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शनिदेव की वक्र दृष्टि बचने के लिए भगवान शिव बने हाथी, पढ़ें रोचक कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 30 Jul, 2024 08:28 AM

lord shiva and shani dev story

सनातन धर्म में नौ ग्रहों में न्यायधीश की भूमिका निभाने वाले शनिदेव पर बहुत सारे वृतांत पाये जाते हैं परन्तु शनिदेव के गुरू भगवान शिव जी के द्वारा ही शनिदेव को नौ ग्रहों का स्वामी होने का भी आर्शीवाद प्राप्त है।

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Lord shiva and shani dev story: सनातन धर्म में नौ ग्रहों में न्यायधीश की भूमिका निभाने वाले शनिदेव पर बहुत सारे वृतांत पाये जाते हैं परन्तु शनिदेव के गुरू भगवान शिव जी के द्वारा ही शनिदेव को नौ ग्रहों का स्वामी होने का भी आर्शीवाद प्राप्त है। इसी के साथ-साथ स्कंद पुराण में इन दोनों की एक अदभुत कथा का भी वर्णन मिलता है। जिसमें कि शनि के प्रभाव व उनकी वक्र दृष्टि का उल्लेख किया गया है तथा जिसमें शनिदेव का बल धरती से लगभग 95 गुणा अधिक है। जिसकी दृष्टि से मानव हो या दानव या फिर कोई देव या देवों के देव महादेव कोई भी नहीं बच सकता।

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ऐसा माना जाता है कि नौ ग्रहों में सबसे धीमी गति से चलने वाले शनि न्यायप्रिय देव हैं। यह केवल उन्हीं को परेशान करते हैं जिनके कर्म बुरे होते हैं। देव कृपा से नये कर्म बनाकर एकत्रित कर्मों को काटा जा सकता है। सुल्तानपुर लोधी स्थित भृगु संहिता में महार्षि भुगु जी द्वारा यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जिस प्रकार एक अच्छा लोहा गर्म और बुरे लोहे को काट सकता है। ठीक उसी प्रकार अच्छे कर्म भी बुरे कर्मों के प्रभाव को समाप्त कर सकते हैं। ऐसा तभी ही हो पाता है, जब कोई गुरू या देव आत्मा उस जीव पर कृपा करे।

एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार शनिदेव भगवान शिव जी के पास कैलाश पहुंचे। शिव जी को प्रणाम करके उन्हें ज्ञात करवाया कि प्रभु कल से मैं आपकी राशि में आने वाला हूं और मेरी वक्र दृष्टि आप पर पड़ने वाली है। शनिदेव की बात सुनकर भगवान आवाक रह गये और मंद-मंद मुस्काकर कहा- हे शनिदेव! आपकी वक्र दृष्टि कितने समय तक मुझ पर रहेगी। तब शनिदेव ने कहा कि हे प्रभु कल सवा प्रहर के लिये ही आप पर मेरी वक्र दृष्टि रहेगी। यह सुनकर भगवान भोलेनाथ शनिदेव की वक्र दृष्टि से बचने का उपाय सोचने लग गये और अगले ही दिन वे धरती लोक पर पधारे और एक हाथी का रूप धारण कर लिया ताकि शनिदेव की वक्र दृष्टि से बचा जा सके।

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भगवान शंकर को हाथी के रूप में सवा प्रहर तक का समय व्यतीत होने पर शिव जी ने सोचा अब सारा दिन व्यतीत हो चुका है और शनिदेव की वक्र दृष्टि का उन पर कोई भी प्रभाव नहीं हो पाया। तब भगवान शिव पुनः कैलाश वापिस लौट गये। भगवान शंकर अति प्रसन्न मुद्रा में कैलाश पहुंचे तो उन्होंने वहां पर शनिदेव को उनका इंतजार करते हुए पाया व शंकर जी को देखकर शनिदेव को प्रणाम किया।

शंकर जी ने कहा हे शनिदेव - आपकी वक्र दृष्टि का मुझ पर कोई भी नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा। यह सुनकर शनि देव मुस्कुराये और कहा कि मेरी वक्र दृष्टि से कोई भी नहीं बच सकता चाहे कोई भी क्यों न हो ?
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तब शनिदेव ने कहा, "हे प्रभु! मेरी ही दृष्टि के प्रभाव से आपको सवा प्रहर के लिये देव योनि को त्यागकर पशु योनी में जाना पड़ा, यही मेरी वक्र दृष्टि का आप पर प्रभाव था।"

शनिदेव की न्यायप्रियता को देखकर भगवान शिव जी अति प्रसन्न हुए व शनिदेव को सूर्य से भी ज्यादा प्रतापी होने का वरदान दे दिया।

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Sanjay Dara Singh
AstroGem Scientists
LLB., Graduate Gemologist GIA (Gemological Institute of America), Astrology, Numerology and Vastu (SSM)

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