Edited By Prachi Sharma,Updated: 01 Nov, 2024 09:50 AM
एक अंग्रेज महिला लिलियन धर्म के मायने तलाशने भारत आई। उसने दक्षिण भारत में 90 साल पहले ऐसा मंदिर बनवाया, जो अब देश के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।
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Kodaikanal: एक अंग्रेज महिला लिलियन धर्म के मायने तलाशने भारत आई। उसने दक्षिण भारत में 90 साल पहले ऐसा मंदिर बनवाया, जो अब देश के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। उन्होंने केवल हिंदू धर्म ही स्वीकार नहीं किया, बल्कि कई हिंदू धर्म ग्रंथों का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया।
इस मंदिर का नाम है कुरिंजी अंदावर मंदिर। यह भगवान मुरुगन यानी कार्तिकेय का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। कोडाइकनाल (तमिलनाडु) आने वाले सैलानियों की यात्रा बगैर इस मंदिर में आए पूरी नहीं मानी जाती। वहां जब 12 साल में एक बार कुरिंजी नामक फूल खिलता है तो पूरी घाटी और आसपास का इलाका नीले रंग में चहकने लगता है। कोडाइकनाल में कुरिंजी मंदिर के आसपास हरी-भरी वादियां हैं और शांति का अहसास होता है।
लिलियन से लीलावती बनी
लिलियन को लोग दक्षिण भारत और श्रीलंका में लेडी रामनाथन के नाम से जानते हैं। उनका जन्म ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया में रोजा लिलियन हैरिसन के रूप में हुआ था। उनके माता-पिता, फ्रैडरिक ड्रेक हैरिसन और मैरी लॉयड पूल, दोनों अंग्रेज थे जो बचपन में इंगलैंड से ऑस्ट्रेलिया चले गए थे। उनके पिता सोने की खदान में काम करते थे।
आध्यात्मिक गुरु ही पति बन गए
जवान होने पर वह थियोसोफिकल आंदोलन से आकर्षित हुईं। आध्यात्मिक ज्ञान की खोज में श्रीलंका (तब सीलोन) पहुंचीं। ओन्नम्बलम रामनाथन उनके गुरु बने। वह सीलोन में सॉलिसिटर जनरल भी थे। कई सालों से विधुर थे। श्रीलंका आने के बाद वह धीरे-धीरे हिन्दू धर्मग्रंथों की ओर आकर्षित होने लगीं। उन्होंने हिन्दू धर्म और संस्कृति को अपनाने का फैसला किया। उनका समय आमतौर पर रामनाथन के साथ ही गुजरता था। दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो गया और उन्होंने शादी करने का फैसला किया। उनसे 22 साल बड़े रामनाथन जाफना प्रायद्वीप में जन्मे सिविल सेवकों के एक धनी परिवार से थे। शादी के बाद वह ईसाई से हिन्दू बन गईं और लीलावती नाम अपना लिया। हिन्दू धर्म से जुड़ाव के बाद उनका काफी समय कोडाइकनाल में गुजरने लगा। यहां उनके तीन घर थे।
1930 में उनके पति सर रामनाथन की मृत्यु हुई तो उन्होंने सफेद वस्त्र पहनने शुरू कर दिए और पति की याद में कुरिंजी अंदावर मंदिर बनवाया। वह हर दोपहर उसमें पूजा-अर्चना करती थीं।
31 जनवरी, 1953 को लीलावती रामनाथन का निधन हो गया। तब वह 83 वर्ष की थीं। 1942 में सीलोन विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें डॉक्टर ऑफ लॉ की मानद उपाधि प्रदान की गई। उन्होंने कई किताबें लिखीं, जिनमें रामायण का एक अंग्रेजी संस्करण भी शामिल है।
दो कॉलेज और दो मंदिर बनवाए
श्रीमती रामनाथन ने दो कॉलेज के साथ दो हिन्दू मंदिर बनवाए थे। एक कोलंबो में और दूसरा कोडाइकनाल में। कोडाइकनाल में उन्होंने कुरिंजी अंदावर मंदिर बनवाने का फैसला इसलिए किया क्योंकि उनके गुरु यहीं रहते थे। उन्होंने कोडाइकनाल में जहां मंदिर बनवाया, वह जगह उन्हें बहुत खूबसूरत और पवित्र लगी थी।
वादियों के बीच खूबसूरत मंदिर
कुरिंजी मंदिर के रास्ते में खूबसूरत चेट्टियार पार्क अगर आकर्षित करता है, तो मंदिर के करीब हरी-भरी घाटियां और सीढ़ीदार खेत मंत्रमुग्ध करते हैं। यहां बादल रोज नीचे उतरते हैं और दिनभर ऊपर-नीचे होने का खेल खेलते रहते हैं। मंदिर के परकोटे में खड़े होने पर अक्सर ये बादल उसके इर्द-गिर्द या नीचे नजर आते हैं। ऐसा लगता है कि ये रोज भगवान अंदावर को चरण स्पर्श कर रहे हों। तकरीबन रोज ही यहां हल्की-फुल्की बारिश भी हो जाती है। यहां मौसम बहुत तेजी से बदलता है। कभी आसमान में सुनहरा सूरज और चमकती धूप तो कुछ समय बाद बादलों की भरपूर चादर, बूंदाबांदी या आसमान से गिरती हुई ओस।
अंदावर यानी भगवान मुरुगन
अंदावर यानी भगवान मुरुगन तमिलनाडु के पहाड़ों के मुख्य देवता हैं। इस मंदिर में उनकी एक दुर्लभ मूर्ति स्थापित है। मंदिर में जटिल नक्काशी और सुंदर चित्र लुभावने हैं, जो अवाक् कर देंगे।