Edited By Prachi Sharma,Updated: 13 Feb, 2025 01:05 PM
प्रसंग उस समय का है जब लाल बहादुर शास्त्री देश के गृह मंत्री थे। उन दिनों उनके तीन बच्चे नई दिल्ली के एक स्कूल में पढ़ते थे। तीनों बच्चे तांगे से स्कूल जाते थे। वे अक्सर देखते कि उनके सभी मित्र गाड़ियों से स्कूल आ रहे हैं।
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Lal Bahadur Shastri Story: प्रसंग उस समय का है जब लाल बहादुर शास्त्री देश के गृह मंत्री थे। उन दिनों उनके तीन बच्चे नई दिल्ली के एक स्कूल में पढ़ते थे। तीनों बच्चे तांगे से स्कूल जाते थे। वे अक्सर देखते कि उनके सभी मित्र गाड़ियों से स्कूल आ रहे हैं।
उनके मित्र मजाक-मजाक में उन्हें कहते, “अरे तुम्हारे पिता तो मंत्री हैं। क्या वे अपने बच्चों के लिए गाड़ी भी नहीं ले सकते ?”
एक दिन तीनों बच्चों ने निर्णय किया कि चाहे कुछ भी हो जाए, बाबू जी से इस संबंध में बात करेंगे। उस दिन शास्त्री जी देर रात घर लौटे। तभी उनसे बोले, “पिता जी हमारे दोस्त हमें चिढ़ाते हैं कि उनके पिता जी तो आपके मंत्रालय के अधीन हैं फिर भी उनके पास गाड़ी है।”
यह सुनकर शास्त्री जी सहजता से बोले, “तुम सब का गाड़ी से जाने का मन है तो मैं तुुम्हारी इच्छा के लिए गाड़ी खरीद दूंगा। पर पता नहीं कल मैं मंत्री पद पर रहूं या न रहूं, उस समय हमारी आर्थिक स्थिति जाने कैसी हो। तब तुम्हें फिर से स्कूल गाड़ी के बजाय तांगे से ही जाना होगा। यदि यह मंजूर है तो हम गाड़ी खरीद लेंगे।”
पिता की बात सुनकर तीनों बच्चे हैरान रह गए। उन्हें लगा तब तो हमारे मित्र हमारा और अधिक मजाक उड़ाएंगे, ऐसे में यही उचित है कि हम तांगे से स्कूल जाना जारी रखें।
तीनों की बातचीत खत्म हो गई तो वे शास्त्री जी के पास जाकर बोले, “बाबूजी हमें क्षमा कर दीजिए। हमसे बड़ी भूल हो गई थी। हम अब यह जान गए हैं कि व्यक्ति को हर स्थिति में सादगी के साथ ही आगे बढ़ना चाहिए।”
अपने बच्चों की बातें सुनकर शास्त्री जी ने मुस्कुराकर उन तीनों को आशीर्वाद दिया और उनसे दूसरी बातें करने लगे।