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परिक्रमा के बाद सूर्यकुंड में करना पड़ता है स्नान, जानिए कोकिला वन से जुड़ी जानकारी

Edited By Jyoti,Updated: 19 Dec, 2021 05:23 PM

kokilavan shani mandir

कृष्ण की जन्म भूमि कहे जाने वाले मथुरा में शनिदेव की आराधना होती है। आपको बता दें कि मथुरा के कोसीकलां गांव के पास शनिदेव का एक सिद्ध धाम स्थापित है। कहा जाता है कि यहां पर

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मथुरा को श्री कृष्ण कीज जन्मभूमि होने के कारण इन्हीं के नाम से जाना जाता है। यहां पर आज भी ऐसी कई जगहेें देखने को मिलती है जो यहां पर श्री कृष्ण के बाल्य काल के बीतने का प्रमाण देते हैँ। देशभर से नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग मथुरा वृंदावन में मौजूद श्री कृष्ण के मंदिर के दर्शन करने आते हैं और इनकी भक्ति में लीन होते हुए दिखाई देते हैं। परंतु क्या आप जानते हैं मथुरा में केवल श्री कृष्ण से जुड़े प्राचीन मंदिर ही नहीं, बल्कि शनि देव से जुड़ा भी एक धार्मिक स्थल है। जी हां, कृष्ण की जन्म भूमि कहे जाने वाले मथुरा में शनिदेव की आराधना होती है। बता दें कि मथुरा के कोसीकलां गांव के पास शनिदेव का एक सिद्ध धाम स्थापित है। कहा जाता है कि यहां पर शनिदेव के परिक्रमा करने से सारे कष्ट दूर होते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार यहां पर भगवान कृष्ण ने न्यायधीश कहे जाने वाले शनिदेव को कोयल बनकर दर्शन दिए थे। और वरदान दिए थे कि जो भी व्यक्ति कोकिलावन का श्रद्धा और भक्ति के साथ परिक्रमा करेगा, उसके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे।

मान्यताओं के अनुसार शनि महाराज भगवान श्री कृष्ण के भक्त माने जाते हैं। मान्यता है कि कृष्ण के दर्शनों के लिए इस ही स्थान पर शनि महाराज ने कठोर तपस्या की। जिसके बाद शनि की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान श्री कृष्ण ने इसी वन में कोयल के रूप में शनि महाराज को दर्शन दिए थे।. इसलिए ये स्थान कोकिला वन के नाम से जाना जाता है।

बता दें कि कोकिला वन तीर्थस्थल मथुरा शहर के नंदगाँव में स्थित है। यहां शनिदेव का प्राचीन मंदिर बना हुआ है। माना जाता है कि द्वापरयुग में शनिदेव अपने आराध्य भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप के दर्शन करने के लिए नंदगांव आए थे। शनि को नंद बाबा ने रोक दिया, क्यों्कि वे उनकी वक्र दृष्टिद से भयभीत थे। तब दुखी शनि को सांत्ववना देने के लिए कृष्णद ने संदेश दिया कि वे नंद गांव के निकट वन में उनकी तपस्या  करें, वे वहीं दर्शन देने के लिए प्रकट होंगे। तब शनि देव ने इस स्थािन पर तप किया। उसके बाद भगवान श्री कृष्णे ने कोयल रूप में उन्हेंए दर्शन दिया। उसके बाद भगवान श्री कृष्ण की आज्ञा से वे कोकिलावन धाम में ही रहने लगे।  

तब से ही शनिदेव के बाईं ओर कृष्णब, राधा जी के साथ विराजमान हैं। भक्तगण यहां किसी प्रकार की परेशानी लेकर आते हैं तो शनिदेव उनकी परेशानी दूर कर देते हैं। और सभी कष्ट हर लेते हैं। माना जाता है कि यहां आने वाले सभी लोगों की मनोकामना पूर्ण होती है। इसी उम्मीद के साथ यहां शनिवार के दिन दूर-दूर से सैकड़ों भक्तगण अपनी फरियाद लेकर आते हैं और ख़ुशियों से अपनी झोली भरकर जाते हैं। शनिवार के दिन यहां भारी भीड़ होती है। देश-विदेश से कृष्ण दर्शन को मथुरा आने वाले हजारों श्रद्धालु यहां आकर शनिदेव के दर्शन करते हैं, फिर कोकिला वन धाम की सवा कोसीय परिक्रमा करते हैं। उसके बाद सूर्यकुंड में स्नान कर शनि देव की प्रतिमा पर तेल आदि चढ़ाकर पूजा अर्चना करते हैं।

गरूड़ पुराण में व नारद पुराण में कोकिला बिहारी जी का उल्लेख आता है। तो शनि महाराज का भी कोकिला वन में विराजना भगवान कृष्ण के समय से ही माना जाता है। बीच में कुछ समय के लिए मंदिर जीर्ण-शीर्ण हो गया था करीब साढ़े तीन सौ वर्ष पूर्व में राजस्थान में भरतपुर महाराज हुए थे उन्होंने भगवान की प्रेरणा से इस कोकिला वन में जीर्ण-शीर्ण हुए मंदिर का अपने राजकोष से जीर्णोद्धार कराया। तब से लेकर आज तक दिन भर दिन मंदिर का विकास होता चला आ रहा है।
 

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