Maharishi Valmiki Jayanti: जानें, कैसे हुई श्री रामायण की रचना

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 09 Oct, 2022 07:13 AM

lord valmiki jayanti

भारतीय संस्कृति के सत्य स्वरूप का गुणगान करने, जीवन का अर्थ समझाने, व्यवहार की शिक्षा से ओत-प्रोत ‘वाल्मीकि-रामायण’ एक महान् आदर्श ग्रंथ है। उसमें भारतीय संस्कृति का स्वरूप कूट-कूट कर भरा है। आदिकवि

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Maharishi Valmiki Jayanti 2022: भारतीय संस्कृति के सत्य स्वरूप का गुणगान करने, जीवन का अर्थ समझाने, व्यवहार की शिक्षा से ओत-प्रोत ‘वाल्मीकि-रामायण’ एक महान् आदर्श ग्रंथ है। उसमें भारतीय संस्कृति का स्वरूप कूट-कूट कर भरा है। आदिकवि भगवान वाल्मीकि जी ने श्रीराम चंद्र जी के समस्त जीवन-चरित को हाथ में रखे हुए आंवले की तरह प्रत्यक्ष देखा और उनके मुख से वेद ही रामायण के रूप में अवतरित हुए।

PunjabKesari Maharishi Valmiki Jayanti

1100  रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें

वेद: प्राचेतसादासीत् साक्षाद् रामायणात्मना॥

‘रामायण कथा’ की रचना भगवान वाल्मीकि जी के जीवन में घटित एक घटना से हुई, जब वह अपने शिष्य ऋषि भारद्वाज जी के साथ एक दिन गंगा नदी के पास तमसा नदी पर स्नान करने के लिए जा रहे थे तब वहां उन्होंने क्रौंच पक्षियों के एक जोड़े को प्रेम में आनंदमग्न देखा। तभी व्याध्र ने इस जोड़े में से नर क्रौंच को अपने बाण से मार गिराया। क्रौंच खून से लथपथ भूमि पर आ पड़ा और उसे मृत देखकर क्रौंची ने करुण-क्रंदन किया। क्रौंची का करुण क्रंदन सुनकर महर्षि भगवान वाल्मीकि जी का करुणापूर्ण हृदय द्रवित हो उठा और उनके मुख से अचानक यह श्लोक (अनुष्टुप छंद) फूट पड़ा :

 ‘‘हे निषाद् (शिकारी)! तू भी अनन्त-काल तक प्रतिष्ठा को प्राप्त नहीं करेगा क्योंकि तूने संगिनी के प्रेम में मग्न एक क्रौंच पक्षी का वध कर दिया है।’’

PunjabKesari Maharishi Valmiki Jayanti

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम् शाश्वती: ....

जब भगवान वाल्मीकि बार-बार उस श्लोक के चिंतन में ध्यान मग्न थे, उसी समय प्रजापिता ब्रह्माजी मुनिश्रेष्ठ वाल्मीकि जी के आश्रम में आ पहुंचे। मुनिश्रेष्ठ ने उनका सत्कार अभिवादन किया तब ब्रह्मा जी ने कहा, ‘‘हे मुनिवर! विधाता की इच्छा से ही महाशक्ति सरस्वती आपकी जिह्वा पर श्लोक बनकर प्रकट हुई हैं। इसलिए आप इसी छंद (श्लोक) में रघुवंशी श्री रामचंद्र जी के जीवन-चरित की रचना करें। संसार में जब तक इस पृथ्वी पर पहाड़ और नदियां रहेंगी तब तक यह रामायण कथा गाई और सुनाई जाएगी। ऐसा काव्य ग्रंथ न पहले कभी हुआ है और न ही आगे कभी होगा।’’

न ते वागनृता काव्ये काचिदत्र भविष्यति।

भगवान वाल्मीकि जी ने संकल्प लिया कि अब मैं इसी प्रकार के छन्दों में रामायण काव्य की रचना करूंगा और वह ध्यानमग्न होकर बैठ गए। अपनी योग-साधना तथा तपोबल के प्रभाव से उन्होंने श्री रामचंद्र, सीता माता व अन्य पात्रों के सम्पूर्ण जीवन-चरित को प्रत्यक्ष देखते हुए रामायण महाकाव्य का निर्माण किया।

भगवान वाल्मीकि ने नई भाषा, नए छंद, नए कथ्य, अंदाज और भाव भूमि के साथ विश्व का पहला महाकाव्य लिखकर आदि कवि होने का गौरव पाया। ‘रामायण’ में भगवान वाल्मीकि जी को ‘महर्षि’,  ‘भगवान’, ‘महाप्रज्ञ’, ‘तपस्वी’, ‘आदिकवि’, ‘मुनि पुंगव’, ‘योगी’, ‘प्रभु’ तथा ‘गुरु’ आदि शब्दों से सम्बोधित किया गया है। 

उनका आश्रम गंगा नदी के निकट बहने वाली तमसा नदी के किनारे पर था। वाल्मीकि-रामायण में चौबीस हजार श्लोक हैं जिसके एक हजार श्लोकों के बाद गायत्री मंत्र के एक अक्षर का ‘सम्पुट’ लगा हुआ है, इसके सात कांड, सौ उपख्यान, पांच सौ सर्ग हैं जो ‘अनुष्टुप छंद’ में हैं।

PunjabKesari Maharishi Valmiki Jayanti

भगवान वाल्मीकि जी ने जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे में हमें रामायण के भिन्न-भिन्न पात्रों के चरित्रों द्वारा अपनी रामायण कथा में साकार करके समझाया है। रामायण के नायक श्रीराम चंद्र जी हैं जिनके माध्यम से उन्होंने गृहस्थ धर्म, राज धर्म तथा प्रजाधर्म आदि का जो चित्र खींचा है, वह विलक्षण है। पारिवारिक मर्यादाओं के लिए सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में वाल्मीकि रामायण से बढ़कर श्रेष्ठ ग्रंथ पृथ्वी पर कोई नहीं है। उन्होंने सारे संसार के लिए युगों-युगों तक की मानव संस्कृति की स्थापना की है।

एक ग्रंथ में लिखा है,  ‘‘उन विशुद्ध विज्ञान वाले भगवान वाल्मीकि जी की ‘कवीश्वर’ के रूप में पूजा करनी चाहिए। वह गौर वर्ण, तपोनिष्ठ तथा शांत स्वरूप में विराजमान हैं। उन्होंने देश भर में विभिन्न स्थानों पर अपने आश्रमों में विद्या केन्द्र स्थापित किए तथा वह इनके ‘कुलपति’ थे। इन विद्या केन्द्रों में दूर-दूर से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे।’’

भगवान वाल्मीकि जी की ‘रामायण कथा’ भारतीय चिंतन का वह मेरुदंड है जिससे सम्पूर्ण भारतीय साहित्य, कला, संस्कृति के सभी आदर्श विद्यमान हैं जिसने भारतीय जन-जीवन को ही नहीं वरन् सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित किया है। 

PunjabKesari Maharishi Valmiki Jayanti

आज हम ‘वाल्मीकि रामायण’ का अनुसरण कर अपनी विकृत सामाजिक व्यवस्था को दूर कर एक सभ्य समाज का निर्माण कर सकते हैं। ‘रामायण कथा’ के माध्यम से हमारा साक्षात्कार आदर्श पात्रों से होता है जैसे ‘‘आदर्श पिता, आज्ञाकारी पुत्र, पति पर समर्पित पत्नी तथा भाई के समक्ष नतमस्तक छोटे भाई का आदर्श चरित्र-चित्रण भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। जीवन कैसे जीना है, समाज में, परिवार में कैसे रहना है? यही मुख्य बिन्दु हमें रामायण के विभिन्न पात्रों के चरित्र द्वारा अपनी रामायण कथा में साकार करके समझाया है।’’

करुणा सागर भगवान वाल्मीकि जी भारतीय सभ्यता व संस्कृति के संरक्षक थे। उनकी ‘रामायण कथा’ में सीता जी का चरित्र अद्वितीय है। ‘स्त्री चरित्र’ के जितने भारतीय आदर्श हैं वे सब के सब सीता जी के चरित्र से ही उत्पन्न हुए हैं और ‘सीता’ सदा हमारी राष्ट्रीय देवी बनी रहेंगी। भगवान वाल्मीकि जी द्वारा रचा गया ‘सीता’ जी का यह करुणामयी महत् चरित्र प्रशंसनीय एवं वंदनीय है। इसलिए ‘रामायण’ में उन्होंने सीता जी के चरित्र को महान उद्घोषित किया है।

विश्व आज जिन स्थितियों से गुजर रहा है उसके लिए रामायण जैसे धर्म ग्रंथ को घर-घर में स्थापित करना चाहिए ताकि हमारी आने वाली नस्लें संस्कारवान हो सकें। रामायण के आदर्श को थोड़ा भी आत्मसात किया जाए तो न केवल समाज का ही, वरन् राष्ट्र तथा विश्व का स्वरूप सुंदरतम हो सकता है।    

PunjabKesari kundli

Related Story

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!