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Lala Jagat Naryan: जब लाला जगत नारायण के मन में उठी भारत को स्वतंत्र देखने की इच्छा...

Edited By Prachi Sharma,Updated: 14 May, 2024 10:58 AM

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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की कथा ज्यों-ज्यों आगे बढ़ी, जगत नारायण के युवा मन में भारत को स्वतंत्र देखने की, इस ध्येय के लिए स्वयं को अर्पित करने की लालसा

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Lala Jagat Naryan: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की कथा ज्यों-ज्यों आगे बढ़ी, जगत नारायण के युवा मन में भारत को स्वतंत्र देखने की, इस ध्येय के लिए स्वयं को अर्पित करने की लालसा बलवती हो उठी। एक कवि के शब्दों में उनका मन पुकार उठा-
‘‘तन समर्पित , मन समर्पित  और यह जीवन समर्पित।’’

सन् 1920 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी सेना नायक महात्मा गांधी ने राष्ट्र को ‘असहयोग आंदोलन’ का आह्वान दिया। इस आंदोलन ने राष्ट्र चेतना को जागृत कर दिया। माखन लाल चतुर्वेदी की ‘पुष्प की अभिलाषा’ अब जन-जन की अभिलाषा बन गई।
‘‘मुझे तोड़ लेना वन माली, 
उस पथ पर तुम देना फैंक।
मातृ भूमि पर शीश चढ़ाने, 
जिस पथ पर जावें वीर अनेक।’

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जगत नारायण भी अब उद्वेलित हो चुके थे। संकल्प ले चुके थे राष्ट्र की स्वतंत्रता का। एक युवक के लिए इस महान गौरवमयी स्वतंत्रता यज्ञ में अपनी आहुति डालने से बढ़ कर सौभाग्य और क्या हो सकता था ? 

अपने राजनीति में प्रवेश का वर्णन करते हुए उन्होंने लिखा-
‘‘मैंने दो नेताओं की प्रेरणा के प्रभाव में कांग्रेस में प्रवेश लिया। एक थे महर्षि दयानंद सरस्वती, जिनके साहित्य का अध्ययन मैंने अत्यंत आदर भाव से किया था। ‘सत्यार्थ- प्रकाश’ को मैंने दस से भी अधिक बार पढ़ा... दूसरे नेता जिन्होंने इस  संबंध में मुझे प्रभवित किया वह महात्मा गांधी थे...।’’

जुलाई 1920 में ही पंजाब में अहिंसक असहयोग आंदोलन का प्रभाव दिखाई देने लगा था। यह विदेशी वस्तुओं, विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार से प्रारम्भ हुआ। श्रीमती सरला देवी चौधरानी ने लाहौर में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार व स्वदेशी वस्तुओं को अंगीकार करने की प्रेरणा दी। ‘चरखा’ व ‘खादी’ पर उन्होंने विशेष बल दिया। लाजपत राय ने भी कह दिया कि विदेशी वस्त्रों को धारण करना एक पाप है। 

बस फिर क्या था। देखते ही देखते विदेशी कपड़ों के ढेर के ढेर जलाए जाने लगे। ‘स्वदेशी’ की भावना ने एक आंधी का रूप ले लिया। जगत नारायण भी इस प्रभाव से अछूते न रहे। इन्हीं दिनों गांधी जी ने पंजाब का दौरा किया । 

विद्यार्थियों में उनके प्रति एक विशेष उत्साह था, श्रद्धा थी, एक विश्वास था। जगत नारायण इन दिनों लाहौर के लॉ कालेज में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। श्री मौली चंद्र शर्मा ने विद्यार्थियों को महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने को कहा। 

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राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए तड़प रहे जगत नारायण उनकी अपील पर अपने कई साथियों सहित पूर्ण उत्साह से शामिल हो गए। जगत नारायण ने इस घटना का विवरण इस प्रकार दिया-

‘‘जब महात्मा गांधी ने देश की स्वतंत्रता का बिगुल पहली बार बजाया तो उस समय के विद्यार्थियों  से, वकीलों से और सरकारी कर्मचारियों आदि से अपील की कि वे अपना धंधा छोड़ कर उनके आंदोलन में शामिल हो जाएं और वह एक साल के अंदर अहिंसा के रास्ते पर चलते हुए देश को स्वतंत्र करा देंगे। जिन दिनों उन्होंने यह घोषणा की, मैं लॉ कालेज में पढ़ रहा था। मेरे दिल और दिमाग पर महात्मा गांधी की इस अपील का बड़ा असर हुआ। मैं बोर्डिंग हाऊस में रहता था। मेरे मामा जी व ताया जी लाहौर में रहते थे परन्तु मैं उनको बताए बगैर ही सत्याग्रह में कूद पड़ा।’’

(लाला जगत नारायण द्वारा लिखे लेख ‘लाला जी का वरदहस्त’ से)
अहिंसात्मक असहयोग आन्दोलन में भाग लेने वाले नेताओं व कार्यकर्ताओं की धरपकड़ शुरू हो गई। उन्हें जेलों में भेजा जाने लगा। जगत नारायण को भी इस आन्दोलन में भाग लेने के कारण 1921 में जेल भेज दिया गया। अपनी गिरफ्तारी का वर्णन करते हुए उन्होंने लिखा है :

‘‘उन दिनों एक बुजुर्ग नेता लाला ठाकुर दास जी थे, जो शहरी कांग्रेस के इंचार्ज थे। मैं उनके पास पहुंच गया और उन्होंने मुझे देहात में प्रचार के लिए लगा दिया। एक दिन वीर हकीकत राय की समाधि पर उनका यादगारी मेला लगा तो कुछ वालंटियर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिए। जब मैं थाने में पहुंचा तो पुलिस से पूछा कि आपने इनको गिरफ्तार क्यों किया है तो उन्होंने उनसे मेरे बारे में पूछा। मैंने पुलिस को बताया कि मैं लाहौर शहर कांग्रेस का ज्वाइंट सेक्रेटरी हूं। मेरी बात सुन कर पुलिस की बांछें खिल गईं। उन्होंने मुझे भी गिरफ्तार कर लिया। सुबह होने पर कचहरी में मुझे और मेरे अन्य साथियों को मैजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया। वालंटियर तो छोड़ दिए गए परन्तु मुझ पर बहुत-सी धाराएं लगा कर जेल भेज दिया गया।’’

पहले लाहौर कोतवाली में तथा वहां से फिर सैंट्रल जेल लाहौर में। यह पड़ाव, जीवन का यह मोड़ उनके लिए ऐतिहासिक महत्व का था। यहां बड़े-बड़े नेताओं के सम्पर्क में रहकर उन्होंने वे अनुभव प्राप्त किए जीवन के वे रहस्य समझे, जिन्होंने उन्हें ‘जीवन संग्राम का अनथक योद्धा’ बना दिया।     

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