Edited By Niyati Bhandari,Updated: 26 Sep, 2022 09:18 AM
उत्तर कोलकाता स्थित मूर्तिकारों के मठ कहे जाने वाले कुम्हारटोली इलाके में वैसे तो सैंकड़ों मूर्तिकार हैं, जो कभी सरस्वती, कभी गणेश,
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Kumartuli Durga Puja Idol Making Preparation in Kumartuli 2022: उत्तर कोलकाता स्थित मूर्तिकारों के मठ कहे जाने वाले कुम्हारटोली इलाके में वैसे तो सैंकड़ों मूर्तिकार हैं, जो कभी सरस्वती, कभी गणेश, कभी लक्ष्मी, कभी काली, कभी शीतला, कभी विश्वकर्मा और कभी दुर्गा की प्रतिमाएं बनाकर न केवल अपने और अपने परिवार के लिए रोजी-रोटी का जुगाड़ करते हैं, बल्कि छोटे-बड़े आकार की मुंह बोलती मूर्तियां बनाने के लिए देश-दुनिया में चर्चा में भी रहते हैं। लेकिन इन सैंकड़ों मूर्तिकारों में कौशिक घोष, मिंटू पाल, सुबोध पाल और चायना पाल ऐसे मूर्तिकारों के नाम हैं, जिनकी बनाई दुर्गा प्रतिमाएं पानी के रास्ते दुनिया के कई देशों में जाती हैं।
Kumartuli durga idol price: बदलते वक्त में फाइबर निर्मित प्रतिमाओं का चलन बढ़ा है, ये मिट्टी से बनी मूर्तियों की तुलना में हल्की होती हैं और इनके खंडित होने का खतरा भी कम होता है। कोरोना महामारी के कारण दो साल (2020 और 2021) हल्के निकलने के बाद इस साल दुर्गा प्रतिमा बनाने वाले मूर्तिकारों को विदेशों से अच्छे ऑर्डर मिले हैं। मूर्तिकारों के संगठन के एक प्रवक्ता ने बताया कि पिछले साल की तुलना में विदेशों से मूर्तियों के ऑर्डर 3 गुना बढ़े हैं।
कुम्हारटोली शिल्पकार समिति के कार्तिक पाल ने कहा कि इस साल करीबन 60 मूर्तियां विदेश भेजी जा रही हैं। महामारी की वजह से वर्ष 2021 में यह संख्या 20 से ज्यादा नहीं पहुंच सकी थी। इससे पहले यानी वर्ष 2020 में यह संख्या 5 ही थी। कार्तिक पाल ने बताया कि इस साल कुछ मूर्तियां भेजी जा चुकी हैं और अन्य मूर्तियों को भी जल्द भेजा जाएगा। मूर्तिकार इन दिनों विदेश भेजी जाने वाली प्रतिमाओं को अंतिम रूप देने में व्यस्त हैं।
मूर्तिकार मिंटू पाल ने बताया कि वर्ष 2018 और वर्ष 2019 में कुम्हारटोली से करीब 100 मूर्तियां दूसरे देशों में भेजी गई थीं। उन्होंने बताया कि विदेश भेजी जाने वाली प्रतिमाओं की कीमत भारतीय मुद्रा में एक लाख रुपए से शुरू होती है।
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उन्होंने बताया कि मूर्ति की ऊंचाई व इसमें इस्तेमाल होने वाली सामग्री के मुताबिक उसकी कीमत बढ़ती है। उन्होंने कहा कि अच्छी खबर यह है कि वह इस बार दो नए देशों युगांडा और स्विट्जरलैंड में भी मूर्तियां भेज रहे हैं।
Kumartuli history: दुर्गा पूजा के दौरान मूर्तिकारों की व्यस्तता काफी बढ़ जाती है। शहर या आसपास के इलाकों में स्थित पंडालों में जाने वाली प्रतिमाओं का काम तो महालय तक चलता है, लेकिन दूसरे शहर के लिए महालय से काफी पहले और दूसरे देश में जाने वाली प्रतिमाओं को पितृ पक्ष के मध्य तक रवाना कर दिया जाता है। मिंटू पाल के मुताबिक उनकी बनाई मूर्तियां फ्रांस, वेस्टइंडीज, आस्ट्रेलिया व पेरिस के लिए रवाना हो चुकी हैं और अफ्रीका के लिए रवाना होने वाली हैं।
मिट्टी के अलावा फाइबर, थर्मोकोल और सोला से बनी यहां की प्रतिमाओं की ख्याति व मूर्तिकारों के हुनर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां बनी मूर्तियां हर साल दुनिया के कई देशों (अमेरिका, जापान, चीन, बांग्लादेश, नेपाल, नाइजीरिया, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका, युगांडा, स्विट्जरलैंड भेजी जाती रही हैं।
चायना पाल एक महिला मूर्तिकार का नाम है, जिसे एक चाल (एक साथ दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश व कार्तिक) की मूर्ति बनाने में महारत हासिल है। चायना की बनाई दुर्गा प्रतिमा हर साल नेपाल और बांग्लादेश जा रही हैं।
What is Durga idol made of: वहीं, सुबोल पाल के हाथों बनी फाइबर की प्रतिमाएं अमरीका, आनंद रक्षित द्वारा सोला से बनाई मूर्तियां जापान, पंकज पाल द्वारा प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनाई गई मूर्तियां चीन और देवाशीष मंडल द्वारा थर्माकोल से बनाई दुर्गा प्रतिमाएं नाइजीरिया के लिए रवाना हो गई हैं।
मूर्ति बनाने की बारीकियों के बारे में इंद्रजीत पाल नामक मूर्तिकार ने बताया कि दुर्गा पूजा के लिए होली के बाद से ही मूर्तियां बननी शुरू हो जाती हैं। पहले बांस व लकड़ी की खपच्चियां काटी जाती हैं और फिर पुआल से आकृति की बंधाई होती है। गंगाजल, गोबर, गोमूत्र और यौनकर्मियों के आंगन से मंगवाई गई थोड़ी सी मिट्टी को मिलाया जाता है। उसके बाद पुआल की बनी आकृति पर चढ़ता है मिट्टी का आवरण। इन मूर्तियों को पूर्ण रूप लेते-लेते 6 से 7 महीने लग जाते हैं।
Kumartuli idol maker: कहना गलत नहीं होगा कि कुम्हारटोली की जिन तंग गलियों में यहां के मूर्तिकार जिस तरह से मूर्तियों को मूर्त रूप देते हैं, उनकी माली हालत भी उतनी ही तंग है। कुम्हारटोली की तंग गलियों में ईश्वर भक्ति जीवंत रूप में नजर आती है, जिसे साकार करते हैं यहां के सैकड़ों मूर्तिकार, लेकिन आर्थिक स्थिति और सामाजिक सुरक्षा के अभाव में दुखी नजर आते हैं वे मूर्तिकार, जो माहिर हैं मुंह बोलती मूर्तियां बनाने में।
विदेश जाने वाली मूर्तियों की संख्या
यहां से हर साल कई मूर्तियां विदेश भी भेजी जाती हैं। साल 2019 में 100, 2020 में 5, 2021 में 20 और इस साल अब तक लगभग 60 मूर्तियां कुम्हारटोली से भेजी गई हैं।