Khudiram Bose Death Anniversary: सबसे कम उम्र के स्वतंत्रता सेनानी खुदीराम बोस, जिनके कारनामों से हिल गई अंग्रेजों की नींव

Edited By Prachi Sharma,Updated: 11 Aug, 2024 09:18 AM

khudiram bose death anniversary

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के आरंभिक चरण में कई क्रांतिकारी ऐसे थे, जिन्होंने ब्रिटिश राज के विरुद्ध आवाज उठाई और अपना जीवन आजादी के संघर्ष में देश

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Khudiram Bose Death Anniversary: भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के आरंभिक चरण में कई क्रांतिकारी ऐसे थे, जिन्होंने ब्रिटिश राज के विरुद्ध आवाज उठाई और अपना जीवन आजादी के संघर्ष में देश के नाम कर दिया।

बालक खुदीराम बोस भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष के इतिहास में संभवत: सबसे कम उम्र के क्रान्तिकारी देशभक्त थे। बंगाल के विभाजन के बाद दुखी होकर खुदीराम बोस ने स्वतंत्रता के संघर्ष में अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों से एक मशाल जलाई।

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खुदीराम बोस ने जिस उम्र में इन तकलीफों के खात्मे के खिलाफ आवाज बुलंद की, वह मिसाल है, जिसका वर्णन इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।
इससे ज्यादा हैरान करने वाली बात और क्या हो सकती है कि जिस उम्र में कोई बच्चा खेलने-कूदने और पढ़ने में खुद को झोंक देता है, उस उम्र में खुदीराम बोस यह समझते थे कि देश का गुलाम होना क्या होता है और कैसे या किस रास्ते से देश को इस हालात से बाहर लाया जा सकता है। यहीं से शुरू हुए सफर ने ब्रिटिश राज के खिलाफ क्रांतिकारी आंदोलन की ऐसी नींव रखी कि आखिरकार अंग्रेजों को इस देश पर जमाए अपने कब्जे को छोड़ कर जाना ही पड़ा।

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बंगाल के मिदनापुर जिले के  बहुवैनी  गांव में त्रैलोक्य नाथ बोस के घर 3 दिसम्बर, 1889 को माता लक्ष्मीप्रिया देवी की कोख से खुदीराम बोस का जन्म हुआ था, लेकिन बहुत ही कम उम्र में उनके सिर से माता-पिता का साया उठ गया।

माता-पिता के निधन के बाद बड़ी बहन ने माता-पिता की भूमिका निभाई और खुदीराम का लालन-पालन किया। बालक खुदीराम के मन में देश को आजाद कराने की ऐसी लगन लगी कि नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और स्वदेशी आन्दोलन में कूद पड़े। छात्र जीवन से ही ऐसी लगन मन में लिए इस नौजवान ने भारत पर अत्याचारी सत्ता चलाने वाले ब्रिटिश साम्राज्य को ध्वस्त करने के संकल्प में अलौकिक धैर्य का परिचय देते हुए पहला बम फैंका और मात्र 19वें वर्ष में हाथ में भगवद गीता लेकर हंसते-हंसते फांसी के फन्दे पर चढ़कर इतिहास रच दिया।

फांसी के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गए कि बंगाल के जुलाहे एक खास किस्म की धोती बुनने लगे और नौजवान ऐसी धोती पहनने लगे, जिनकी किनारी पर खुदीराम लिखा होता था। बंगाल के राष्ट्रवादियों के लिए यह वीर शहीद और अनुकरणीय हो गया। कई दिन तक सभी स्कूल-कालेज बन्द रहे। खुदीराम बोस की पुण्यतिथि पर उन से प्रेरणा लेकर देश को मजबूत और संगठित करने का प्रण लेना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि है।

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