Parshuram Jayanti: जानिए, शस्त्र एवं शास्त्र के ज्ञाता भगवान परशुराम की कुछ रोचक बातें

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 04 May, 2024 08:14 AM

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जगत के कल्याणार्थ एवं धर्म संस्थापना के उद्देश्य से भगवान नारायण के छठे अवतार के रूप में समस्त सनातन जगत के आराध्य भगवान परशुराम जी का अवतरण

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Parshuram Jayanti 2024: जगत के कल्याणार्थ एवं धर्म संस्थापना के उद्देश्य से भगवान नारायण के छठे अवतार के रूप में समस्त सनातन जगत के आराध्य भगवान परशुराम जी का अवतरण वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ जिसे हम अक्षय तृतीया भी कहते हैं। 

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सहस्रबाहू कार्तवीर्य अर्जुन ने अनेकों प्रकार की सेवा-शुश्रषा कर भगवान नारायण के अंशावतार दत्तात्रेय को प्रसन्न कर उनसे एक हजार भुजाएं तथा युद्ध में अपराजेय रहने का वरदान प्राप्त कर लिया।

एक बार वह वन में आखेट के लिए गया और भगवान परशुराम जी के पिता जमदग्नि जी के आश्रम में पहुंचा। वहां मुनि के आश्रम में कामधेनु गाय के प्रताप से मुनि का ऐश्वर्य देखकर वह चकित रह गया तथा बलपूर्वक उसे छीन कर अपने साथ ले गया। जब भगवान परशुराम आश्रम लौटे तो पिता से सहस्रबाहू की धृष्टता जानी। तब परशुराम जी ने कार्तवीर्य अर्जुन को उसके नगर में प्रवेश करने से पूर्व ही रोक कर उससे युद्ध किया और उसका वध कर दिया। जब कार्तवीर्य अर्जुन के पुत्रों को पता चला तो उन्होंने परशुराम जी की अनुपस्थिति में ऋषि जमदग्नि का वध कर दिया। तब माता रेणुका ने अपने पुत्र का आह्वान किया। इस पर भगवान परशुराम जी ने प्रजा को दुख पहुंचाने वाले आततायी शासक वर्ग को दंडित किया। परशुराम जी धर्म, न्याय एवं सामाजिक समानता के साक्षात विग्रह हैं। जब-जब भी समाज के गरीब, असहाय शोषित वर्ग पर अत्याचार हुआ, तब-तब इन्होंने प्रजा का शोषण करने वाले आततायी शासकों को दंडित किया। 

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मानवता के रक्षक भगवान परशुराम जी ने साक्षात् नारायण रूप भगवान श्री राम को धनुष प्रदान किया जिससे उन्होंने असुरों का वध किया। भारतीय वैदिक सनातन संस्कृति सदैव से ही यज्ञ-परायण रही है। 
 
ऊँ तत्सदिति निर्देशो  ब्रह्मणस्त्रिविध: स्मृत:।
ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिता: पुरा।।
 
ऊँ तत्, सत्
 
भगवान परशुराम जी ने विश्व के कल्याण के लिए अनेकानेक यज्ञ किए और दक्षिणास्वरूप पृथ्वी ब्राह्मणों को दान दी। उन्होंने पृथ्वी पर सत्य, समानता, दया, करुणा तथा न्याययुक्त धर्म की स्थापना की। सदैव लोकहित में तत्पर रहने वाले भगवान परशुराम जी की भक्ति और शक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपने पुत्र के रूप में मान्यता दी।
 
एक समय भगवान परशुराम जी और गौरीनंदन गणेश जी के साथ हुए युद्ध में भगवान गणेश जी का एक दांत टूट गया, जिससे वह एकदंत कहलाए। सांदीपनी ऋषि के आश्रम में जाकर परशुराम महाराज ने भगवान श्री कृष्ण जी को सुदर्शन चक्र प्रदान किया। भगवान श्री हरि विष्णु जी के दसवें कल्कि अवतार में भी भगवान परशुराम जी उन्हें वेद-वेदाङ्ग की शिक्षा प्रदान करेंगे। अजर अमर अविनाशी भगवान परशुराम जी अष्ट चिरंजीवियों में शामिल हैं। उन्होंने ही महाभारत के महान योद्धाओं भीष्म पितामह तथा कर्ण को शस्त्र-शास्त्र की विद्या प्रदान की है। इनका पावन चरित्र महाभारत, रामायण तथा अष्दादश पुराणों में प्राप्त होता है। भगवान परशुराम साक्षात वेदमूर्ति भगवान विष्णु हैं तथा साक्षात् रुद्ररूप हैं और अपने भक्तों के कल्याणार्थ महेंद्र पर्वत पर निवास करते हैं। वह शस्त्र एवं शास्त्र ज्ञान के ज्ञाता तपोनिधि भगवान परशुराम जी की जयंती पर शुद्ध हृदय भक्त उनका पूजन कर उनकी विशेष कृपा प्राप्त करते हैं।

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