Khudiram Bose Death Anniversary: हाथ में श्रीमद्‍भगवद्‍गीता लेकर हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर चढ़कर रचा इतिहास

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 11 Aug, 2023 08:38 AM

khudiram bose death anniversary

खुदीराम बोस देश की स्वतंत्रता के संघर्ष के इतिहास में संभवत: सबसे कम उम्र के ज्वलंत तथा युवा क्रांतिकारी देशभक्त थे। बंगाल के विभाजन के बाद दुखी होकर

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Khudiram Bose Death Anniversary: खुदीराम बोस देश की स्वतंत्रता के संघर्ष के इतिहास में संभवत: सबसे कम उम्र के ज्वलंत तथा युवा क्रांतिकारी देशभक्त थे। बंगाल के विभाजन के बाद दुखी होकर उन्होंने स्वतंत्रता संघर्ष में क्रांतिकारी गतिविधियों से एक मशाल जलाई। आमतौर पर 18 साल के किसी युवक के भीतर देश और लोगों की तकलीफों और जरूरतों की समझ कम ही होती है, वहीं उन्होंने देश पर अपनी जान न्योछावर कर दी।

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जिस उम्र में कोई बच्चा खेलने-कूदने तथा पढ़ने में खुद को झोंक देता है, उस उम्र में भी खुदीराम बोस यह समझते थे कि देश का गुलाम होना क्या होता है और कैसे या किस रास्ते से देश को इस हालात से बाहर लाया जा सकता है। यहीं से शुरू हुए सफर ने ब्रिटिश राज के खिलाफ क्रांतिकारी आंदोलन की ऐसी नींव रखी कि आखिरकार अंग्रेजों को इस देश पर जमे अपने कब्जे को छोड़ कर जाना ही पड़ा।

बालक खुदीराम के मन में देश को आजाद कराने की ऐसी लगन लगी कि 9वीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और स्वदेशी आन्दोलन में कूद पड़े। इस नौजवान ने अत्याचारी सत्ता चलाने वाले ब्रिटिश साम्राज्य को ध्वस्त करने के संकल्प में अलौकिक धैर्य का परिचय देते हुए पहला बम फेंका और हाथ में श्रीमद्‍भगवद्‍गीता लेकर हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर चढ़कर इतिहास रच दिया।

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बंगाल के मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में त्रैलोक्य नाथ बोस तथा माता लक्ष्मीप्रिया देवी के घर 3 दिसम्बर, 1889 को उनका जन्म हुआ था लेकिन बहुत कम उम्र में उनके सिर से माता-पिता का साया उठ गया। उनकी बड़ी बहन ने माता-पिता की भूमिका निभाई। 1905 में बंगाल विभाजन के बाद विरोध करने वालों को कलकत्ता के मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड ने क्रूर दंड दिया। इसके इनाम स्वरूप उसे पदोन्नति देकर मुजफ्फरपुर में सत्र न्यायाधीश बनाया गया। क्रांतिकारियों ने उसे मारने का निश्चय किया। इस कार्य हेतु खुदीराम तथा प्रफुल्ल कुमार चाकी का चयन किया गया।  

30 अप्रैल, 1908 को इन्होंने किंग्सफोर्ड के बंगले के बाहर निकली घोड़ागाड़ी बम फेंका परन्तु उस दिन दैवयोग से उसमें किंग्सफोर्ड नहीं था, बल्कि दो यूरोपीय स्त्रियों मिसेज कैनेडी और उनकी बेटी को अपने प्राण गंवाने पड़े। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। अदालत में उनके निडर उत्तरों से अंग्रेज जज हैरान रह गए। उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई और 11 अगस्त, 1908 को फांसी दे दी।

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फांसी के समय उनकी उम्र 18 साल 8 महीने 8 दिन थी। वह इतने लोकप्रिय हुए कि बंगाल के जुलाहे एक खास किस्म की धोती बुनने लगे और नौजवान ऐसी धोती पहनने लगे, जिनकी किनारी पर खुदीराम लिखा होता था। 

 

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