जानिए, हिंदू धर्म में होने वाले 16 संस्कारों का महत्व

Edited By Lata,Updated: 03 Dec, 2019 12:08 PM

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हमारे हिंदू धर्म में संस्कारों का बड़ा महत्व है। जन्म से लेकर मरण तक बहुत सारे ऐसे संस्कार होते हैं

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
हमारे हिंदू धर्म में संस्कारों का बड़ा महत्व है। जन्म से लेकर मरण तक बहुत सारे ऐसे संस्कार होते हैं जो पूरे करने अनिवार्य होते हैं। ये कुल 16 प्रकार के होते हैं और सबका अपना अलग महत्व होता है। कुछ संस्कार जन्म से पहले होते हैं, कुछ जन्म के बाद और कुछ मरने पर ही पूर्ण किए जाते हैं। बहुत कम लोग 16 संस्कारों के बारे में जानते होते हैं। आज हम आपको इन्हीं के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं।  

PunjabKesari, गर्भाधान

गर्भाधान
शास्त्रों के अनुसार मनचाही संतान के लिए गर्भधारण संस्कार किया जाता है।

पुंसवन
गर्भधारण के दो-तीन महीने बाद किया जाने वाला संस्कार पुंसवन संस्कार कहलाता है। गर्भ में पल रहे शिशु की सुरक्षा के लिए यह संस्कार किया जाता है।

सीमन्तोन्नयन 
यह संस्कार गर्भ के छठे या आठवें महीने में किया जाता है। यह संस्कार गर्भ की शुद्धि के लिए किया जाता है, ताकि बच्चा स्वास्थ्य रहे।

जातकर्म 
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार शिशु का जन्म होते ही जातकर्म संस्कार करने का विधान है।
 
PunjabKesari, नामकरण संस्कार

नामकरण 
जन्म के बाद 11वें या 16वें दिन नामकरण संस्कार किया जाता है। ब्राह्मण द्वारा ज्योतिषय आधार पर बच्चे का नाम रखा जाता है। 

निष्क्रमण 
बच्चे के पैदा होने के चौथे या छठे महीने में ये संस्कार किया जाता है। सूर्य तथा चंद्रमा आदि देवताओं की पूजा कर शिशु को उनके दर्शन कराना इस संस्कार की मुख्य प्रक्रिया होती है। 

अन्नप्राशन 
ये बाते तो सब जानते ही हैं कि जन्म के 6 महीने बाद बच्चे को अन्न खिलाया जाता है। इस संस्कार को अन्नप्राशन संस्कार कहा जाता है। पहली बार बच्चे को अन्न से बनी कोई मीठी चीज़ खिलाई जाती है।

मुंडन 
शिशु की उम्र के पहले वर्ष के अंत में या तीसरे, पांचवें या सातवें वर्ष के पूर्ण होने पर बच्चे के बाल उतारे जाते हैं। इस क्रिया को मुंडन संस्कार कहा जाता है।
PunjabKesari, कर्णवेधन 

कर्णवेधन 
इस परंपरा के अंतर्गत शिशु के कान छेदें जाते हैं। इसलिए इसे कर्णवेधन संस्कार कहा जाता है। 

उपनयन 
इस संस्कार को यज्ञोपवित संस्कार भी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार इस संस्कार के द्वारा ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य का दूसरा जन्म होता है। विधिवत बच्चे को जनेऊ धारण करना इस संस्कार का मुख्य उद्देश्य है।

विद्यारंभ
इस संस्कार के अंतर्गत शिक्षा प्रारंभ की जाती है। इस संस्कार का मूल उद्देश्य ज्ञान प्राप्त करना है।

केशांत 
पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद गुरुकुल में ही केशांत संस्कार किया जाता है।

समावर्तन 
समावर्तन का अर्थ है फिर से लौटना। पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद बच्चा गुरु की आज्ञा से अपने घर लौटता है। इसीलिए इसे समावर्तन संस्कार कहा जाता है। 

विवाह संस्कार
सनातन धर्म में विवाह को जन्म-जन्मांतर का बंधन माना गया है। विवाह का मतलब है पुरुष द्वारा स्त्री को विशेष रूप से अपने घर ले जाना। विवाह के द्वारा सृष्टि के विकास में योगदान दिया जाता है। इसी से व्यक्ति पितृ ऋण से मुक्त होता है।
PunjabKesari, विवाह संस्कार

विवाह अग्नि संस्कार
विवाह संस्कार में होम आदि क्रियाएं जिस अग्नि में की जाती हैं, उसे विवाह के बाद वर-वधू अपने घर में लाकर किसी पवित्र स्थान पर स्थापित करते हैं और प्रतिदिन अपने कुल की परंपरा के अनुसार सुबह-शाम हवन करते हैं।

अंत्येष्टि 
हिंदू धर्म शास्त्रों की मान्यता के अनुसार अंत्येष्टि क्रिया के बिना मृतक की आत्मा को शांति नहीं मिलती। प्रत्येक मनुष्य के लिये जन्म और मृत्यु का संस्कार ऋण स्वरूप माना गया है।

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