Krishna Janmashtami: संतान संबंधित हर समस्या का हल है ये पाठ

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 26 Aug, 2024 11:04 AM

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आज बाल गोपाल नंदलाल का जन्मदिन है। आप भी उन जैसे नटखट पुत्र की कामना करती हैं या अपनी संतान को उन जैसा पराक्रमी और सबकी आंखों का तारा बनाना चाहती हैं। कृष्ण जन्माष्टमी के दिन संतान गोपाल पाठ और

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Krishna Janmashtami: आज बाल गोपाल नंदलाल का जन्मदिन है। आप भी उन जैसे नटखट पुत्र की कामना करती हैं या अपनी संतान को उन जैसा पराक्रमी और सबकी आंखों का तारा बनाना चाहती हैं। कृष्ण जन्माष्टमी के दिन संतान गोपाल पाठ और हवन करवाएं। ये पाठ आपके लिए वरदान सिद्ध होगा। इसकी महिमा का वर्णन धर्मशास्त्रों में भी मिलता है। संतान संबंधित हर समस्या का हल है ये पाठ-

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नि:संतान दंपतियों की सूनी गोद हरी होगी। अगले श्रीकृष्ण जन्मोत्सव तक आपके घर-आंगन में भी किलकारियां गूंजेगी।

आपकी संतान को हर बुरी बला से बचाएगा ये पाठ।

यदि आपकी संतान कहने से बाहर है तो वो आज्ञाकारी बनेगी।

संतान का तन-मन स्वस्थ रहेगा।

विद्या प्राप्ति में आ रही समस्याएं समाप्त होंगी।

करियर और परीक्षा में मनचाही सफलता हासिल होगी।

बच्चों का बौद्धिक और मानसिक विकास होगा। 

जन्‍माष्‍टमी के दिन इस शुभ मुहूर्त में करें संतान गोपाल पाठ

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विशेष- मंत्र और स्त्रोत का जाप करने से पहले विनियोग, अंगन्यास तथा ध्यान करें, फिर बीज मंत्र का जाप करें।

विनियोग- श्री सन्तानगोपालमंत्रस्य श्री नारद ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः श्री कृष्णो देवता गलौं बीजं नमः शक्ति पुत्रार्थे जपे विनियोगः।

अंगन्यास- देवकीसुत गोविन्द हृदयाय नमः, वासुदेव जगतपते, शिरसे स्वाहा, देहि में तनयं, कृष्ण शिखायै वषट, त्वामहं शरणम् गतः कवचाय हुम्, ॐ नमः अस्त्राय फट।।

ध्यान- वैकुण्ठादागतं कृष्णं रथस्य करुणानिधिम्। किरीटसारथिम्  पुत्रमानयन्तं परात्परम्। आदाय तं जलस्थं च गुरवे वैदिकाय च। अपर्यन्तम् महाभागं ध्यायेत् पुत्रार्थमच्युतम्।।

बीज मन्त्र- ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:।।

संतान गोपाल मंत्र- ऊं क्लीं देवकी सूत गोविंदो वासुदेव जगतपते देहि मे, तनयं कृष्ण त्वामहम् शरणंगता: क्लीं ऊं।।

विधि- लड्डू गोपाल के विग्रह को अपने सामने रखकर इस मंत्र के सवा लाख जप शुभ मुहूर्त में आरंभ करें। उन्हें माखन-मिश्री का भोग लगाएं। बाल रुप का स्मरण करके शुद्ध घी का दीपक प्रज्जवलित करें।

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श्री संतान गोपाल स्तोत्र
श्रीशं कमलपत्राक्षं देवकीनन्दनं हरिम् ।
सुतसंप्राप्तये कृष्णं नमामि मधुसूदनम् ॥१॥

नमाम्यहं वासुदेवं सुतसंप्राप्तये हरिम् ।
यशोदाङ्कगतं बालं गोपालं नन्दनन्दनम् ॥२॥

अस्माकं पुत्रलाभाय गोविन्दं मुनिवन्दितम् ।
नमाम्यहं वासुदेवं देवकीनन्दनं सदा ॥३॥

गोपालं डिम्भकं वन्दे कमलापतिमच्युतम् ।
पुत्रसंप्राप्तये कृष्णं नमामि यदुपुङ्गवम् ॥४॥

पुत्रकामेष्टिफलदं कञ्जाक्षं कमलापतिम् ।
देवकीनन्दनं वन्दे सुतसम्प्राप्तये मम ॥५॥

पद्मापते पद्मनेत्रे पद्मनाभ जनार्दन ।
देहि मे तनयं श्रीश वासुदेव जगत्पते ॥६॥

यशोदाङ्कगतं बालं गोविन्दं मुनिवन्दितम् ।
अस्माकं पुत्र लाभाय नमामि श्रीशमच्युतम् ॥७॥

श्रीपते देवदेवेश दीनार्तिर्हरणाच्युत ।
गोविन्द मे सुतं देहि नमामि त्वां जनार्दन ॥८॥

भक्तकामद गोविन्द भक्तं रक्ष शुभप्रद ।
देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ॥९॥

रुक्मिणीनाथ सर्वेश देहि मे तनयं सदा ।
भक्तमन्दार पद्माक्ष त्वामहं शरणं गतः ॥१०॥

देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥११॥

वासुदेव जगद्वन्द्य श्रीपते पुरुषोत्तम ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥१२॥

कञ्जाक्ष कमलानाथ परकारुणिकोत्तम ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥१३॥

लक्ष्मीपते पद्मनाभ मुकुन्द मुनिवन्दित ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥१४॥

कार्यकारणरूपाय वासुदेवाय ते सदा ।
नमामि पुत्रलाभार्थ सुखदाय बुधाय ते ॥१५॥

राजीवनेत्र श्रीराम रावणारे हरे कवे ।
तुभ्यं नमामि देवेश तनयं देहि मे हरे ॥१६॥

अस्माकं पुत्रलाभाय भजामि त्वां जगत्पते ।
देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव रमापते ॥१७॥

श्रीमानिनीमानचोर गोपीवस्त्रापहारक ।
देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव जगत्पते  ॥१८॥

अस्माकं पुत्रसंप्राप्तिं कुरुष्व यदुनन्दन ।
रमापते वासुदेव मुकुन्द मुनिवन्दित ॥१९॥

वासुदेव सुतं देहि तनयं देहि माधव ।
पुत्रं मे देहि श्रीकृष्ण वत्सं देहि महाप्रभो॥२०॥

डिम्भकं देहि श्रीकृष्ण आत्मजं देहि राघव ।
भक्तमन्दार मे देहि तनयं नन्दनन्दन ॥२१॥

नन्दनं देहि मे कृष्ण वासुदेव जगत्पते ।
कमलनाथ गोविन्द मुकुन्द मुनिवन्दित ॥२२॥

अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम ।
सुतं देहि श्रियं देहि श्रियं पुत्रं प्रदेहि मे ॥२३॥

यशोदास्तन्यपानज्ञं पिबन्तं यदुनन्दनं ।
वन्देऽहं पुत्रलाभार्थं कपिलाक्षं हरिं सदा ॥२४॥

नन्दनन्दन देवेश नन्दनं देहि मे प्रभो ।
रमापते वासुदेव श्रियं पुत्रं जगत्पते ॥२५॥

पुत्रं श्रियं श्रियं पुत्रं पुत्रं मे देहि माधव ।
अस्माकं दीनवाक्यस्य अवधारय श्रीपते ॥२६॥

गोपाल डिम्भ गोविन्द वासुदेव रमापते ।
अस्माकं डिम्भकं देहि श्रियं देहि जगत्पते ॥२७॥

मद्वाञ्छितफलं देहि देवकीनन्दनाच्युत ।
मम पुत्रार्थितं धन्यं कुरुष्व यदुनन्दन ॥२८॥

याचेऽहं त्वां श्रियं पुत्रं देहि मे पुत्रसंपदम्।
भक्तचिन्तामणे राम कल्पवृक्ष महाप्रभो ॥२९॥

आत्मजं नन्दनं पुत्रं कुमारं डिम्भकं सुतम् ।
अर्भकं तनयं देहि सदा मे रघुनन्दन ॥३०॥

वन्दे सन्तानगोपालं माधवं भक्तकामदम् ।
अस्माकं पुत्रसंप्राप्त्यै सदा गोविन्दमच्युतम् ॥३१॥

ॐकारयुक्तं गोपालं श्रीयुक्तं यदुनन्दनम् ।
क्लींयुक्तं देवकीपुत्रं नमामि यदुनायकम् ॥३२॥

वासुदेव मुकुन्देश गोविन्द माधवाच्युत ।
देहि मे तनयं कृष्ण रमानाथ महाप्रभो ॥३३॥

राजीवनेत्र गोविन्द कपिलाक्ष हरे प्रभो ।
समस्तकाम्यवरद देहि मे तनयं सदा ॥३४॥

अब्जपद्मनिभं पद्मवृन्दरूप जगत्पते ।
देहि मे वरसत्पुत्रं रमानायक माधव ॥३५॥

नन्दपाल धरापाल गोविन्द यदुनन्दन ।
देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ॥३६॥

दासमन्दार गोविन्द मुकुन्द माधवाच्युत ।
गोपाल पुण्डरीकाक्ष देहि मे तनयं श्रियम् ॥३७॥

यदुनायक पद्मेश नन्दगोपवधूसुत ।
देहि मे तनयं कृष्ण श्रीधर प्राणनायक ॥३८॥

अस्माकं वाञ्छितं देहि देहि पुत्रं रमापते ।
भगवन् कृष्ण सर्वेश वासुदेव जगत्पते ॥३९॥

रमाहृदयसंभारसत्यभामामनः प्रिय ।
देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ॥४०॥

चन्द्रसूर्याक्ष गोविन्द पुण्डरीकाक्ष माधव ।
अस्माकं भाग्यसत्पुत्रं देहि देव जगत्पते ॥४१॥

कारुण्यरूप पद्माक्ष पद्मनाभसमर्चित ।
देहि मे तनयं कृष्ण देवकीनन्दनन्दन ॥४२॥

देवकीसुत श्रीनाथ वासुदेव जगत्पते ।
समस्तकामफलद देहि मे तनयं सदा ॥४३॥

भक्तमन्दार गम्भीर शङ्कराच्युत माधव ।
देहि मे तनयं गोपबालवत्सल श्रीपते ॥४४॥

श्रीपते वासुदेवेश देवकीप्रियनन्दन ।
भक्तमन्दार मे देहि तनयं जगतां प्रभो॥४५॥

जगन्नाथ रमानाथ भूमिनाथ दयानिधे ।
वासुदेवेश सर्वेश देहि मे तनयं प्रभो ॥४६॥

श्रीनाथ कमलपत्राक्ष वासुदेव जगत्पते ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥४७॥

दासमन्दार गोविन्द भक्तचिन्तामणे प्रभो ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥४८॥

गोविन्द पुण्डरीकाक्ष रमानाथ महाप्रभो ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥४९॥

श्रीनाथ कमलपत्राक्ष गोविन्द मधुसूदन ।
मत्पुत्रफलसिद्ध्यर्थं भजामि त्वां जनार्दन ॥५०॥

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