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Lala Jagat Narayan: लाला जगत नारायण का सफर, अंधकार से प्रकाश की ओर

Edited By Prachi Sharma,Updated: 14 Apr, 2024 09:23 AM

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लाला जगत नारायण की प्रारंभिक व माध्यमिक शिक्षा लायलपुर में हुई। विभाजन से पूर्व के पंजाब में लायलपुर अपनी शिल्प योजना, घंटाघर व सुंदर तथा चौड़े बाजारों के लिए प्रसिद्ध था। अपने समय का एक प्रसिद्ध

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Lala Jagat Narayan: लाला जगत नारायण की प्रारंभिक व माध्यमिक शिक्षा लायलपुर में हुई। विभाजन से पूर्व के पंजाब में लायलपुर अपनी शिल्प योजना, घंटाघर व सुंदर तथा चौड़े बाजारों के लिए प्रसिद्ध था। अपने समय का एक प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र भी था। यहां पर सनातनी, आर्य समाजी व खालसा पंथी विचारधारा से संबंधित शिक्षण संस्थाएं थीं। इनके अतिरिक्त सरकारी स्कूल भी थे। यहीं पर भारत का पहला कृषि विश्वविद्यालय भी था।

चोपड़ा परिवार अब लायलपुर में रहने लगा था। कचहरी बाजार तथा मुख्य बाजार के बीच एक गली में उनका मकान था, छोटा सा। वह भी किराए पर। इसी मकान के सामने एक प्रसिद्ध गुरुद्वारा था जिसके साथ ही था खालसा मिडल स्कूल। इसी स्कूल से प्रारंभ हुई उनकी औपचारिक शिक्षा-दीक्षा। सातवीं कक्षा तक जगत नारायण इसी स्कूल में रहे। इसके पश्चात उन्होंने इससे थोड़ी दूरी पर स्थित खालसा हाई स्कूल से 1915 में दसवीं की परीक्षा पास की।

जगत नारायण ने इन स्कूलों में सिख धर्म के प्रवर्तक, मानवतावाद के पोषक व प्रखर राष्ट्रवादी गुरु नानक देव जी व अन्य सिख गुरुओं की मानव जीवनोपयोगी शिक्षाओं से प्रभाव ग्रहण किया। गुरु नानक हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे। मानव मात्र की एकता व कल्याण चाहते थे। लाला जगत नारायण पर भी इन विचारों का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। वह भी आगे चल कर सर्व-धर्म सद्भाव की प्रतिमूर्ति बनकर सामने आए। जीवन पर्यंत वह हिन्दू-सिख एकता के संरक्षक रहे तथा इसी ध्येय की खातिर उन्हें अपना जीवन भी बलिदान करना पड़ा।

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इन्हीं दिनों उनके मन में लाला लाजपत राय के प्रति भी एक आदर भरा आकर्षण भाव जागृत हो चुका था। स्वतंत्रता संग्राम के इस नायक को देखने को बड़े आतुर रहते थे जगत नारायण। लायलपुर उन दिनों राजनीतिक व क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र बन गया। विभिन्न प्रतिष्ठित नेता प्राय: यहां आते रहते। 1907 में जब लाला लाजपत राय एक ‘किसान-सम्मलेन' को संबोधित करने लायलपुर आए तो जगत नारायण की चिर अभिलाषा पूर्ण हुई। लाल लाजपत राय के ओजस्वी भाषण ने उनके मन को, उनकी बुद्धि को कहीं गहरा छू लिया तथा लाजपत राय उनका एक आदर्श बन गए।

वकील बोधराज वोहरा, जिनके यहां जगत नारायण के पिता लखमी दास जी नौकरी करते थे, स्वयं कांग्रेस दल के सक्रिय कार्यकर्ता थे। बोधराज वोहरा जगत नारायण की बुद्धि व कुशलता से अत्यंत प्रभावित थे तथा उन्हें अपने पुत्र की ही भांति चाहते थे। उनकी यह इच्छा थी कि जगत नारायण भी वकालत की शिक्षा ग्रहण कर उनके साथ मिल कर वकालत करें।

बोधराज वोहरा की राजनीतिक गतिविधियों का बालक जगत नारायण के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा। वह अपने हम उम्र बालकों की तरह हॉकी या फुटबाल न खेल कर, पुस्तकें पढ़ने में व्यस्त रहते। विभिन्न विषयों से संबंधित पुस्तकों का अध्ययन, मनन व चिंतन उनकी दिनचर्या का प्रमुख अंग था क्योंकि उन पर प्रभाव था वैदिक आदर्श ‘स्वाध्याय न मा प्रमद:’ का। यही कारण था कि वह बौद्धिक व मानसिक दृष्टि से जल्दी परिपक्व हो गए। इसके साथ-साथ वह देश भर में होने वाली राजनीतिक घटनाओं व स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी घटनाओं में निरंतर रुचि लेने लगे थे। यही रुचि समय पाकर बलवती होती गई तथा इसी ने उन्हें स्वतंत्रता सेनानी व कलम का सिपाही बनने के लिए प्रेरित किया।

लाहौर शिक्षा और संस्कृति का केंद्र तो था ही, साथ ही साथ राजनीति का केंद्र बिन्दू भी। 1915 में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद बी.ए. की उच्च शिक्षा के लिए जगत नारायण लाहौर आना चाहते थे, जीवन में कुछ कर दिखाना चाहते थे लेकिन उनके माता-पिता यह नहीं चाहते थे क्योंकि जगत नारायण उनकी इकलौती संतान थे। वे उसे आंखों से ओझल नहीं देख सकते थे। इस विषय पर वाद-विवाद भी हुआ, तर्क-वितर्क हुए। अंतत: जीत जगत नारायण के दृढ़ संकल्प की हुई। माता-पिता को बालक के उज्ज्वल भविष्य के लिए उसे लाहौर जाकर बी.ए. की पढ़ाई प्रारंभ करने की स्वीकृति देनी ही पड़ी।

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सन् 1916 में लाहौर के डी.ए.वी. कालेज में जगत नारायण ने प्रवेश ले लिया तथा राजनीति शास्त्र व अर्थ शास्त्र विषयों के साथ पढ़ाई शुरू कर दी। प्रसिद्ध आर्य समाजी नेता, तपस्वी व त्यागी महात्मा हंसराज, जो उस समय डी.ए.वी. कालेज, लाहौर के प्राचार्य थे, जगत नारायण के लिए प्रेरणा पुंज सिद्ध हुए। उनकी सादगी व सरलता ने जगत नारायण को ऐसा प्रभावित किया कि अपने भावी जीवन में वह भी इसी सादगी व सरलता के अनुयायी बन गए।

डी.ए.वी. कालेज, लाहौर उस समय एक प्रतिष्ठित गरिमामयी शिक्षण संस्था थी। इस कालेज में पढ़ने वाला विद्यार्थी स्वयं पर गर्व अनुभव कर सकता था क्योंकि यहां से शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र समाज में बड़े मान-स मान की दृष्टि से देखे जाते थे। नानक चंद बी.ए. द्वारा स्वदेशी आंदोलन पर लिखे गए क्रांतिकारी लेख ने उन्हें तथा इस कालेज को काफी याति दिलवाई। वह यहीं से पढ़े थे।

जगत नारायण सन् 1916 से 1919 तक इसी कालेज में पढ़ते रहे तथा अनेक महान नेताओं के स पर्क में आए। गौकुल चंद नारंग, लाला दूनी चंद, भाई परमानंद आदि इनमें प्रमुख हैं। जगत नारायण ने इन नेताओं से बहुत कुछ ग्रहण किया। लाला दूनी चंद के बुद्धि-चातुर्य ने उन्हें प्रभावित किया तथा भाई परमानंद तो उनकी पत्रकारिता के गुरु सिद्ध हुए।

जगत नारायण के माता-पिता आश्वस्त थे कि उनका बेटा लाहौर में अपनी किताबी पढ़ाई में खूब व्यस्त होगा, परन्तु उन्हें क्या पता था कि उनका बेटा महान स्वतंत्रता सेनानियों की पंक्ति में खड़ा होने जा रहा है, देश-प्रेम व स्वतंत्रता-संघर्ष का पाठ पढ़ कर। माता-पिता ने बचपन में राष्ट्रीयता, देश भक्ति, राष्ट्र-सेवा के जो संस्कार प्रदान किए थे, वे अब उनके भावी जीवन का संकल्प और लक्ष्य बन चुके थे।

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