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Life Story of Vidyapati: भक्ति परम्परा के स्तम्भ थे विद्यापति, पढ़ें उनकी जीवन कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 10 May, 2023 09:18 AM

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विद्यापति का जन्म उत्तरी बिहार के मिथिला क्षेत्र के वर्तमान मधुबनी जिला के विस्फी (अब बिस्फी) गांव में हुआ था। विद्यापति (‘ज्ञान का स्वामी’)

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Biography of Vidyapati: विद्यापति का जन्म उत्तरी बिहार के मिथिला क्षेत्र के वर्तमान मधुबनी जिला के विस्फी (अब बिस्फी) गांव में हुआ था। विद्यापति (‘ज्ञान का स्वामी’) नाम दो संस्कृत शब्दों, विद्या (ज्ञान) और पति से लिया गया है। उनकी सही जन्म तिथि के बारे में भ्रम है।
विद्यापति ने सर्वप्रथम राजा र्कीत सिंह के दरबार में काम किया था, जिन्होंने लगभग 1370 से 1380 तक मिथिला पर शासन किया था। इस समय विद्यापति ने ‘र्कीतलता’ की रचना की, जो पद्य में उनके संरक्षक के लिए एक लंबी स्तुति-कविता थी।  
विद्यापति ने र्कीत सिंह के उत्तराधिकारी देव सिंह के दरबार में स्थान हासिल किया। गद्य कहानी संग्रह भू-परिक्रमण देव सिंह के तत्वावधान में लिखा गया था। विद्यापति ने देव सिंह के उत्तराधिकारी शिव सिंह के साथ घनिष्ठ मित्रता की और प्रेम गीतों पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया।

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PunjabKesari Biography of Vidyapati

उन्होंने मुख्य रूप से 1380 और 1406 के बीच लगभग पांच सौ प्रेम गीत लिखे। उस अवधि के बाद उन्होंने जिन गीतों की रचना की, वे भगवान शिव, भगवान विष्णु, देवी दुर्गा और गंगा माता की भक्तिपूर्ण स्तुति थे। सन् 1402 से 1406 तक मिथिला के राजा शिव सिंह और विद्यापति के बीच घनिष्ठ मित्रता थी। जैसे ही शिव सिंह सिंहासन पर बैठे, उन्होंने विद्यापति को अपना गृह ग्राम बिस्फी प्रदान किया।

सुल्तान की मांग पर कवि अपने राजा के साथ दिल्ली भी गए। उस मुठभेड़ के बारे में एक कहानी बताती है कि कैसे सुल्तान ने राजा को पकड़ लिया और विद्यापति ने अपनी दिव्य शक्तियों का प्रदर्शन करके उनकी रिहाई के लिए बातचीत की।
शिव सिंह के अनुकूल संरक्षण और दरबारी माहौल ने मैथिली में लिखे प्रेम गीतों में विद्यापति के प्रयोगों को प्रोत्साहित किया, एक ऐसी भाषा, जिसका दरबार में हर कोई आनंद ले सकता था।

वर्ष 1406 में एक मुस्लिम सेना के साथ लड़ाई में शिव सिंह लापता हो गए थे। इस हार के बाद विद्यापति और दरबार ने नेपाल के राजाबनौली में एक राजा के दरबार में शरण ली। सन् 1418 में पद्म सिंह एक अंतराल के बाद मिथिला के शासक के रूप में शिव सिंह के उत्तराधिकारी बने, जब शिव सिंह की प्रमुख रानी लखीमा देवी ने 12 वर्षों तक शासन किया।

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विद्यापति ने जिन राजाओं के लिए काम किया, उनकी स्वतंत्रता को अक्सर मुस्लिम सुल्तानों की घुसपैठ से खतरा था। र्कीतलता एक ऐसी घटना का संदर्भ देता है, जिसमें राजा गणेश्वर को तुर्की सेनापति मलिक अरसलान ने 1371 ईस्वी में मार दिया था।
सन् 1401 तक विद्यापति ने जौनपुर सुल्तान अरसलान को उखाड़ फैंकने और गणेश्वर के पुत्रों, वीर सिंह और र्कीत सिंह को सिंहासन पर स्थापित करने में योगदान दिया।

विद्यापति भारतीय साहित्य की ‘शृंगार-परंपरा’ के साथ-साथ ‘भक्ति-परम्परा’ के प्रमुख स्तंभों में से एक और मैथिली के सर्वोपरि कवि के रूप में जाने जाते हैं। इनके काव्यों में मध्यकालीन मैथिली भाषा के स्वरूप का दर्शन किया जा सकता है। ब्रजबोली में सबसे प्रारंभिक रचना विद्यापति द्वारा की गई। वह चैतन्य महाप्रभु के शिष्य थे। उन्होंने चैतन्य महाप्रभु के लिए अपनी ब्रजबोली कविताओं का पाठ किया। वह पहली बार उनसे गोदावरी नदी के किनारे राजमुंदरी में मिले, जो कि 1511-12 में ओडिशा राज्य की दक्षिणी प्रांतीय राजधानी थी।

मध्यकाल के सभी प्रमुख बंगाली कवि विद्यापति से प्रभावित थे। नतीजतन एक कृत्रिम साहित्यिक भाषा, जिसे ब्रजबोली के रूप में जाना जाता है, सोलहवीं शताब्दी में विकसित की गई थी।

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ब्रजबोली मूलरूप से मैथिली है (जैसा कि मध्ययुगीन काल के दौरान प्रचलित था) लेकिन इसके रूपों को बंगाली की तरह दिखने के लिए संशोधित किया गया है।

मध्यकालीन बंगाली कवियों, गोबिंददास कबीरराज, ज्ञानदास, बलरामदास और नरोत्तमदास ने इस भाषा में कविता रचना की।
बंकिम चंद्र चटर्जी से लेकर रबींद्रनाथ टैगोर तक विद्यापति से बहुत प्रभावित थे। रबींद्रनाथ टैगोर ने पश्चिमी हिंदी (ब्रज भाषा) और पुरातन बंगाली के मिश्रण में अपने भानुसिंघा ठाकुर पदाबली (1884) की रचना की और विद्यापति की नकल के रूप में ब्रजबोली भाषा का नाम दिया।

सियालदह स्टेशन के पास कोलकाता में एक पुल का नाम उनके (विद्यापति सेतु) के नाम पर रखा गया है।

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