ऋषियों की हड्डियों से बना है ये पर्वत, जानिए इसका रहस्य

Edited By Jyoti,Updated: 29 Jan, 2019 04:46 PM

kishkindha rishimuk mountain story

हिंदू धर्म में ऐसे कईं रहस्यमयी जगहों के बारे में बताया गया है जिनका निर्माण कुछ अलग ही ढंग से किया गया है।

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हिंदू धर्म में ऐसे कईं रहस्यमयी जगहों के बारे में बताया गया है जिनका निर्माण कुछ अलग ही ढंग से किया गया है। लेकिन आज जिस जगह के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जिसके बारे में सुनकर आप शायद हैरान हो जाएं और यकीन भी न करें। तो आइए बताते हैं आपको इस जगह के बारे में-
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हम बात कर रहे हैं रामायण काल के एक प्रसिद्ध पर्वत की। बता दें कि इस पर्वत का रामायण में कई बार जिक्र किया गया है। इसका नाम ऋष्यमूक पर्वत है। कहे हैं कि पर्वत के इस नाम से संबंधित एख रोचन कथा का वर्णन मिलता है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब रावण का अत्याचार बहुत बढ़ गया था बहुत से  ऋषि उससे डरकर एक साथ एक पर्वत पर जाकर रहने लगे। कहते हैं ये भी ऋषि यहां मौन होकर रावण का विरोध कर रहे थे। बता दें कि रामायण में किष्किंधा के पास जिस ऋष्यमूक पर्वत की बात कही गई है वह आज भी उसी नाम से तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित है। जब रावण विश्व विजय प्राप्त करने के लिए इस पर्वत के समीप से गुज़रा तो उसने बहुत से ऋषियों को एक साथ देखा तो उसने उनके इक्टठे होने का कारण पूछा तो राक्षसों ने उसे बताया महाराज आपके द्वारा सताए हुए ऋषि मूक यानि मौन होकर यहां आपका विरोध कर रहे हैं।
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ये सुनकर रावण को क्रोध आ गया और उसने एक-एक करके सारे ऋषियों को मार डाला। कहा जाता है कि उन्हीं के अस्थि अवशेषों से यहां पहाड़ बन गया, तभी से इस पर्वत को ऋष्यमूक पर्वत के नाम से जाना जाने लगा। बता दें पौराणिक ग्रंथों में इससे जुड़ी एक जानकारी मिलती है। रामायण के अनुसार ऋष्यमूक पर्वत में ऋषि मतंग का आश्रम था। बालि ने दुंदुभि असुर का वध करके दोनों हाथों से उनका मृत शरीर एक ही झटके में एक योजन दूर फेंक दिया था। हवा में उड़ते हुए मृत दुंदुभि के मुंह से रक्तस्राव हो रहा था जिसकी कुछ बूंदें मतंग ऋषि के आश्रम पर भी पड़ गई थी। मतंग यह जानने के लिए कि यह किस ने किया है, अपने आश्रम से बाहर निकले। उन्होंने अपने दिव्य तप से सारा हाल जान लिया और जब उन्हें पता चला कि ये बालि ने किया है तो उन्होंने उसे शाप दे डाला कि अगर वह कभी भी ऋष्यमूक पर्वत के एक योजन के पास भी आएगा तो अपने प्राणों खो बैठेगा। कहते हैं इस बात के बारे में बालि के छोटे भाई सुग्रीव को पता था। इसी कारण से जब बालि ने सुग्रीव को देश-निकाला दिया तो उसने बालि से बचने के लिए अपने अनुयायियों के साथ ऋष्यमूक पर्वत में जाकर शरण ली।
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