Kurma Dwadashi: आखिर क्यों लिया था श्री हरि ने कूर्म अवतार ?

Edited By Lata,Updated: 06 Jan, 2020 05:03 PM

kurma dwadashi katha in hindi

मंगलवार 07 जनवरी 2020 को पौष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि है, जोकि कूर्म द्वादशी के

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मंगलवार 07 जनवरी 2020 को पौष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि है, जोकि कूर्म द्वादशी के नाम से जानी जाती है। कूर्म अवतार भगवान विष्णु का दूसरा अवतार है। कहा जाता है कि जो भी इस दिन पूरी श्रद्धा भावना के साथ विधि-विधान से व्रत पूजन करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और पापों से मुक्ति मिलती है। तो चलिए आज हम आपको कूर्म द्वादशी की कथा के बारे में-
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पौराणिक कथा के अनुसार एक बार असुरों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया और उन्हें हराकर दैत्यराज बलि ने स्वर्ग पर कब्‍जा जमा लिया। तीनों लोकों में राजा बलि का राज स्थापित हो गया। इसके बाद सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए और उनसे मदद मांगने लगे। भगवान् विष्णु ने उन्हें समुद्र-मंथन कर अमृत प्राप्त करने और उसका पान कर पुनः अपनी खोई शक्तियां अर्जित करने का सुझाव दिया। किन्तु, यह कार्य इतना सरल नहीं था। देवता अत्यंत निर्बल हो चुके थे, अतः समुद्र-मंथन करना उनके सामर्थ्य की बात नहीं थी। इस समस्या का समाधान भी भगवान विष्णु ने ही बताया। उन्होंने देवताओं से कहा कि वे जाकर असुरों को अमृत एवं उससे प्राप्त होने वाले अमरत्व के विषय में बताएं और उन्हें समुद्र-मंथन करने के लिए मना लें। 
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जब देवताओं ने यह बात असुरों को बताई तो पहले तो उन्होंने मना कर दिया और सोचने लगे कि यदि हम स्वयं ही समुद्र मंथन कर लें तो सब कुछ हमें प्राप्त होगा। किन्तु अकेले ही समुद्र का मंथन कर पाने का सामर्थ्य तो असुरों के भी पास नहीं था। अंततः अमृत के लालच में वे देवताओं के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने को सहमत हो गए। दोनों पक्ष क्षीर सागर पर आ पहुंचे, मंद्राचल पर्वत को मंथनी, वासुकि नाग को रस्सी (मंथने के लिए) के स्थान पर प्रयोग कर समुद्र मंथन प्रारम्भ हो गया। मंथन प्रारम्भ होने के थोड़े ही समय पश्चात् मंद्राचल पर्वत समुद्र में धंसने लगा।
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तभी भगवान् विष्णु ने कूर्म (कच्छप या कछुआ) अवतार धारण किया और मंद्राचल पर्वत के नीचे आसीन हो गए। उसके पश्चात् उनकी पीठ पर मंद्राचल पर्वत स्थापित हुआ और समुद्र मंथन आरम्भ हुआ। भगवान् विष्णु के कूर्म अवतार के कारण ही समुद्र मंथन संभव हो पाया, जिसके फलस्वरूप समुद्र से अनेक बहुमूल्य रत्नों और निधियों, जीव-जंतुओं, देवी-देवताओं की उत्पत्ति हुई और अंततः देवताओं को अमृत की प्राप्ति हुई।

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