Lala Jagat Naryan Story: जेल में यातनाएं भी लाला जी को तोड़ न सकीं, सरकार को भी होना पड़ा उनके आगे मजबूर

Edited By Prachi Sharma,Updated: 01 Sep, 2024 09:50 AM

lala jagat naryan story

स्वतंत्रता से पूर्व तथा स्वतंत्रता के बाद भी लाला जगत नारायण राष्ट्र हित व जन हित में जेल यात्राएं करते रहे। 1921 से प्रारंभ हुआ जेल यात्राओं का इतिहास निरंतर आगे बढ़ता

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Lala Jagat Naryan Story: स्वतंत्रता से पूर्व तथा स्वतंत्रता के बाद भी लाला जगत नारायण राष्ट्र हित व जन हित में जेल यात्राएं करते रहे। 1921 से प्रारंभ हुआ जेल यात्राओं का इतिहास निरंतर आगे बढ़ता रहा। कभी ‘असहयोग आंदोलन’, कभी ‘नमक सत्याग्रह’, तो कभी ‘भारत छोड़ो आंदोलन’, वह बार-बार जेल जाते रहे। कई वर्ष जेल की कोठरियों में बीते। जेलों में शारीरिक, मानसिक उत्पीड़न व यातनाओं का सामना भी करना पड़ा। 1921 से 1924 के वर्षों में जब वह जेल में थे तो अपने प्रिय नेताओं के लिए जेल में ‘वंदे मातरम’, ‘प्रताप’, ‘मिलाप’, ‘ट्रिब्यून’, ‘जमींदार’ व ‘सियासत’ चोरी-छिपे लाया करते थे।

एक दिन जब अखबारों की यह चोरी पकड़ी गई तो जेल के दारोगा खैरुद्दीन ने उनसे दुर्व्यवहार किया तथा अपमानित भी किया। इस घटना बारे उन्होंने स्वयं लिखा था :

‘‘दो महीने तक यह क्रम जारी रहा। लाहौर सेंट्रल जेल के दारोगा खैरुद्दीन थे, उनकी आंखें बिल्लौरी थीं। उनको न मालूम कैसे पता चल गया कि मैं राशन के साथ अखबार भी लाता हूं। एक दिन वह ताक में बैठे थे। रास्ते में मिल गए। उन्होंने अपने अर्दली से तलाशी लेने को कहा। मैं पायजामे में अखबार छिपाकर लाया करता था।

उन्होंने पायजामा भी खुलवा लिया और अखबार निकल आया... अब उसने मुझे फांसी वाली कोठरी में डाल दिया और मेरे पांव में डंडा-बेड़ी लगा दी और दो घंटे तक मेरे बाजू दरख्त में लगे हुए चक्रों में बांध दिए... न मैं मच्छर उड़ा सकता था, न हिल-जुल सकता था। जीवन में इतना कष्ट मैंने कभी सहन नहीं किया था...’’
(‘लाजपत राय और नजदीक से’ पुस्तक)

1930 में उन्होंने गिरफ्तारी दी तथा एक वर्ष जेल में रहे। 1931 में ‘नमक सत्याग्रह’ के अंतर्गत शराब की दुकानों के बाहर प्रदर्शन करते हुए उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया। 1932 में उन्हें पुन: ‘आपत्तिजनक सामग्री’ छापने के आरोप में जेल भेजा गया।

उनके अपने शब्दों में:
‘‘1932 में मुझे एक अन्य केस के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया गया। हमारी प्रैस से एक साप्ताहिक पत्र छपता था तथा उसमें कुछ लेख पंजाब सरकार के विरुद्ध थे।

मुझे प्रैस का मालिक होने के नाते तथा पं. अमरनाथ विद्यालंकार, एम.पी. को प्रमुख लेखक के नाते गिरफ्तार किया गया। मैं छ: महीने से अधिक समय तक जेल में रहा...’’

1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह में एक वर्ष के लिए जेल गए। 1942 से 1945 तक लाला जगत नारायण फिर जेल में रहे। यह काल शारीरिक व स्वास्थ्य की दृष्टि से उनके लिए काफी कष्टप्रद रहा। उन्हें इस बार लाहौर किले में रखा गया तथा कई अमानवीय यातनाएं दी गईं। उनसे सूचना प्राप्त करने के लिए उन्हें एक अंधेरी कोठरी में डाल दिया गया। चौबीसों घंटे 200 वाट्स का बिजली का बल्ब जगता रहता था। दो महीने तक यह सिलसिला जारी रहा। जैसे ही उन्हें नींद आने लगती, संतरी उन्हें जगा देता।

पंद्रह दिनों में कुल मिलाकर उन्हें पांच घंटे भी नहीं सोने दिया गया। घंटों उन्हें बर्फ पर लेटने के लिए विवश किया जाता था। आधिकारियों को उन पर यह शक था कि उन्होंने ही नेता जी सुभाष को अफगानिस्तान के लिए हवाई उड़ान भरने में मदद की है। उन्होंने सफाई भी दी कि वह तो 1929 के बाद नेता जी से मिले ही नहीं, परंतु उनकी बात अनसुनी कर दी गई।
 
यातनाओं का दौर जारी रहा। अधिकारी उन्हें डराते रहे, धमकाते रहे तथा बार-बार यही पूछते रहे कि नेता जी सुभाष आखिर सीमा कैसे पार कर गए ? जब जगत नारायण से इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिला तो वे और कठोर व अमानवीय हो गए। लाला जगत नारायण ने अपने एक संस्मरण में लिखा :

‘‘एक दिन एक अंग्रेज डी.आई.जी. ने अधीनस्थ अधिकारियों से कहा कि जब वह दफ्तर से अपने कमरे में जा रहा हो तो उसे धक्का देकर सीढिय़ों से नीचे गिरा देना।

यह तो मेरा सौभाग्य ही था कि मेरे साथ चल रहा सिपाही स्वयं अचानक पैर फिसलने से सीढिय़ों से गिर पड़ा तथा टांग तुड़वा बैठा और मेरी मुसीबत टल गई।’’

जगत नारायण को इस प्रकार के अमानवीय व निंदनीय तरीके पसंद नहीं थे। उन्हें चोट पहुंचाने या जान से मार देने की यह साजिश इतनी बुरी लगी कि वह डी.आई.जी. के पास पहुंचे तथा उन्हें फटकारते हुए कहा :

‘‘यदि आप मुझे मारना ही चाहते हैं तो आप अपनी बंदूक या पिस्तौल से मुझे मार सकते हैं, परंतु यदि आप मुझसे यह उगलवाना चाहते हैं कि नेता जी की सहायता करने वाले कौन थे तो इसमें आप सफल नहीं होंगे।’’

लेकिन उन पर शारीरिक व मानसिक यातनाएं और पंद्रह दिनों तक जारी रहीं। दो महीने लाहौर किले में रखने के बाद उन्हें बोस्र्टल जेल में भेज दिया गया। इस दौरान उनका वजन 40 पौंड कम हो गया था। वह मुश्किल से कुछ कदम चल पाते थे। उनकी अनुपस्थिति में घर का आर्थिक ढांचा भी गड़बड़ा गया। जगत नारायण के पिता लखमीदास चाहे आयु के कारण अक्षम हो चुके थे, पर जैसे-तैसे घर-गृहस्थी की गाड़ी धकेल रहे थे। दो बेटियां विवाह योग्य हो चुकी थीं। इस प्रकार न केवल जगत नारायण संघर्ष कर रहे थे, बल्कि पूरा परिवार आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दे रहा था।

स्थिति की विडम्बना यह रही कि स्वतंत्र भारत में भी स्वतंत्रता संग्राम के इस नायक को बार-बार जेल जाना पड़ा। जब उन्होंने पृथकतावादी विचारधारा का विरोध किया तो होशियारपुर के तत्कालीन डी.सी. स. कपूर सिंह ने उन्हें जेल में बंद करवा दिया। स्वतंत्र भारत में यह उनकी पहली जेल यात्रा थी। गिरफ्तारी के विरुद्ध रोष-लहर उग्र तथा प्रचंड हो गई तो उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया। लाला जी रिहाई के बाद जब हिंद समाचार कार्यालय पहुंचे तो अंधेरा हो चुका था। वहां पर उपस्थित एक मित्र ने कहा, ‘‘लाला जी, आप आजाद हिन्दोस्तान की जेल भी देख आए।’’

लाला जी ने मुस्करा कर कहा, ‘‘स्पष्टवादिता के लिए सजा तो मिलनी ही थी, सो मिल गई। मगर ये सजाएं, धौंस, धमकी मेरी जुबानबंदी न कर सकी हैं तथा न कर सकेंगी।’’
(पंजाब केसरी, 9 सितम्बर, 1996)

1975 में भी आपातकाल के दौरान उन्हें जेल जाना पड़ा क्योंकि उन्होंने सत्तासीन नेताओं की तानाशाही के विरुद्ध प्रबल आवाज उठाई थी। 26 जून,1975 को सायं उन्हें उनके घर के सामने से गिरफ्तार कर लिया गया। वह 19 महीनों तक जालंधर, फिरोजपुर, संगरूर, नाभा व पटियाला की जेलों में रहे। उनकी आयु 76 वर्ष की थी। जेल में वह अत्यधिक बीमार हो गए। दो बार ऑप्रेशन करवाने पड़े। आंखों में मोतियाबिंद उतर चुका था। सीने में दर्द की तकलीफ भी हुई। डाक्टरों ने सरकार को परामर्श दिया कि लाला जी को जेल में और रखना खतरे से खाली नहीं होगा।

पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने रिहाई के लिए शर्त रखी कि रिहा होने के बाद लाला जी राजनीतिक गतिविधियों में भाग नहीं लेंगे, परंतु लाला जी ने कोई भी शर्त मानने से साफ इंकार कर दिया। 1977 में जनवरी में पटियाला जेल में उन्हें हार्ट अटैक भी हुआ पर उन्होंने हार नहीं मानी। अंतत: पंजाब सरकार को उन्हें बिना किसी शर्त छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। 

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