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जानिए यहां कब पड़ेगा 2020 साल का आखिरी प्रदोष व्रत, बन रहा है कौन सा खास योग

Edited By Jyoti,Updated: 26 Dec, 2020 01:31 PM

last pradosha vrat of 2020

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ जिस तरह प्रत्येक मास में एकादशी का व्रत पड़ता है। ठीक उसी तरह हर माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत भी पड़ता है। साल 2020 की बात करें तो इस वर्ष का आखिरी प्रदोष व्रत 27 दिसंबर को पड़ रहा है। ज्योतिष शास्त्री के...

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
जिस तरह प्रत्येक मास में एकादशी का व्रत पड़ता है। ठीक उसी तरह हर माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत भी पड़ता है। साल 2020 की बात करें तो इस वर्ष का आखिरी प्रदोष व्रत 27 दिसंबर को पड़ रहा है। ज्योतिष शास्त्री के अनुसार ये प्रदोष व्रत बहुत ही ख़ास है क्योंकि रविवार के दिन पड़ने की वजह से ये रवि प्रदोष पड़ रहा है। जो कि कलियुग में भगवान शिव की कृपा प्रदान करने वाला माना जाता है। 
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जानकारी के लिए बता दें कि प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा शाम के समय सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक की जाती है। शास्त्रों में सबसे उत्तम व पवित्र समय प्रदोष काल बताया गया है, जो दिन का अंत और रात्रि के आगमन के बीच का समय होता है वही प्रदोष काल कहलाता है। इस काल में की गई शिव पूजा का फल अनंत गुना बढ़ जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव कैलाश पर्वत के रजत भवन में प्रदोष के समय नृत्य करते हैं।

चलिए अब आपको त्रियोदशी तिथि बताते हैं। त्रियोदशी तिथि 27 दिसंबर की सुबह 4 बजकर 18 मिनट से शुरू होकर 28 दिसंबर की सुबह 6 बजकर 20 मिनट तक है।

त्रियोदशी तिथि प्रारंभ- 27 दिसंबर, सुबह 4.18 से

त्रियोदशी तिथि समापन- 28 दिसंबर, सुबह 6.20 तक

चलिए अब आपको रवि प्रदोष के दिन भगवान शिव की पूजा करने की विधि बताते हैं-
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रवि प्रदोष के दिन सबसे पहले ब्रह्म मूहूर्त में जागना चाहिए। ब्रह्म मूहूर्त में जाग कर स्नान, ध्यान करने के बाद उगते हुए सूर्य को तांबे के पात्र में जल, रोली और अक्षत लेकर अर्ध्य देना चाहिए। अर्ध्य देने के बाद भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान करते हुए व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए और पूरे दिन भगवान शिव के मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ का जप मन ही मन में करते रहना चाहिए. यदि संभव हो तो यह व्रत निराहार ही रहना चाहिए। पूरा दिन बीतने के बाद शाम के समय प्रदोष काल में भगवान शिव को पहले पंचामृत से स्नान कराना चाहिए इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर विल्व पत्र, धतूरे के फल, रोली, अक्षत, धूप और दीप से पूजन करना चाहिए। भगवान शिव को साबुत चावल की खीर भी अर्पित करना चाहिए। सबसे अंत में भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करके प्रसाद को बांटना चाहिए।

आपको बता दें कि प्रदोष व्रत की महत्ता सप्ताह के अलग-अलग दिनों के मुताबिक अलग-अलग होती है-

रविवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को करने वाला हमेशा निरोग रहता है।

सोमवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को करने से सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
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मंगलवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को करने से रोगों से छुटकारा मिलता है।

बुधवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को करने से सभी तरह की कामना की सिद्धि होती है।

बृहस्पतिवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को करने से शत्रु का नाश होता है।

शुक्रवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को करने से सौभाग्य की बढ़ोत्तरी होती है और शनिवार को प्रदोष व्रत करने से पुत्र की प्राप्ति होती है। 
 


 

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