सुदामा न करते ये त्याग तो श्री कृष्ण होते दरिद्र, पढ़ें कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 06 Jun, 2020 09:48 AM

krishna sudama story in hindi

एक बहुत निर्धन ब्राह्मणी थी। भिक्षा मांगकर जीवन-यापन करती थी। एक समय ऐसा आया कि पांच दिन तक उसे भिक्षा नहीं मिली। वह प्रतिदिन पानी पीकर और भगवान का नाम लेकर सो जाती थी।

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Krishna sudama story in hindi: एक बहुत निर्धन ब्राह्मणी थी। भिक्षा मांगकर जीवन-यापन करती थी। एक समय ऐसा आया कि पांच दिन तक उसे भिक्षा नहीं मिली। वह प्रतिदिन पानी पीकर और भगवान का नाम लेकर सो जाती थी। छठे दिन उसे भिक्षा में दो मुट्ठी चने मिले। कुटिया पर पहुंचते-पहुंचते रात हो गई। ब्राह्मणी ने सोचा अब ये चने रात में नहीं खाऊंगी प्रात:काल वासुदेव को भोग लगाकर खाऊंगी।

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यह सोचकर ब्राह्मणी ने चनों को कपड़े में बांधकर रख दिया और वासुदेव का नाम जपते-जपते सो गई। कहते हैं-

पुरुष बली नहीं होत है, समय होत बलवान।

ब्राह्मणी के सोने के बाद कुछ चोर चोरी करने के लिए उसकी कुटिया में आ गए। इधर-उधर बहुत ढूंढा तो चोरों को वह चनों की बंधी पोटली मिल गई। चोरों ने समझा इसमें सोने के सिक्के हैं, इतने में ब्राह्मणी जाग गई और शोर मचाने लगी।

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गांव के सारे लोग चोरों को पकडऩे के लिए दौड़े। चोर वह पोटली लेकर भागे। पकड़े जाने के डर से सारे चोर संदीपन मुनि के आश्रम में छिप गए। (संदीपन मुनि का आश्रम गांव के निकट था, जहां भगवान श्री कृष्ण और सुदामा शिक्षा ग्रहण कर रहे थे)। गुरुमाता को लगा कि कोई आश्रम के अंदर आया है गुरुमाता देखने के लिए आगे बढ़ी तो चोर समझ गए कि कोई आ रहा है। चोर डर गए और आश्रम से भागे! भागते समय चोरों से वह पोटली वहीं छूट गई और सारे चोर भाग गए। इधर भूख से व्याकुल ब्राह्मणी ने जब जाना कि उसकी चने की पोटली चोर उठा ले गए तो ब्राह्मणी ने श्राप दे दिया कि, ‘‘मुझ दीन हीन असहाय के जो भी चने खाएगा वह दरिद्र हो जाएगा।’’

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उधर प्रात:काल आश्रम में झाड़ू लगाते समय गुरु माता को वही चने की पोटली मिली गुरु माता ने पोटली खोल कर देखी तो उसमें चने थे।

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सुदामा जी और कृष्ण भगवान जंगल से लकड़ी लाने जा रहे थे। (रोज की तरह) गुरु माता ने वह चने की पोटली सुदामा जी को दे दी और कहा बेटा! जब वन में भूख लगे तो दोनों लोग यह चने खा लेना। सुदामा जी जन्मजात ब्रह्मज्ञानी थे। ज्यों ही चने की पोटली को सुदामा जी ने हाथ में लिया त्यों ही उन्हें सारा रहस्य मालूम हो गया। सुदामा जी ने सोचा गुरु माता ने कहा है यह चने दोनों लोग बराबर बांट कर खाना लेकिन ये चने अगर मैंने त्रिभुवनपति श्री कृष्ण को खिला दिए तो सारी सृष्टि दरिद्र हो जाएगी। नहीं-नहीं मैं ऐसा नहीं करूंगा मेरे जीवित रहते मेरे प्रभु दरिद्र हो जाएं मैं ऐसा कदापि नहीं करूंगा। मैं ये चने स्वयं खा जाऊंगा लेकिन कृष्ण को नहीं खाने दूंगा और सुदामा जी ने सारे चने खुद खा लिए। दरिद्रता का श्राप सुदामा जी ने स्वयं ले लिया चने खाकर, लेकिन अपने मित्र श्री कृष्ण को एक भी दाना चना नहीं दिया।

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शिक्षा : मित्रता करें तो सुदामा जी जैसी करें और कभी भी अपने मित्रों को धोखा न दें।

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