगा। यहां आपका दर्शन-पूजन करने वाले मनष्यों को आपकी अविनाशिनी भक्ति प्राप्त हुआ करेगी। प्रभो! आप मनुष्यों के कल्याण और उनके उद्धार के लिए अपने स्वरूप को यहां स्थापित करने की हमारी प्रार्थना अवश्य ही स्वीकार करें।'
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उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान शिव ने ज्योतिर्लिंग के रूप में वहां वास करना स्वीकार किया। केदार नामक हिमालय-श्रृंग पर स्थित होने के कारण इस ज्योतिर्लिंग को श्री केदारेश्वर-ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है और आज के समय में लोग इसे केदारनाथ के नाम से भी जानते हैं।  भगवान शिव से वर मांगते हुए नर और नारायण ने इस ज्योतिर्लिंग और इस पवित्र स्थान के विषय में जो कुछ कहा है, वह सत्य है। इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन-पूजन तथा यहां स्नान करने से भक्तों को लौकिक फलों की प्राप्ति होने के साथ-साथ शिवभक्ति की प्राप्ति भी हो जाती है। 

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