Lala Jagat Narain Story: नशे व दहेज प्रथा के कट्टर विरोधी थे लाला जी

Edited By Prachi Sharma,Updated: 08 Dec, 2024 05:00 AM

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राजनीति, पत्रकारिता व समाज सेवा, ये तीन प्रमुख कार्यक्षेत्र रहे लाला जगत नारायण के। उनका जीवन एक संगम था इन तीन कार्यक्षेत्रों का।

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Lala Jagat Narain Story: राजनीति, पत्रकारिता व समाज सेवा, ये तीन प्रमुख कार्यक्षेत्र रहे लाला जगत नारायण के। उनका जीवन एक संगम था इन तीन कार्यक्षेत्रों का। जिस प्रकार गंगा, यमुना और सरस्वती मिलकर प्रयागराज को परम पावन बना देती हैं, महिमा मंडित कर देती हैं, उसी प्रकार इन तीनों ने उनके जीवन को, उनके व्यक्तित्व को तथा उनके कृतित्व को महत्वपूर्ण, स्मरणीय व अनुकरणीय बना दिया।

राजनीति व पत्रकारिता के क्षेत्र में तो वह प्रारंभ से अंत तक संघर्ष करते रहे परंतु अपने जीवन के पिछले वर्षों में वह समाज सेवा के कार्य में अधिक समर्पित हो गए थे।

उन्होंने एक स्थान पर कहा : ‘‘अब मैं समझने लगा हूं कि राजनीति एक छल है, कपट है, धोखा है, फरेब है। अब राजनीति से ऊब गया हूं। राजनीति के कपटपूर्ण व आडम्बर भरे वातावरण से निकल कर शांति और सुख अनुभव कर रहा हूं।’’

लाला जी अपनी योग्यता व क्षमता के अनुसार दूसरों की अधिक से अधिक सहायता करना चाहते थे। विभाजन के संताप और पीड़ा के भुक्तभोगी जगत नारायण दूसरों की पीड़ा व दर्द को समझते थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए जो पीर पराई जाने रे’ का आदर्श लेकर लाला जी समाज सेवा के अग्रदूत बन गए। पं. मदन मोहन मालवीय द्वारा संस्थापित ‘ऑल इंडिया सेवा समिति’ के उपप्रधान के रूप में उन्होंने ‘नर सेवा’ को ‘नारायण सेवा’ समझा तथा दिन-रात ‘दरिद्र नारायण’ की सेवा में लगे रहे।

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उन्होंने 1966 में ‘बिहार सहायता कोष’, 1971 में ‘बंगलादेश  सहायता कोष’ तथा 1977 में ‘आंध्र प्रदेश सहायता कोष’ की स्थापना कर पहले इस सहायता-यज्ञ में अपनी ओर से सहायता राशि की आहुति डाली तथा फिर देशवासियों को इस सहायता-यज्ञ में आहुति डालने की प्रेरणा दी तथा निराश्रितों, असहायों व दीन-दुखियों की सहायता का पुण्य कार्य किया। वह आर्य संस्कारों को लेकर पले-बढ़े थे, जिनके कारण उनका सम्पूर्ण जीवन ही यज्ञमयी हो गया था। यज्ञ क्या है? जीवन में किया गया श्रेष्ठ कार्य। नि:स्वार्थ भाव से की गई सेवा। वैदिक मंत्र ‘इदं न मम्’ अर्थात यह मेरे लिए नहीं। उनके जीवन का मूल मंत्र था। उनका अपना जीवन भी इसी बात का प्रमाण है कि वह अपने लिए न जी कर देश, समाज, राष्ट्र तथा सम्पूर्ण मानवता के लिए जीए।

उनकी मान्यता थी कि चारों ओर मूल्यों का पतन हो रहा है। चरित्र का भयावह संकट बढ़ता ही जा रहा है। इसे रोकने के लिए युवा शक्ति को आगे आना होगा, जो यह कार्य तभी कर पाएगी जब उसके पास अच्छे चरित्र का आधार होगा। युवा शक्ति को संगठित कर सृजनात्मक व रचनात्मक दिशा देने के लिए, समाज सेवा के कार्यों में प्रेरित करने के लिए उन्होंने नगर-नगर में समाज कल्याण को समर्पित ‘तरुण संगम’ स्थापित किए। देखते ही  देखते ‘तरुण संगम’ ने अखिल भारतीय रूप ले लिया।
 
वह दहेज प्रथा के विरोधी थे। यह विरोध मात्र भाषणों में नहीं था, उन्होंने स्वयं अपने तथा अपने पुत्रों के विवाह पर दहेज न लेकर एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया। वह स्कूलों,  कालेजों में या युवा समागमों में जहां भी जाते थे, युवकों व युवतियों को दहेज प्रथा से लडऩे का आह्वान करते थे। ‘दुल्हन ही दहेज है’ इस नारे की कल्पना उन्हीं की है।

2 जनवरी, 1975 के सम्पादकीय लेख ‘विवाह करने वाले परिवारों और नए वर-वधू बनने वालों के लिए’ में उन्होंने लिखा :
‘‘मैं वर और वधू बनने वालों से यह प्रार्थना करना चाहता हूं कि वे माता-पिता से स्पष्ट शब्दों में कह दें कि हम सादा ब्याह करना चाहते हैं। ऐसे साहसी वर और वधू यदि स्पष्टत: अपने मन की बात कह सकें तो समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन आ सकता है। अगर वे दहेज न लेने का संकल्प करें तो फिर यह उनके जीवन का ऐसा अनुपम कार्य होगा कि उनका नाम सुनहरी अक्षरों में लिखा जाएगा।’’

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वह विवाह को व्यापार बनाए जाने के खिलाफ थे तथा भाषणों व लेखों में विवाहों पर की जाने वाली फिजूलखर्ची, दिखावे व विलासिता के प्रदर्शन का विरोध किया तथा सामाजिक व स्वयंसेवी संस्थाओं को इस क्षेत्र में आगे आने की प्रेरणा दी।

लाला जी समाज सुधार के लिए समर्पित थे। उन्होंने प्रेरणा देकर कई समाज सुधार सभाओं की स्थापना भी की। अपने सम्पादकीय लेख ‘समाज सुधार की ओर पूरा ध्यान दीजिए’ में उन्होंने कहा, ‘‘समाज सुधार सभा की प्रेरणा से ब्याह-शादियों में जिस ढंग से कुछ सुधार हुआ है और प्रदेश की जनता ने सादगी के साथ विवाह करने के ढंग को अपना कर एक नया आदर्श देश की जनता के सामने रखा है, वह निश्चित ही सुंदर व अनुकरणीय है।’’ (पंजाब केसरी 1 अप्रैल, 1975)  मदिरापान के भी वह विरोधी थे। उनका प्रयास रहा कि मदिरापान के विरुद्ध भी एक वातावरण तैयार हो तथा महॢष दयानंद सरस्वती व महात्मा गांधी का शराबबंदी का स्वप्न साकार किया जाए। एक बार ‘हिन्द समाचार पत्र समूह’ के विज्ञापन इंचार्ज ने शराब की खाली बोतलों की नीलामी संबंधी विज्ञापन स्वीकार कर लिया।

जब लाला जी की नजर इस पर पड़ी तो उन्होंने इंचार्ज को बुला कर पूछा, ‘‘आपने यह विज्ञापन क्यों लिया ? क्या आप नहीं जानते कि कितने समय से मदिरापान के विरुद्ध लड़ रहा हूं ?’’ विज्ञापन इंचार्ज ने सफाई दी कि विज्ञापन शराब का नहीं, यह तो खाली बोतलों की नीलामी का है। इस पर लाला जी ने कहा :

‘‘ठीक है, लेकिन यह भी उतना ही बड़ा अपराध है जितना कि शराब पीना या दूसरों को इस जहर को पीने के लिए विज्ञापन द्वारा कहना। बोतल भरी हो या खाली इससे अंतर नहीं पड़ता। ध्यान रहे, आज के बाद ऐसा कोई विज्ञापन हमारे पत्रों में न छापने पाए। यदि मेरे पास पैसे न हुए तो मैं अखबार तो बंद कर सकता हूं लेकिन अपने आदर्शों से कभी समझौता नहीं कर सकता।’’

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5 अक्तूबर,1977 को प्रकाशित एक लेख में ‘मद्य निषेध’ पर उन्होंने लिखा, ‘‘पाठकों को भली-भांति याद होगा कि मैं पिछले 23 वर्षों से अपने भाषणों व लेखों के माध्यम से इस बात पर जोर देता रहा हूं कि देश जितनी जल्दी शराब के चुंगल से छूट जाए, उतना ही देश के हित में होगा। महात्मा गांधी कहा करते थे कि यदि भारत सरकार की बागडोर केवल आधे घंटे के लिए उनके हाथों में आ जाए तो वह सबसे पहला कार्य शराब बनाने वाली फैक्टरियों तथा शराब बेचने वाली दुकानों को बंद करने का करेंगे, वह भी बिना किसी प्रकार का मुआवजा दिए।’’        

 

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