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अजब-गजब: लोहार्गल जहां पानी में गल जाती हैं अस्थियां

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 04 Aug, 2022 11:25 AM

lohargal where bones melt in water

लोहार्गल राजस्थान का पवित्र तीर्थ स्थल है। यहां लोग दूर-दूर से अस्थि विसर्जन के लिए आते हैं। पानी में विसर्जन के कुछ घंटों बाद अस्थियां पिघलकर पानी में विलीन हो जाती हैं।

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History of Lohargal Dham: लोहार्गल राजस्थान का पवित्र तीर्थ स्थल है। यहां लोग दूर-दूर से अस्थि विसर्जन के लिए आते हैं। पानी में विसर्जन के कुछ घंटों बाद अस्थियां पिघलकर पानी में विलीन हो जाती हैं।

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Story of Lohargal: लोहार्गल से जुड़ी एक पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत युद्ध के पश्चात पांडवों के मन में महासंहार का दुख था। वे पवित्र होना चाहते थे। भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें बताया कि तीर्थाटन करते हुए भीमसेन की अष्टधातु से बनी गदा जहां पानी में गल जाए तो समझ लेना कि सब लोग शुद्ध हो गए।

पांडव तीर्थाटन पर निकले। तीर्थाटन करते-करते पुष्कर आए। वहां से घूमते-घूमते लोहार्गल आए। वहां स्नान के बाद जब भीमसेन ने अपनी गदा को उस जल में धोया तो वह गलकर पानी हो गई। तभी से इस तीर्थ का नाम लोहार्गल पड़ गया।

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पवित्र स्थल को लेकर मान्यताकहते हैं कि ब्रह्महृद देवताओं को अत्यंत प्रिय तीर्थ था। कलियुग के पापी लोग इस तीर्थ को दूषित न कर दें, इस आशंका से देवताओं ने ब्रह्मा जी से इस तीर्थ की रक्षा करने की प्रार्थना की। ब्रह्मा जी के आदेश पर हिमालय ने अपने पुत्र केतु पर्वत को वहां भेजा। केतु ने अपनी आराधना से तीर्थ के अधिदेवता को प्रसन्न किया और उनकी आज्ञा से तीर्थ को आच्छादित कर दिया। इस प्रकार ब्रह्महृद तीर्थ पर्वत के नीचे लुप्त हो गया लेकिन उसकी सात धाराएं आज भी पर्वत के नीचे से प्रवाहित हो रही हैं।

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Surya Temple सूर्य हैं प्रधान देवता
लोहार्गल के प्रधान देवता सूर्य हैं। शिव मंदिर तथा सूर्य मंदिर के बीच एक कुंड है जिसे सूर्य कुंड कहते हैं। यहां कुंड के पास महाराज युधिष्ठिर द्वारा स्थापित शिव मंदिर है। लोहार्गल से एक मील दूर पर्वत पर केतु मंदिर है। यहां रामानंद सम्प्रदाय के साधुओं का ‘खाकी जी’ का मंदिर है।

सूर्य कुंड में स्नान तथा सूर्यदेव के पूजन के बाद भक्त लोहार्गल परिक्रमा शुरू करते हैं। वे चिराला होते हुए किरोड़ी (कोटि तीर्थ) आते हैं। यहां सरस्वती नदी तथा दो कुंड हैं, जहां एक में गर्म तथा दूसरे में ठंडा पानी रहता है। यहीं पर कोटिश्वर शिव मंदिर है। यहां कर्कोटक नाग ने तपस्या की थी।

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कोट गांव में शाकम्भरी देवी का मंदिर है। यहां शर्करा तथा संध्या दो नदियां बहती हैं। यहां के केरु कुंड तथा रावणेश्वर मंदिर के पास नागकुंड है। इस कुंड के पास टपकेश्वर मंदिर है जहां पहाड़ियो से शिव जी की मूर्ति पर हमेशा जल टपकता रहता है। यहां की कालचारी घाटी होते हुए भक्त (वराह तीर्थ) भीमेश्वर होकर लोहार्गल पहुंचते हैं।

लोहार्गल से दो मील दूर चेतनदास की बावड़ी है। यहां 52 भैरव स्थापित हैं। यहां के ज्ञानवापी तीर्थ में भीम ने भीमेश्वर शिव की स्थापना की थी।

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Lohargal mela: कई अवसरों पर लगता है मेला
यहां समय-समय पर विभिन्न धार्मिक अवसरों जैसे ग्रहण, सोमवती अमावस्या और भाद्रपद अमावस्या के मौके पर मेला लगता है। इसके अलावा माघ मास की सप्तमी पर भी सूर्य सप्तमी महोत्सव मनाया जाता है। इसमें सूर्य नारायण की शोभायात्रा के अलावा सत्संग प्रवचन के साथ विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है।

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Story of Surya Kund and Sun Temple सूर्य कुंड और सूर्य मंदिर से जुड़ी कथा
प्राचीन काल में निर्मित सूर्य मंदिर लोगों के आकर्षण का केंद्र है। इसके पीछे भी एक अनोखी कथा प्रचलित है। प्राचीन काल में काशी में सूर्यभान नामक राजा हुए जिन्हें वृद्धावस्था में दिव्यांग लड़की के रूप में एक संतान हुई। राजा ने भूत-भविष्य के ज्ञाताओं को बुलाकर उसके पिछले जन्म के बारे में पूछा। तब विद्वानों ने बताया कि पूर्व के जन्म में वह लड़की मर्कटी अर्थात बंदरिया थी, जो शिकारी के हाथों मारी गई थी। 

शिकारी उसे एक बरगद के पेड़ पर लटका कर चला गया क्योंकि बंदरिया का मांस अभक्ष्य होता है। हवा और धूप के कारण वह सूख कर लोहार्गल धाम के जलकुंड में गिर गई लेकिन उसका एक हाथ पेड़ पर रह गया। बाकी शरीर पवित्र जल में गिरने से वह कन्या के रूप में आपके यहां उत्पन्न हुई है।

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Surya dev temple राजा ने करवाया सूर्य मंदिर का निर्माण
विद्वानों ने राजा से कहा कि आप वहां पर जाकर उस हाथ को भी पवित्र जल में डाल दें तो इस बच्ची की दिव्यांगता समाप्त हो जाएगी। राजा तुरंत लोहार्गल आए तथा उस बरगद की शाखा से बंदरिया के हाथ को जलकुंड में डाल दिया जिससे उनकी पुत्री का हाथ ठीक हो गया।

राजा इस चमत्कार से अति प्रसन्न हुए। विद्वानों ने बताया कि यह क्षेत्र भगवान सूर्यदेव का स्थान है। तब राजा ने हजारों वर्ष पूर्व यहां पर मंदिर व कुंड का निर्माण करवा कर इस तीर्थ को भव्य रूप दिया।

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