Edited By Prachi Sharma,Updated: 10 Aug, 2024 09:13 AM
आर्य समाजी परिवार में जन्म लेने व संस्कारित वातावरण में पलने के कारण गांधीवाद ने जगत नारायण को आकर्षित किया। महात्मा गांधी का जादुई व्यक्तित्व सदैव उन्हें सम्मोहित करता रहा। 1920 में उनकी
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Lala Jagat Narayan Story: आर्य समाजी परिवार में जन्म लेने व संस्कारित वातावरण में पलने के कारण गांधीवाद ने जगत नारायण को आकर्षित किया। महात्मा गांधी का जादुई व्यक्तित्व सदैव उन्हें सम्मोहित करता रहा। 1920 में उनकी अपील पर ही उन्होंने अपनी वकालत की पढ़ाई छोड़ दी तथा राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े। लगभग अढ़ाई वर्ष तक असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण जेल में भी रहे।
1930 में गांधी जी ने नमक सत्याग्रह आंदोलन चलाया। जगत नारायण अब कांग्रेस के पूर्ण समर्पित कार्यकर्ता थे। लगभग तीन सौ स्वयंसेवकों का नेतृत्व करते हुए वह नमक सत्याग्रह में भाग लेने के लिए रावी नदी के किनारे पहुंचे, परन्तु पुलिस ने नेताओं को गिरफ्तार नहीं किया। जगत नारायण ने फिर सुझाव दिया कि जब तक शराब की दुकानों पर मदिरापान के विरोध में प्रदर्शन नहीं किया जाएगा पुलिस कांग्रेसी स्वयंसेवकों को नहीं पकड़ेगी। सुझाव पर अमल हुआ। अगले दिन महिला स्वयंसेवकों ने शराब की दुकानों के बाहर प्रदर्शन किया। अंत में पुलिस को महिला स्वयंसेवकों को गिरफ्तार करना पड़ा। लाला जगत नारायण की पत्नी श्रीमती शांति देवी भी इस विरोध-प्रदर्शन में शामिल हुईं। लाला जी के बड़े पुत्र (स्वर्गीय) श्री रमेश चंद्र ने इस घटना को याद करते हुए लिखा था-
‘‘1932 में जब गांधी जी ने मदिरापान के विरुद्ध आंदोलन चलाया तो लाला जी को फिर जेल जाना पड़ा। उस समय मेरा छोटा भाई विजय कुछ महीनों का बालक ही था। लाला जी के जेल जाने के पश्चात हमारी माता जी विजय को गोद में उठाए इस आंदोलन में भाग लेने पहुंच गईं तथा उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। वह आठ महीने तक जेल में रहीं। विजय कुमार भी उनके साथ जेल में ही रहा। उस समय मैं तथा मेरी बड़ी बहन लायलपुर में अपने दादा-दादी के पास रहे।’’
लाला जगत नारायण एक सम्मानित व प्रतिष्ठित नेता के रूप में उभर रहे थे। राजनीतिक मतभेदों के बावजूद लोग उनका सम्मान करते थे। वह उदारवादी दृष्टिकोण रखते थे, अपनी विचारधारा को किसी संकीर्णता में कैद नहीं कर रखा। नवां जमाना के मुख्य सम्पादक व भूतपूर्व संसद सदस्य स. जगजीत सिंह आनंद उनकी इस विशेषता का वर्णन करते हुए लिखते हैं-
‘‘लाला जी गांधीवादी थे, जबकि हम विद्यार्थी कम्युनिस्ट थे परन्तु हम उनका इतना सम्मान करते थे कि उन्हें इंकार नहीं कर सकते थे। उनका रास्ता टकराव व गतिरोध का नहीं था। वह सबको साथ लेकर चलते थे।’’
1932 में लाला जी को फिर आपत्तिजनक सामग्री छापने के आरोप में जेल भेज दिया गया, वह छ: महीने कारावास में रहे।
अपने प्रिय नेता महात्मा गांधी से व्यक्तिगत रूप से मिलने का अवसर जगत नारायण को व्यक्तिगत सत्याग्रह के अंतर्गत प्राप्त हुआ। पंजाब प्रोविंशियल कांग्रेस के प्रधान ने उन्हें सत्याग्रहियों की सूची लेकर महात्मा गांधी की अनुमति प्राप्त करने के लिए वर्धा जाने का आदेश दिया। वर्धा पहुंचने पर वह स्वर्गीय सेठ जमना लाल बजाज के घर पर ठहरे। यहीं उनकी भेंट अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव आचार्य कृपलानी से हुई। उन्होंने सत्याग्रहियों की सूची का निरीक्षण किया तथा जगत नारायण को सेवाग्राम पहुंचने का निर्देश दिया। जगत नारायण अपने संस्मरण में लिखते हैं-
‘‘मैं प्रात: 9 बजे सेवाग्राम पहुंच गया। श्रीमती राजकुमारी अमृत कौर, जो महात्मा गांधी की उस समय देखरेख कर रही थीं से मिला। 11.30 बजे उन्होंने गांधी जी से भेंट के लिए मुझे बुलाया। सूची देख कर वह बहुत खुश हुए। उन्होंने मुझसे कहा यदि कोई नाम इस सूची में तुम्हें उचित न लगे तो काट देना।’’
उन्हें यहां गांधी जी को बड़ी निकटता से देखने, बातचीत करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। गांधी जी ने विशेष रूप से जगत नारायण के लिए पंजाबी भोजन (सब्जी व चपाती) तैयार करवाया तथा खिलाया। जगत नारायण गांधी जी के साथ दो मील की सैर करने भी गए तथा सब प्रकार के विषयों पर बातचीत भी की।
जगत नारायण ने ‘सेवाग्राम’ में दो दिन रह कर गांधी जी की दिनचर्या, जीवन शैली, उनकी कथनी व करनी की एकता व आश्रम की व्यवस्था को बड़ी सूक्ष्मता से देखा। गांधी जी की प्रार्थना सभा में उनके प्रवचन सुने। उनका आशीर्वाद ग्रहण किया। ‘सेवाग्राम’ के वातावरण ने जगत नारायण को इतना प्रभावित किया कि वह आयु पर्यंत उसे भुला नहीं पाए। गांधी जी के राजनीतिक, सामाजिक व सांस्कृतिक विचारों व जीवनशैली से वह इतने प्रभावित हुए कि उनके परम अनुयायी बन गए। ‘गांधीवाद’ उनके जीवन का पथ प्रदर्शक बन गया।
राजनीति, पत्रकारिता व समाज सेवा, तीनों क्षेत्रों में ही वह गांधीवाद से प्रेरणा लेकर कार्य करते रहे। राजनीति में गांधी जी की तरह वह सिद्धांतप्रिय थे।राजनीति जन सेवा का एक माध्यम थी न कि सत्ता हथियाने की कला। गांधी जी की तरह वह भी अवसरवादी या समझौतावादी नहीं थे। उनकी इस विशेषता के बारे में पत्रकार रघुवंश राय लिखते हैं-
‘‘उनकी सफलता का रहस्य यह था कि उन्होंने कभी जीवन में समझौतावादी दृष्टिकोण नहीं अपनाया। वह इसे कायरता समझते थे। एक सच्चे वीर पुरुष की भांति हर मुसीबत से टकरा जाना और अपने आदर्श के लिए जान की बाजी लगा देना उनकी विशेषता थी और यह उनके खून में था।’’
2 जुलाई, 1925 को महात्मा गांधी ने अपने अखबार ‘यंग इंडिया’ में लिखा था-
‘‘मैंने पत्रकारिता का क्षेत्र केवल पत्रकार बनने के लिए नहीं चुना। मैंने तो इस क्षेत्र को अपना जीवन लक्ष्य पूर्ण करने के लिए एक निमित्त या माध्यम बनाया है।’’
गांधी जी के लिए पत्रकारिता एक मिशन नहीं, बल्कि स्वाधीनता प्राप्ति का एक साधन मात्र थी। 1942 में गांधी जी ने ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन के समय पत्रकारों से कहा था, ‘‘किसी प्रकार के दबाव में आकर लिखने से तो अच्छा है कि लिखा ही न जाए।’’
लाला जगत नारायण ने पत्रकारिता के क्षेत्र में आगे चल कर इन्हीं कथनों के प्रकाश में अपना कर्तव्य पथ निर्धारित किया।