भगवान शिव की थी एक बहन जानिए, उन्हें देवी पार्वती ने क्यों किया कैलाश से विदा !

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 May, 2024 10:12 AM

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शिव शंकर से विवाह के उपरांत माता पार्वती अपना भरा-पूरा परिवार छोड़ कर कैलाश आ गई। वह स्वयं को बहुत तन्हा महसूस करती। उन्हें माता-पिता

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Sister in law of mother Parvati: शिव शंकर से विवाह के उपरांत माता पार्वती अपना भरा-पूरा परिवार छोड़ कर कैलाश आ गई। वह स्वयं को बहुत तन्हा महसूस करती। उन्हें माता-पिता का दुलार सखी- सहेलियों का साथ बहुत याद आता।
 
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एक दिन उनके मन में ख्याल आया काश ! शिव शंकर की कोई बहन होती, जिसके साथ उनका दिल लगा रहता। वह उनसे दिल की बातें करती। कुछ अपनी कहती कुछ उनकी सुनती मगर ऐसा संभव न था क्योंकि भगवान शिव तो अजन्मे थे। तो उनकी बहन कैसे हो सकती थी। माता पार्वती ने अपने दिल की बात दिल में ही रखी शिव शंकर तो अन्तर्यामी हैं। उनसे किसी के दिल की बात छुपी नहीं रह सकती। शिव शंकर स्त्री स्वभाव से भी भली प्रकार से वाकिफ थे।

उन्होंने पार्वती से पूछा,"कोई समस्या है देवी तो मुझे बताओ?"

माता पार्वती समझ गई की शिव शंकर ने उनके दिल की बात जान ली है। वह बोली, "अगर आप मेरे मन की बात जान ही गए हैं तो भी आप मेरी इच्छा पूर्ण नहीं कर सकते।"
 
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शिव शंकर मुस्कराए और बोले, " मैं तुम्हें ननद तो लाकर दे दूं, लेकिन क्या आप उसके साथ निभा पाएंगी?"

माता पार्वती ने कहा," मैं क्यों न निभा पाऊंगी उसके साथ। वह तो मेरे सुख-दुख की साथी होगी। मेरी बहनों के समान ही मैं उससे प्रेम करूंगी।"

शिव शंकर बोले," अगर आपकी यह ही इच्छा है तो मैं अपनी माया से आपको एक ननद ला देता हूं।"

उसी समय शिव शंकर ने अपनी माया से एक देवी को उत्पन्न किया। उस देवी का रूप बहुत वचित्र था। वह बहुत मोटी थी और उनके पैरों में ढेरों दरारें पड़ी हुई थीं। भगवान शिव ने उनका नाम रखा असावरी देवी।
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माता पार्वती अपनी ननद को अपने सम्मुख देख कर बहुत प्रसन्न हुई। उनकी खुशी का कोई ठिकाना ही न रहा। वह असावरी देवी से बोली, " बहन ! जाओ आप स्नान कर आओ मैं आपके लिए अपने हाथों से भोजन तैयार करती हूं।"

असावरी देवी स्नान करके वापिस आई तो माता पार्वती ने उन्हें भोजन परोसा। असावरी देवी ने जब भोजन करना आरंभ किया तो माता पार्वती के भंडार में जो कुछ भी था सब खाली कर दिया। महादेव और अन्य कैलाश वासियों के लिए कुछ भी शेष न रहा। ननद के ऐसे व्यवहार से माता पार्वती के मन को बहुत ठेस लगी मगर वह कुछ बोली नहीं।

असावरी देवी को पहनने के लिए माता पार्वती ने नए वस्त्र भेंट किए मगर वह इतनी मोटी थी की उन्हें वस्त्र छोटे पड़ गए। माता पार्वती उनके लिए दूसरे वस्त्र लेने गई तो ननद का मन हुआ क्यों न भाभी के साथ हंसी-ठिठोली की जाए। उसने अपनी भाभी को अपने पैरों की दरारों में छुपा लिया। पार्वती जी के लिए दरारों में सांस लेना भी मुश्किल हो गया।

उसी समय उधर से शिव शंकर आ गए और असावरी देवी से बोले,"आपको मालुम है पार्वती कहां है?"
 
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असावरी देवी ने शरारत भरे लहजे में कहा," मुझे क्या मालुम कहां है भाभी?"

शिव शंकर समझ गए असावरी देवी कोई शरारत कर रही है। उन्होंने कहा, "सत्य बोलो मैं जानता हूं तुम झूठ बोल रही हो।"

असावरी देवी जोर-जोर से हंसने लगी और जोर से अपना पांव जमीन पर पटक दिया। इससे पैर की दरारों में दबी माता पार्वती झटके के साथ बाहर आ कर गिर गई। ननद के क्रूरता भरे व्यवहार से माता पार्वती का मन बहुत आहत हुआ। वह गुस्से में शिव शंकर से बोली,"आप की विशेष कृपा होगी अगर आप अपनी बहन को ससुराल भेज दें। मुझसे गलती हो गई जो मैंने ननद की इच्छा की।"

शिव शंकर ने असावरी देवी को कैलाश से विदा कर दिया। प्राचीन काल से आरंभ हुआ ननद और भाभी के बीच नोक-झोंक का सिलसिला आज तक चल रहा है।  
 
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