Krishna Janmashtami Katha: आज आ रहे हैं दुखियों के सखा भगवान श्रीकृष्ण, पढ़ें कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 06 Sep, 2023 10:33 AM

krishna janmashtami katha

भगवान श्री कृष्ण परिपूर्णतम् परात्पर ब्रह्म हैं। वह जगत के कल्याण के लिए अपने भक्तों को आनन्द प्रदान करने के लिए सर्वव्यापक निराकार ब्रह्म होते हुए भी साकार रूप

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Krishna Janmashtami 2023 Katha: भगवान श्री कृष्ण परिपूर्णतम् परात्पर ब्रह्म हैं। वह जगत के कल्याण के लिए अपने भक्तों को आनन्द प्रदान करने के लिए सर्वव्यापक निराकार ब्रह्म होते हुए भी साकार रूप में अपनी माया को अधीन करके प्रकट होते हैं। वह केवल धर्म की स्थापना करने और संसार का उद्धार करने के लिए ही अपनी योगमाया से सगुणरूप होकर प्रकट होते हैं। उनके जन्म एवं कर्म दिव्य हैं, जो इसे जान लेता है, ऐसे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं होता।

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अखिल ब्रह्माण्डाधिपति भगवान श्री कृष्ण जी का अत्यंत पुण्यप्रद प्राकट्य भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ, जिसे हम श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व के रूप में मनाते हैं। ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर पृथ्वी से अत्याचारियों का भार उतार कर तथा अपने भक्तों को सुख प्रदान करने के लिए कंस के कारागार में वसुदेव-देवकी के यहां आनन्द कन्द श्रीभगवान प्रकट हुए।

जिस समय भगवान के आविर्भाव का अवसर आया, स्वर्ग में देवताओं की दुन्दुभियां अपने-आप बज उठीं। बड़े-बड़े देवता और ऋषि-मुनि आनन्द विभोर होकर पुष्पों की वर्षा करने लगे।

जब वसुदेव जी ने देखा कि जन्म-मृत्यु के चक्र से छुड़ाने वाले भगवान मेरे पुत्र के रूप में तो स्वयं आए हैं तो उनका रोम-रोम परम आनन्द में मग्न हो गया। वह हाथ जोड़ कर बोले, ‘‘प्रभो ! आप सर्वशक्तिमान् और सबके स्वामी हैं। इस संसार की रक्षा के लिए ही आपने मेरे घर अवतार लिया है।’’

देवकी भी कंस के भय से भगवान से प्रार्थना करते हुए बोलीं, ‘‘हे विश्वात्मन्! आपका यह रूप अलौकिक है। आप शंख, चक्र, गदा और कमल की शोभा से युक्त अपना यह चतुर्भुज रूप छिपा लीजिए।’’

तब श्रीभगवान ने कहा, ‘‘देवी! स्वायम्भुव मन्वन्तर में जब तुम्हारा पहला जन्म हुआ था, उस समय तुम्हारा नाम पृश्नि था और ये वसुदेव सुतपा नाम के प्रजापति थे। तुम दोनों ने कठोर तपस्या, श्रद्धा और प्रेममयी भक्ति से अपने हृदय में नित्य-निरन्तर मेरी भावना की थी। तब तुम दोनों ने मेरे-जैसा पुत्र मांगा।’’

सर्वशक्तिमान, संसार रूपी वृक्ष की उत्पत्ति के एकमात्र आधार, चराचर जगत के कल्याण के लिए निराकार स्वरूप होते हुए भक्ति तथा प्रेमवश साकार रूप धारण करने वाले श्री हरि भगवान ने भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप में बहुत सुंदर एवं मधुर लीलाएं कीं। इन लीलाओं का इतना प्रभाव है कि इनके श्रवण, पठन से अंत:करण शीघ्र अतिशीघ्र शुद्ध हो जाता है। भगवान ने अपनी बाललीला में कंस द्वारा भेजे गए राक्षसों पूतना, तृणावर्त, बकासुर और अघासुर का नाश कर उन्हें मुक्ति प्रदान की व कंस का वध कर मथुरा नगरी को भयमुक्त किया।

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अघासुर जैसे राक्षसों को मोक्ष प्राप्त हुआ यह देख बह्मा जी को अत्यंत आश्चर्य हुआ। जब उन्होंने बाल कृष्ण भगवान की परीक्षा लेने के लिए ग्वाल बाल और बछड़ों को चुरा लिया, तब सब ग्वाल बालों और बछड़ों का स्वरूप धारण कर भगवान श्री कृष्ण जी ने बह्मा जी के विश्वकर्ता होने के अभिमान को नष्ट किया। तब ब्रह्मा जी ने श्री कृष्ण की स्तुति करते हुए कहा,‘‘आपकी महिमा का ज्ञान तो बड़ा कठिन है। आप अनंत आदि पुरुष परमात्मा हैं और मेरे जैसे बड़े-बड़े मायावी भी आपकी माया के चक्र में हैं, इस मायाकृत मोह के घने अंधकार से मैं भ्रमित था। मेरा अपराध क्षमा कीजिए।’’

महाविषधर कालिय नाग ने जब यमुना जी का जल विषैला कर दिया तब भगवान ने कालिय दमन कर यमुना जी का जल पावन किया। गोविंद भगवान ने इंद्र की पूजा बंद करवा कर गोवर्धन पर्वत की पूजा प्रारंभ करवाई तो क्रोध एवं अहंकार वश इंद्र ने ब्रज पर मूसलाधार वर्षा करवाई।

तब माधव गोविंद ने खेल-खेल में गिरिराज गोवर्धन को अपनी उंगली पर धारण कर ब्रजवासियों की प्रलयंकारी वर्षा से रक्षा की। भगवान श्री कृष्ण की योगमाया के प्रभाव से चकित इंद्र ने भगवान से क्षमा मांगी।

एक समय रात्रि के समय यमुना जी में स्नान करने पर नंद जी को वरुण के सेवक पकड़ कर ले गए। तब भगवान श्री कृष्ण उन्हें वरुण लोक से वापस ले आए।

इसी प्रकार अपने गुरु सांदीपनी जी के आश्रम में शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात दक्षिणास्वरूप उनके मृत पुत्र को यमलोक से वापस लाकर अपने गुरु को गुरु दक्षिणा दी। पांडवों ने जब राजसूय यज्ञ का आयोजन किया, तब भगवान श्री कृष्ण की आज्ञा से पांडवों के माध्यम से जरासंध की कैद से सहस्रों राजाओं को मुक्त करवाया।

महाभारत के युद्ध में कर्त्तव्य मार्ग से विमुख हुए अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण ने समस्त वेदों, उपनिषदों से सारगर्भित ज्ञान को श्रीमद्भगवद्गीता के रूप में प्रदान किया और अर्जुन को अपने विश्वरूप परमात्मा के रूप में दर्शन कराए। अर्जुन गोविन्द भगवान की स्तुति में कहते हैं, ‘‘आप दुखियों के सखा तथा सृष्टि के उद्गम हैं। आप गोपियों के स्वामी तथा राधाकान्त हैं। मैं आपको सादर प्रणाम करता हूं।’’      

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