Lokmanya Tilak Punyatithi: लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने स्वतंत्रता आंदोलन को दी थी नई दिशा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 01 Aug, 2024 09:09 AM

lokmanya tilak punyatithi

‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर ही रहूंगा’ का नारा देकर नौजवानों में नया जोश भरने वाले बाल गंगाधर तिलक ने स्वतंत्रता संग्राम में नई जान

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Lokmanya Bal Gangadhar Tilak Punyatithi 2024 : ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर ही रहूंगा’ का नारा देकर नौजवानों में नया जोश भरने वाले बाल गंगाधर तिलक ने स्वतंत्रता संग्राम में नई जान फूंक दी। वह अंग्रेजों के शासन को अभिशाप समझते थे तथा उसे उखाड़ फैंकने के लिए किसी भी मार्ग को गलत नहीं मानते थे। उन्होंने जनजागृति के लिए महाराष्ट्र में गणेश उत्सव तथा शिवाजी उत्सव सप्ताह भर मनाना प्रारंभ किया। 

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लोकमान्य तिलक का जन्म 23 जुलाई, 1856 को रत्नागिरी, महाराष्ट्र के एक चितपावक नामक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। 
उनके पिता श्री गंगाधर तिलक राव एक कुशल अध्यापक थे। बाल गंगाधर तिलक बाल्यावस्था से ही राष्ट्र-भक्त, अत्यंत स्वाभिमानी व प्रतिभा सम्पन्न थे। इनकी शिक्षा पूना के डेक्कन कॉलेज में हुई, जहां 1876 में उन्होंने गणित और संस्कृत में स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके बाद  इन्होंने कानून की पढ़ाई की और 1879 में बॉम्बे विश्वविद्यालय (अब मुंबई) से  डिग्री प्राप्त की। 

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1897 में महाराष्ट्र में प्लेग, अकाल और भूकंप का संकट एक साथ आ गया। लेकिन दुष्ट अंग्रेजों ने ऐसे में भी जबरन लगान की वसूली जारी रखी। इससे तिलक जी का मन उद्वेलित हो उठा। उन्होंने इसके विरुद्ध जनता को संगठित कर आंदोलन छेड़ दिया। नाराज होकर ब्रिटिश शासन ने उन्हें गिरफ्तार कर 18 मास की सजा दी। 

तिलक जी एक अच्छे पत्रकार भी थे। उन्होंने अंग्रेजी में ‘मराठा’ तथा मराठी में ‘केसरी’ साप्ताहिक अखबार निकाले। इनमें प्रकाशित होने वाले विचारों से पूरे महाराष्ट्र और फिर देश भर में स्वतंत्रता और स्वदेशी की ज्वाला भभक उठी। ‘केसरी’ में छपने वाले उनके लेखों की वजह से उन्हें कई बार जेल भेजा गया।
 
मांडले जेल में इन्होंने ‘गीता रहस्य’ नामक ग्रंथ लिखा, जो आज भी गीता पर एक श्रेष्ठ टीका मानी जाती है। इसके जरिए उन्होंने देश को कर्मयोग की प्रेरणा दी। तिलक जी बाल-विवाह के विरोधी तथा विधवा-विवाह के समर्थक थे। स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांति के प्रणेता तिलक जी का मानना था कि स्वतंत्रता भीख की तरह मांगने से नहीं मिलेगी। 

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इन्होंने भारतीय इतिहास को समझने के लिए भूगोल, खगोल शास्त्र तथा संस्कृत का अच्छा ज्ञान आवश्यक बतलाया। वृद्धावस्था में भी वह  स्वतंत्रता के लिए भागदौड़ में लगे रहे। जेल की यातनाओं तथा मधुमेह से उनका शरीर जर्जर हो चुका था। मुम्बई में अचानक वह निमोनिया बुखार से पीड़ित हो गए और 1 अगस्त, 1920 को मुम्बई में ही उन्होंने अंतिम सांस ली। उन्हें, ‘लोकमान्य’ की आदरणीय पदवी भी प्राप्त हुई, जिसका अर्थ है ‘लोगों द्वारा स्वीकृत’। मरणोपरांत श्रद्धांजलि देते हुए गांधी जी ने उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा और जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय क्रांति का जनक बतलाया।

देश की जनता को आजादी के लिए जगाने वाले भारत मां के लाल, महान क्रांतिकारी, शिक्षक, विचारक, राष्ट्र भक्त महान लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी को उनकी पुण्यतिथि पर कृतज्ञ देशवासी स्मरण कर रहे हैं।

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