Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Feb, 2023 08:05 AM
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राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम का मंदिर भारत में सर्वाधिक प्रसिद्ध कृष्ण मंदिरों में एक है। कहा जाता है कि श्याम बाबा से भक्त जो भी मांगता है
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Khatu Shyam Mela 2023: राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम का मंदिर भारत में सर्वाधिक प्रसिद्ध कृष्ण मंदिरों में एक है। कहा जाता है कि श्याम बाबा से भक्त जो भी मांगता है, वह उन्हें लाखों-करोड़ों बार देते हैं। यही वजह है कि खाटू श्याम को लखदातार के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार खाटू श्याम को कलियुग में श्रीकृष्ण का अवतार माना जाता है। बाबा खाटू का संबंध महाभारत काल से है। वह पांडुपुत्र भीम के पोते थे।
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उससे जुड़ी कथा है कि वनवास के दौरान जब पांडव अपनी जान बचाते हुए इधर-उधर घूम रहे थे, तब भीम का सामना हिडिम्बा से हुआ। हिडिम्बा ने भीम से एक पुत्र को जन्म दिया, जिसे घटोत्कच नाम दिया गया। उनका पुत्र था बर्बरीक। जब कौरव और पांडवों के बीच युद्ध होना था, तब बर्बरीक ने युद्ध देखने का निर्णय लिया।
श्रीकृष्ण ने जब उनसे पूछा कि युद्ध में वह किसकी तरफ हैं, तब उन्होंने कहा कि जो पक्ष हारेगा वह उसकी तरफ से लड़ेंगे। श्रीकृष्ण तो युद्ध का परिणाम जानते थे, उन्हें डर था कि ये कहीं पांडवों के लिए उल्टा न पड़ जाए इसलिए श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को रोकने के लिए दान की मांग की और दान में उनसे शीश मांग लिया।
बर्बरीक ने भी बिना समय गंवाए उनको शीश दे दिया, लेकिन आखिर तक अपनी आंखों से युद्ध को देखने की इच्छा जाहिर की।
श्रीकृष्ण ने इच्छा स्वीकार करते हुए उनका सिर युद्ध वाली जगह पर एक पहाड़ी पर रख दिया। युद्ध के बाद पांडव लड़ने लगे कि जीत का श्रेय किसको जाता है, तब बर्बरीक ने कहा कि श्रीकृष्ण की वजह से उन्हें जीत मिली है।
श्रीकृष्ण उनके इस बलिदान से काफी खुश हुए और कलियुग में उन्हें श्याम के नाम से पूजे जाने का वरदान दे दिया। कहा जाता है कि कलियुग की शुरूआत में राजस्थान के खाटू गांव में उनका सिर पाया गया था। ये अद्भुत घटना तब घटी जब वहां खड़ी गाय के थन से अपने आप दूध बहने लगा। इस चमत्कारिक जगह को खोदा गया तो यहां बर्बरीक का सिर मिला। लोगों के बीच यह दुविधा शुरू हो गई कि इस सिर का क्या किया जाए।
बाद में उन्होंने सर्वसम्मति से उसे एक पुजारी को सौंपने का फैसला किया। इसी दौरान वहां के तत्कालीन शासक रूप सिंह चौहान को सपने में बाबा श्याम ने दर्शन दिए और खाटू में मंदिर बनवाने को कहा।
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उन्होंने इसी जगह पर मंदिर का निर्माण शुरू करवाया और कार्तिक माह की एकादशी को मंदिर में शीश सुशोभित किया। यह दिन आज भी खाटू श्याम के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। कहते हैं कि स्वयं श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के शीश को रूपवती नदी को अर्पित किया था।
कालांतर में उनका यह शीश राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू गांव की धरती में दबा पाया गया इसलिए उनका नाम खाटू श्याम पड़ा। कुछ किंवदंतियों के अनुसार शासक रूप सिंह चौहान की रानी नर्मदा कंवर ने खाटू श्याम को स्वप्न में देखा था। तत्पश्चात निर्धारित स्थल पर काले पत्थर में उनकी प्रतिमा प्राप्त हुई थी। वर्तमान में मूल मंदिर के भीतर इसी प्रतिमा की पूजा की जाती है। खाटू श्याम की यह प्रतिमा एक क्षत्रिय योद्धा के रूप में दर्शनीय है। उनकी बड़ी-बड़ी मूंछें हैं तथा मुख पर वीर रस के भाव हैं। उनके चक्षु खुले हुए तथा चौकस प्रतीत होते हैं। उनके कानों में मछली के आकार की बालियां हैं। खाटू श्याम खाटू गांव के ग्राम देवता ही नहीं, अपितु राजपूत चौहान परिवारों के कुलदेवता भी हैं।
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1027 ई. में रूप सिंह चौहान द्वारा बनाए गए बाबा श्याम मंदिर को एक दानवीर भक्त द्वारा मॉडिफाई करवाया गया और 1720 ई. में दीवान अभय सिंह ने इसका पुनर्निर्माण कराया। इसमें पत्थरों और संगमरमर का उपयोग किया गया। इस प्रकार मूर्ति को मंदिर के मुख्य गर्भगृह में स्थापित किया गया। मंदिर का द्वार सोने की पत्तियों से सुशोभित है। भक्तों की मान्यता रही है कि बाबा से अगर कोई वस्तु सच्चे दिल से मांगी जाती है तो वह देते हैं और उन्होंने लाखों-करोड़ों लोगों को तारा है, इसलिए उन्हें लखदातार के नाम से भी जाना जाता है। चूंकि बाबा ने हारने वाले पक्ष का साथ देने का प्रण लिया था, इसीलिए उन्हें हारे का सहारा भी कहा जाता है।
खाटू में हर साल बाबा श्याम का फाल्गुनी मेला भरता है, जो होली तक चलता है और इसमें देशभर से लोग ध्वजपताकाएं लिए पैदल आते हैं। इस बार यह लक्खी मेला 22 फरवरी से शुरू हो गया है।
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