जानें, किस तरह राजनीतिक षड्यंत्रों से घिरे रहने के बावजूद भी लाला जी ने जीता चुनावी महाभारत

Edited By Prachi Sharma,Updated: 09 Sep, 2024 10:54 AM

lala jagat naryan

विश्व मंच पर परिदृश्य बड़ी तेजी से बदल रहा था। द्वितीय विश्व युद्ध भारत के लिए एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम सिद्ध हुआ। नेता जी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिन्द

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Lala Jagat Naryan: विश्व मंच पर परिदृश्य बड़ी तेजी से बदल रहा था। द्वितीय विश्व युद्ध भारत के लिए एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम सिद्ध हुआ। नेता जी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिन्द फौज ने भारतीय आजादी के स्वप्न को लगभग एक जीवंत रूप दे दिया था। इसी दौरान मुहम्मद अली जिन्नाह ने पृथक राष्ट्र पाकिस्तान की मांग उछाल दी। स्वतंत्रता का स्वप्न फिर बिखर गया। द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने पर ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार ने सत्ता संभाल ली। उन्हें अब यह अहसास हो गया था कि भारत जैसे देश को अब अधिक समय तक पराधीन नहीं रखा जा सकता।

इधर जगत नारायण अब लाहौर सिटी कांग्रेस कमेटी के प्रधान बन चुके थे। पं. जवाहर लाल नेहरू लाहौर आए। कपूरथला हाऊस में एक सार्वजनिक सभा रखी गई, जिसके आयोजन का मुख्य दायित्व जगत नारायण का ही था।

जैसे ही पं. नेहरू बोलने के लिए उठे, माइक सिस्टम फेल हो गया। शरारतवश किसी ने तारे काट दी थीं। पं. नेहरू क्रोधित हो उठे तथा डांटने लगे जगत नारायण को। उन्होंने अन्य कांग्रेसी नेताओं को भी फटकार डाली। पर जगत नारायण घबराए नहीं। उन्होंने पं. नेहरू से पुन: सभा को संबोधित करवाने की सोची। हिम्मत करके जगत नारायण स्वयं पं. नेहरू के पास गए। उनसे क्षमा याचना की तथा उन्हें बताया कि यह सब एक साजिश का परिणाम था। उन्होंने आश्वासन दिया कि यदि वह स्वीकृति देते हैं तो सुनने वालों की संख्या कल से दोगुनी हो सकती है। समुचित प्रबंध भी किए जाएंगे।

पं. नेहरू यह सुन कर हंसे तथा पूछा कि कपूरथला मैदान में सभा कैसे होगी? क्योंकि मैदान में तो पानी भरा हुआ था। डा. किचलू ने कहा, ‘‘जगत नारायण कार्पोरेशन कांग्रेस पार्टी के नेता हैं। वह व्यवस्था कर लेंगे। कृपया आप उन पर विश्वास करें तथा सभा को संबोधित करने की स्वीकृति दें।’’

यह सुनकर पं. नेहरू ने अनमने ढंग से हां कह दी। स्वीकृति मिलते ही जगत नारायण सभा के प्रबंधों में जुट गए। बिजली का पंप लगा कर मैदान से सारा पानी कुछ ही घंटों में निकलवा दिया। शाम 6 बजे पं. नेहरू वहां पहुंचे तो सभास्थल पर 3 लाख लोग एकत्रित थे। सभा आशा से बढ़ कर सफल रही।
पं. नेहरू सभा की सफलता व जगत नारायण के कुशल संगठन व प्रबंध-कौशल को देख कर अत्यंत प्रसन्न व प्रभावित हुए। उन्होंने जगत नारायण को बधाई दी। जगत नारायण इस घटना को याद करते हुए लिखते हैं :

‘‘रात्रि भोजन के बाद उन्होंने सबके सामने मेरा हाथ थामते हुए कहा कि सभा बहुत ही सफल रही तथा मैं अब तुम से यह कह सकता हूं कि संख्या की दृष्टि से यह मेरे जीवन की सबसे बड़ी जनसभा थी। इतने लोगों को इससे पहले मैंने कभी संबोधित नहीं किया।’’

8 अगस्त, 1942 को बम्बई में आयोजित कांग्रेस सम्मेलन में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का प्रस्ताव पास कर दिया गया। जगत नारायण भी लाहौर कांग्रेस कमेटी के प्रधान होने के नाते इस अधिवेशन में भाग लेने बम्बई गए। अगले दिन गांधी जी की गिरफ्तारी का समाचार मिला लेकिन सरदार पटेल बाहर ही थे। उन्हें जेल नहीं भेजा गया था।

जगत नारायण साथियों सहित वापस चल पड़े। रास्ते में दिल्ली रुके परन्तु दिल्ली पहुंचने पर उन्हें पता चला कि पुलिस ने आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज किया है तथा गोली भी चलाई है। उन्होंने पंजाब जाना बेहतर समझा, परन्तु जैसे ही गाड़ी लाहौर पहुंची, उन्हें उनके साथियों सहित गिरफ्तार कर लिया गया।
जगत नारायण के बड़े पुत्र रमेश, जो अपने पिता को स्टेशन पर लेने के लिए गए थे, को भी गिरफ्तार कर लिया गया। इस प्रकार जगत नारायण के साथ-साथ परिवार के अन्य सदस्य भी जेल में रहे।

1952 के पंजाब विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को मिली भारी विजय का श्रेय लाला जी के कुशल नेतृत्व को ही जाता है। प. जवाहर लाल नेहरू ने स्वयं उन्हें इस बात के लिए हार्दिक बधाई भी दी क्योंकि 126 सीटों में से 98 सीटें कांग्रेस ने जीती थीं। लाला जी के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी, जब कभी उन्हें अवसर मिलता, पं. नेहरू के कान भरते रहते थे।

पंजाब मंत्रिमंडल में उन्हें शामिल किए जाने पर काफी मतभेद रहा। वह यह जानने में असमर्थ थे कि पं. नेहरू उनका इतना विरोध क्यों कर रहे हैं। वह इस संबंध में लाल बहादुर शास्त्री के माध्यम से मौलाना आजाद व पं. नेहरू से मिले भी।
पं. नेहरू को जब सारी बात स्पष्ट हुई तो उन्होंने स्वीकार किया कि जगत नारायण बारे में उनकी धारणा गलत थी। गलतफहमी दूर हो गई तथा संबंध सुखद हो गए। अपने निष्पक्ष और निर्भीक लेखों के कारण लाला जगत नारायण सत्ताधारियों के कोप का भाजन बनते रहे। कभी भाषायी फार्मूला, तो कभी चंडीगढ़, कभी स. प्रताप सिंह कैरों, तो कभी भीमसेन सच्चर। राजनीतिक मतभेद उभरते रहे, बढ़ते रहे। लाला जी की लोकप्रियता भी कई समकालीन नेताओं को अखरने लगी तथा वे उनके विरुद्ध राजनीतिक षड्यंत्र भी रचते रहे परन्तु लाला जी ने कभी परवाह नहीं की। उनके लिए पद या प्रतिष्ठा गौण थी। मुख्य बात थी सत्य को सत्य कहना।  

स्वतंत्रता के बाद जब कांग्रेस संस्कृति में पतन प्रारंभ हुआ, ‘सेवा’ के स्थान पर ‘सत्ता भोग’ ध्येय बनने लगा, अवसरवादिता बढऩे लगी, महत्वाकांक्षाएं प्रबल होने लगीं, भ्रष्टाचार घर करने लगा तो उन्होंने आगे चल कर कांग्रेस से भी संबंध विच्छेद कर लिया। 1957 में जालंधर उत्तरी विधानसभा से वह एक निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में खड़े हुए।

बल्र्टन पार्क जालंधर में पंडित नेहरू की चुनावी सभा थी। पं. नेहरू अपना भाषण समाप्त करने वाले थे कि स. प्रताप सिंह कैरों ने उनसे कहा कि ‘लाला जी के बारे में कुछ कह दें।’ इस पर पं. नेहरू ने लाला जी का नाम लेकर उनका विरोध किया। लाला जी को जब पं. नेहरू द्वारा दी गई टिप्पणियों के बारे में बताया गया तो उन्होंने कहा-

‘‘मेरे बारे में फैसला तो जनता करेगी। यह मेरी नहीं, बल्कि सच और झूठ की लड़ाई है।’’

पंडित नेहरू जी द्वारा लाला जी का विरोध करने के बावजूद न्याय के लिए लड़ी जा रही इस लड़ाई में जनता ने लाला जी का साथ दिया और वह यह चुनावी महाभारत जीत गए। चोटी के नेता उन दिनों अपने विरोधियों का सार्वजनिक रूप से नाम लेकर आलोचना करने में संकोच करते थे लेकिन पं. नेहरू ने लाला जी का नाम लेकर उनकी आलोचना की थी जिससे यह बात सिद्ध होती है कि लाला जगत नारायण एक जनाधार वाले नेता थे।
 

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