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Keshavraya patan mandir: केशवराय पाटन जहां केशव के चरण छूने के बाद यूटर्न ले लेती है चंबल नदी !

Edited By Sarita Thapa,Updated: 09 Feb, 2025 12:01 PM

keshavraya patan mandir

Keshavraya patan mandir: प्राचीन समय से ही धर्म-आध्यात्म की संस्कृति देश में रची-बसी हुई है। आज भी यह व्यक्ति के जीवन में गहरे तक समा कर जीवनशैली का एक हिस्सा बनी हुई है। विभिन्न धार्मिक परम्पराओं से व्यक्ति का जीवन अनुशासित बना रहता है।

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Keshavraya patan mandir: प्राचीन समय से ही धर्म-आध्यात्म की संस्कृति देश में रची-बसी हुई है। आज भी यह व्यक्ति के जीवन में गहरे तक समा कर जीवनशैली का एक हिस्सा बनी हुई है। विभिन्न धार्मिक परम्पराओं से व्यक्ति का जीवन अनुशासित बना रहता है। धर्म को व्यक्ति के जीवन में उतारने के लिए हमारे ऋषि-मुनियों व धर्मगुरुओं की प्रेरणा से मंदिर स्थापना की परम्परा विकसित हुई। इससे पहाड़ी व वन क्षेत्र तथा नदी किनारे मंदिर स्थापित होने लगे। आज भी समाज की सहज सुविधा के लिए नगर में विभिन्न स्थानों पर मंदिर स्थापित होते जा रहे हैं। मंदिरों एवं समाज में होने वाले विभिन्न धार्मिक आयोजनों जैसे कथा-कीर्तन, प्रवचन-भजन आदि के माध्यम से व्यक्ति के जीवन में धर्म-आध्यात्म बढ़ा।

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जीवन में सुख-शांति व अनुशासन आने लगे। आज भी समाज के लोग अपने रीति-रिवाजों व परम्पराओं के अनुसार धर्म की राह पर मर्यादित रहकर अपना जीवन संचालित कर रहे हैं। मंदिर धर्म-आध्यात्म के प्रमुख केंद्र रहे हैं। प्राचीन समय में राजा-महाराजाओं ने भी समाज हित में मंदिरों का निर्माण करवाया। जिस राज्य में सुख-शांति रही, वहां मंदिर निर्माण भी आकर्षक कलात्मक शिल्प शैली से निर्मित हुए हैं।

बूंदी जिले की धार्मिक नगरी केशवराय पाटन में भी एक ऐसा ही भव्य कलात्मक स्थापत्य कला का आकर्षण भगवान केशव (विष्णु) का मंदिर है। चंबल नदी के किनारे बने इस मंदिर में राजा राव शत्रुशल्य ने केशव भगवान की पद्मासन प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा करवाई।

मंदिर का निर्माण जिस शिल्प शैली, मूर्तिकला व बारीक नक्काशी से हुआ, वह स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। मन्दिर निर्माण नदी तट से बहुत अधिक ऊंचाई पर किया गया है, ताकि वह वर्षा के दिनों में आए नदी के तेज बहाव से सुरक्षित रहे। मंदिर के चारों और बड़ा-सा प्लेटफार्म बना हुआ है। कार्तिक माह का भारतीय धर्म-संस्कृति में सूर्योदय से पूर्व स्नान करने तथा तप, ज्ञान, ध्यान व दान करने का बड़ा महव है। इसी धार्मिक सोच के चलते श्रद्धालु बड़ी संख्या में नदी-सरोवर में स्नान कर देव दर्शन करते हैं। इसी माह की अक्षय नवमी पर श्रद्धालुओं को केशवराय पाटन में पंच कोसी परिक्रमा, देव प्रबोधिनी एकादशी, व कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान करने से जो फल मिलता है, उसे दान से भी बड़ा माना गया है।

केशवराय पाटन में चंबल नदी पूर्वामुखी है, अत: यहां स्नान करना गंगा स्नान के समान ही पवित्र माना गया है। पूर्णिमा के दिन यहां हजारों श्रद्धालुु आसपास के अन्य स्थानों से रंग-बिरंगे परिधानों में केशव के दर्शन कर धन्य हो जाते हैं। केशवराय पाटन कोटा से 20 कि.मी. तथा बूंदी से 45 कि.मी. दूर स्थित है। 

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पट्टन नाम से जाना जाता था
केशवराय पाटन के बारे में कहा जाता है कि इसे पूर्व में पट्टन नाम से जाना जाता था। यह जंबू आरण्य क्षेत्र के रूप में था, जो तप साधना की स्थली रहा। यहां भगवान परशुराम तथा राजा रंतिदेव ने भी तप साधना की थी। यह भी माना जाता है कि पांडवों ने एकांतवास के दौरान कुछ समय इस क्षेत्र में भी निवास किया था।

धार्मिक सौहार्द वाली मंदिरों की नगरी केशवराय पाटन को अपने धार्मिक व सांस्कृतिक वातावरण और चम्बल नदी में स्नान करने की पवित्रता की परम्परा के चलते ही हाड़ौती का पुष्कर कहा जाता है। बूंदी, राजस्थान के पर्यटन क्षेत्र में अपनी विशेष पहचान रखता है। हर वर्ष यहां हजारों विदेशी सैलानी आते हैं। कार्तिक माह में लगने वाले पूर्णिमा के मेले के समय कई सैलानी यहां की धार्मिक परम्परा व लोगों की आस्था को देख रोमांचित हो जाते हैं। वे चम्बल नदी में नौका विहार का आनंद लेते हैं। सचमुच पूर्वामुखी होकर यहां बह रही चम्बल नदी भी हजारों श्रद्धालुओं के स्नान करने पर गौरवान्वित होती है और वर्षों से भगवान केशव के चरणों में प्रफुल्लित हो, कलकल बहकर अपना धर्म निभा रही है।

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