Lala Jagat Narayan Story: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की प्रहरी थे लाला जी, उनकी इच्छा शक्ति ने पत्रकारिता के क्षेत्र में रच दिया इतिहास

Edited By Prachi Sharma,Updated: 12 Sep, 2024 11:53 AM

lala jagat narayan story

ला जी ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रहरी’ थे। कांग्रेस के उच्च पदों पर होते हुए, कांग्रेस मंत्रिमंडल में मंत्री होते हुए उन्होंने कभी भी

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Lala Jagat Narayan Story: लाला जी ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रहरी’ थे। कांग्रेस के उच्च पदों पर होते हुए, कांग्रेस मंत्रिमंडल में मंत्री होते हुए उन्होंने कभी भी ‘हिंद समाचार’ को कांग्रेस पार्टी या सरकार का प्रवक्ता नहीं बनने दिया। उनकी पत्रकारिता स्वतंत्र, स्वच्छ तथा स्वस्थ थी। एक बार जिस प्रकार लाला लाजपत राय गांधी जी की नीतियों से असमहति प्रकट करते हुए कांग्रेस से अलग हो गए थे, उसी प्रकार लाला जगत नारायण ने भी भारत के प्रधानमंत्री पं. नेहरू व कांग्रेस हाई कमान का कहना नहीं माना तथा कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया।
इस घटना का विवरण इस प्रकार मिलता है :

‘‘पं. जवाहर लाल नेहरू ने लाला जगत नारायण को बुला कर कहा था कि उन्होंने सरदार प्रताप सिंह कैरों के विरुद्ध जो लेख हिंद समाचार में लिखे हैं, वे पार्टी की अनुशासनहीनता है इसलिए वह खेद प्रकट करें। उस समय उस लौह पुरुष ने कहा था कि वे सच्चाई को सदैव जनता के सामने लाएंगे। नेताओं ने उन्हें बहुत समझाया, परंतु वे नहीं माने। उन्होंने कांग्रेस से ही त्याग पत्र दे दिया।’’  (दैनिक पंजाब केसरी, 9 सितम्बर, 1982)

PunjabKesari  Lala Jagat Narayan Story

यद्यपि जी हजूरी, क्षेत्रवाद व व्यक्तिवाद को आज की पत्रकारिता में स्थान प्राप्त है, परंतु समाज में मान्यता तथा प्रतिष्ठा तो उसी पत्रकार को मिलती है, जो समाज की संवेदना का प्रतिबिंब हो। जो समाज की धड़कन को समझ कर उसे अभिव्यक्ति दे। यदि इस कसौटी पर परखा जाए तो लाला जगत नारायण राजा राम मोहन राय, महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक व लाला  लाजपत राय जैसे पत्रकारों की श्रेणी में खड़े दिखाई देते हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में वह एक व्यक्ति नहीं, एक संस्था थे। एक विचारधारा नहीं, संपूर्ण क्रांति थे।

उनके लेखों एवं सम्पादकीयों को जन साधारण से लेकर बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ व कूटनीतिज्ञ पढ़ते थे। बुद्धिजीवी उन पर चर्चा करते थे। अपनी आस्था, विश्वास, परोपकार व समर्पण की भावना से लाला जी जन-जन की आवाज बन गए थे। ‘हिंद समाचार’ व ‘पंजाब केसरी’ के पाठकों की संख्या हजारों में नहीं, लाखों में है।

पत्रकारिता के प्रति समर्पण की भावना पर टिप्पणी करते हुए भारत के पूर्व प्रधानमंत्री तथा विदेश मंत्री व सूचना एवं प्रसारण मंत्री भी रह चुके श्री इंद्र कुमार गुजराल का कहना था :

‘‘उन्होंने हिन्द समाचार समूह के समाचार पत्रों की एक महान संस्था का निर्माण किया है। इन समाचार पत्रों का अपना एक अनूठा स्वरूप है... पत्रकारिता संबंधी जो साहस लाला जी ने दर्शाया, वह बहुत प्रशंसनीय था। उनके समाचार पत्रों की नीति हमेशा से साहस और सत्यता की रही है।’’

लाला जगत नारायण न केवल वाणी की स्वतंत्रता के रक्षक थे, बल्कि एक कुशल प्रबंधक व व्यवस्थापक भी थे। उनके इसी कौशल का परिणाम था कि ‘हिंद समाचार’ व ‘पंजाब केसरी’ ने पत्रकारिता के क्षेत्र में सफलता व लोकप्रियता के नए कीर्तिमान स्थापित किए।

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1948 में हिंद समाचार की 1800 प्रतियां छपती थीं, जबकि 1965 तक पहुंचते-पहुंचते यह संख्या 60-70 हजार तक पहुंच गई। जालंधर से प्रकाशित होने वाले उर्दू दैनिकों में यह अग्रणी समाचार पत्र बन गया। इसी प्रकार प्रथम बार 1965 में ‘पंजाब केसरी’ की 3500 प्रतियां छपीं, परंतु वर्ष 2000 तक दैनिक पंजाब केसरी की प्रतियों की संख्या 8 लाख से ऊपर हो गई। विभिन्न राजनीतिज्ञों, प्रशासनिक अधिकारियों, सत्ताधारियों, पत्रकारों व बुद्धिजीवियों से भले ही उनके दलगत, सैद्धांतिक या वैचारिक आधार पर मतभेद रहे हों, पर सभी के मन में उनके लिए एक विशिष्ट आदरपूर्ण स्थान था।

डा. गोपी चंद भार्गव, स. प्रताप सिंह कैरों, ज्ञानी जैल सिंह, श्रीमती इंदिरा गांधी, स. कपूर सिंह, श्री वीरेंद्र, श्री यश, स. जगजीत सिंह, श्री इंद्र कुमार गुजराल, श्री कुलदीप नैयर, श्री प्रेम भाटिया, श्री इंद्रजीत, शेख अब्दुल्ला, चौ. भजन लाल आदि सभी अपने तमाम मतभेदों के बावजूद लाला जी के प्रति श्रद्धा भाव रखते थे।
‘हद समाचार’ व ‘पंजाब केसरी’ को स्वतंत्र भारत के पहले तीन दशकों में अनेकों संकटों व चुनौतियों की अग्नि परीक्षाओं में से गुजरना पड़ा।

1957 से 1963 तक, जब पंजाब में स. प्रताप सिंह कैरों मुख्यमंत्री थे, हिंद समाचार पत्र को अपनी निष्पक्षता की भारी कीमत चुकानी पड़ी। राजनीतिक, आर्थिक व कानूनी कठिनाइयों के लम्बे दौर से गुजरना पड़ा। हानि, प्राण हानि तक के षड्यंत्र रचे गए। ब्रिटिश सरकार के काल से भी कहीं अधिक संकट की घड़ी थी परंतु लाला जी ने पूरी निडरता व साहस से इन विपरीत परिस्थितियों की चुनौती स्वीकार की।

1974 में जब ज्ञानी जैल सिंह पंजाब के मुख्यमंत्री थे, उन्होंने भी ‘पंजाब केसरी’ व ‘हिंद समाचार’ की आवाज को दबाने व कुचलने की कोशिश की। उन्होंने पहले दोनों समाचार पत्रों को दिए जाने वाले सरकारी विज्ञापन बंद कर दिए। जब इसका लाला जी पर कोई प्रभाव नहीं हुआ तो उन्होंने ‘हिंद समाचार’ कार्यालय की बिजली आर्पितही बंद कर दी।

यदि समाचार पत्रों को दूसरी प्रेस से छपवाने की कोशिश की गई तो उन्हें भी बिजली बंद कर देने की धमकी मिल गई। बड़ी कठिन परीक्षा थी। कैसे छापे जाएं समाचार पत्र ?

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लेकिन लाला जी हार मानने वालों में नहीं थे। यह पत्रकारिता के इतिहास में अनूठी घटना थी। उनकी प्रेरणा व इच्छा शक्ति से ट्रैक्टर लगा कर प्रिंटिंग मशीन चलाई गई तथा समाचार पत्र छापे गए, वितरित हुए तथा एक नया इतिहास रचा गया। देश भर के व विदेशी समाचार पत्रों में इसकी चर्चा हुई तथा प्रैस की स्वतंत्रता पर हुए सरकारी प्रहारों के विरुद्ध लेख व सम्पादकीय भी प्रकाशित हुए।

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