Edited By Jyoti,Updated: 10 Apr, 2020 12:01 PM
रामायण, जिसमें श्री राम जी के जन्म से लेकर उनके जीवन में हुई सब महत्वपूर्ण घटानओं का वर्णन मिलता है। अगर इसके सबसे प्रचलित प्रसंगों की बात करें तोवो है रावण द्वार श्री राम की भ्राया माता सीता का अपहरण करना है।
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
रामायण, जिसमें श्री राम जी के जन्म से लेकर उनके जीवन में हुई सब महत्वपूर्ण घटानओं का वर्णन मिलता है। अगर इसके सबसे प्रचलित प्रसंगों की बात करें तोवो है रावण द्वार श्री राम की भ्राया माता सीता का अपहरण करना है। नहीं, नहीं हम आपको इस संदर्भ से जी कोई जानकारी नहीं बताने वाल हैं। मगर हां, जो भी बताने वाले हैं यकीनन उस पर आज तक किसी न विचार नहीं किया होगा। आप सब ये तो जानते हैं कि श्री राम ने 14 साल का वनवास भोगा था। परंतु क्या आपको ये पता है कि इस वनवास काल में श्री राम किस किस जगह गए थे? कहां कहां उनके शुभ चरण कहां कहां पड़े? अगर नहीं तो चलिए हम आपको बताते हैं 14 वर्ष का ये लंबा वनवास श्री राम ने कहां बिताया।
धार्मिक ग्रंथों मे लगभग ऐसी 200 से भी अधिक स्थलों का व्रर्णन किया गया है जो श्री राम के वनवास काल से जुड़े हुए हैं। मान्यताओं का मानें तो आज भी इनमें से कई तत्संबंधी स्मारक स्थल विद्यमान हैं, जहां श्रीराम और सीता रुके या रहे थे। आइए जानते हैं इन्हीं में से कुछ प्रमुख स्थानों के बारे में-
तमसा नदी
बताया है तमसा नदी अयोध्या से 20 कि.मी की दूरी पर स्थित है। यहां पर उन्होंने नाव से नदी पार की। यहा कारण है कि रामायण काल में इस नदी को अधिक सम्मान के साथ-साथ महत्व पाया।
श्रृंगवेरपुर तीर्थ
रामायण में वर्णित ये स्थान प्रयागराज से 20-22 किलोमीटर दूर है, जहां निषादराज गुह का राज्य था। यहीं पर गंगा के तट पर श्रीराम ने केवट से गंगा पार कराने को कहा था। बता दें वर्तमान में श्रृंगवेरपुर को सिंगरौर के नाम से जावा जाता है।
कुरई गांव
धार्मिक कथाओं के अनुसार श्री राम गंगा पार करके सबसे पहले कुरई पहुंचे थे,जहां उन्होंने विश्राम किया था।
प्रयागराज
कुरई से आगे चलकर श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सहित प्रयाग पहुंचे थे। प्रयाग को लम्बे समय तक इलाहाबाद कहा गया लेकिन अब फिर यहां का नाम बदलकर प्रयागराज हो गया है।
चित्रकूट
कथाओं के अनुसार इसके बाद प्रभु श्रीराम ने अपने भ्राता लक्ष्मण व भ्राया सीता के साथ प्रयाग संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और चित्रकूट पहुंचे। बता दें शास्त्रों में इस स्थान को लेकर जो वर्णन है उसके मुताबिक ये वो स्थान है जहां श्री राम को वनवास काल से वापिस ले जाने के लिए भरत अपनी पूरी सेना सहित पधारे थे। बताया जाता है अपने पुत्र राम के वियोग में राजा दशरथ का देहांत जब हुआ तब श्री राम अपने भाई व पत्नी के संग यहां यानि चित्रकूट में ही निवास कर रहे थे। और यहीं से महात्मा भरत यहां से राम की चरण पादुका लेकर वापिस अयोध्या लौटे थे।
सतना
कथाओं के अनुसार चित्रकूट के पास ही सतना जो कि मध्यप्रदेश में स्थित है, पर ऋषि अत्रि का आश्रम था। हालांकि अनुसूइया पति महर्षि अत्रि चित्रकूट के तपोवन में रहा करते थे। कहा जाता है आज भी 'रामवन' नामक स्थान यहां पर मौज़ूद है जहां श्री राम वनवास काल में रूके थे और देवी सीता ने माता अनुसूइया भी वस्त्र और आभूषण भेंट के रूप में पाए थे।