Edited By Niyati Bhandari,Updated: 24 Aug, 2024 04:10 AM
अमरीका के एक बहुत बड़े कार्डियोलॉजिस्ट हुए हैं। उनके पास एक केस आया। उस केस के बारे उन्होंने लिखा है, ‘‘हाऊ मैडीसन रिएक्ट।’’ एक उनकी वर्ल्ड फेमस पुस्तक है। वह परमात्मा को नहीं मानते थे अर्थात नास्तिक थे।
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अमरीका के एक बहुत बड़े कार्डियोलॉजिस्ट हुए हैं। उनके पास एक केस आया। उस केस के बारे उन्होंने लिखा है, ‘‘हाऊ मैडीसन रिएक्ट।’’
एक उनकी वर्ल्ड फेमस पुस्तक है। वह परमात्मा को नहीं मानते थे अर्थात नास्तिक थे। सर्जरी में उन जैसा कोई एक्सपर्ट नहीं था। जब वह सर्जरी करते तो खून नहीं निकलता था। नस नहीं कटती थी। एक मरीज उनके पास आया तो उन्होंने उसके घरवालों को बोल दिया कि 99 प्रतिशत उम्मीद नहीं है लेकिन चूंकि यह मेरी ड्यूटी है इसलिए मैं ऑप्रेशन थिएटर जा रहा हूं। जिसका ऑप्रेशन करना था वह अभी होश में था और ईश्वर को याद कर रहा था। डाक्टर ने पूछा, ‘‘यह तुम क्या कर रहे हो?’’
मरीज बोला, ‘‘ईश्वर को याद कर रहा था। मुझे आप में साक्षात परमात्मा दिखाई दे रहा है, जो मेरा ऑप्रेशन करने के लिए आ रहे हैं।’’
डाक्टर हैरान हुआ और बोला, ‘‘अच्छा बताओ कि परमात्मा आपको क्या बोल रहा है?’’
मरीज बोला, ‘‘परमात्मा कह रहा है कि घबराओ नहीं, आधे घंटे बाद तुम ठीक हो जाओगे।’’
डाक्टर बोला, ‘‘अच्छा, क्या उन्होंने ऐसा कहा।’’
इसके बाद मरीज को एनेस्थीसिया (बेहोशी की दवा) दिया गया फिर उसका ऑप्रेशन हुआ। डाक्टर कह रहे थे कि मुझे पूरा विश्वास है कि यह बचेगा नहीं लेकिन न केवल उसका ऑप्रेशन सफल हुआ उसने काफी जिंदगी जी। इस घटना के बाद डाक्टर ने ऑप्रेशन थिएटर में भगवान का स्वरूप लगा दिया। जब भी वह ऑप्रेशन करने जाता तो कहता, ‘‘आप भी मेरे साथ आइए, ऑप्रेशन करने के लिए।’’
आपका धरती पर जन्म हुआ है और अगर आप भगवान को नहीं मानते लेकिन विज्ञान को तो मानते ही होंगे। विज्ञान के बाद प्रज्ञान है। ज्ञान, अनुभव, समझदारी, सहज बुद्धि और अन्तर्दृष्टि का उपयोग करते हुए सोचने और कार्य करने की क्षमता ही प्रज्ञान (विजडम) कहलाती है।
विज्ञान आपको व्यावहारिक ज्ञान की बात तो बता देगा लेकिन उसका रिसोर्स कहां है, कहां से वह आया है, वह प्रज्ञान ही बताएगा। वह अनुभूति ही बताएगी। अनुभूति विज्ञान नहीं बताता। अनुभूति जब तक नहीं होगी तब तक ज्ञान हो ही नहीं सकता। इसका कम्पलीट सायकल है। ज्ञान, विज्ञान और प्रज्ञान।
ज्ञान होने के लिए अनुभूति की आवश्यकता है। जब वह अनुभूति होती है वह ‘स्पीरिच्युलइज्म’ (अध्यात्मवाद) होता है।
एक कहावत है न, ‘गूंगा क्या जाने गुड़ का स्वाद।’ गूंगा गुड़ खाकर बता नहीं सकता क्योंकि वह बोल नहीं सकता लेकिन जो गूंगा नहीं है वह भी गुड़ खाकर गुड़ का स्वाद नहीं बता सकता। वह तो केवल यही कहेगा न कि गुड़ बहुत मीठा है। बहुत स्वादिष्ट है पर जो आनंद की अनुभूति होती है, वह गुड़ खाने पर ही महसूस हो सकेगी।
यह कोई पूजा-पाठ की बात नहीं है, कोई धर्म की बात नहीं है, किसी देवी-देवता की भी बात नहीं है। वह विश्व की एक शक्ति है, जिस शक्ति से हमें ऊर्जा मिलती है, जिस शक्ति ने हमें बचपन से लेकर आज तक आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया, जिस शक्ति ने हमारे जन्म होने से पहले हमारे मां के शरीर में दूध की व्यवस्था कर दी, जिस शक्ति ने हमारे खाने-पीने की सारी व्यवस्था कर दी।
हम एक इमारत बनाते हैं तो पहले उसका नक्शा बनाते हैं फिर उसका नक्शा पास कराना पड़ता है तब जाकर इमारत बनती है। आपको इस धरा पर भेजा है तो आपका ब्लू प्रिंट भी बना होगा। पूरे जीवन का नक्शा तैयार हुआ होगा। इस नक्शे के बारे आपको कुछ मालूम नहीं है इसलिए अगर कोई कहता है कि उसने जीवन में बहुत कुछ किया है तो दरअसल, एक बहुत बड़ी ताकत है जो सब कुछ करवा रही है। वह ईश्वर ही तो है।