Edited By Jyoti,Updated: 20 Oct, 2018 03:50 PM
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पहाड़ों की देवी या कहें कि अपने भक्तों की लाज बचाने वाली मां वैष्णो, जिनके दर्शन करने लोग दूर-दूर से आते हैं। यह धाम जम्मू के कटरा नगर में स्थित है। यहां हर साल भक्तों का आना-जाना लगा रहता है लेकिन नवरात्रों में दिन-रात यहां भक्तों के जयकारे सुनने...
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पहाड़ों की देवी या कहें कि अपने भक्तों की लाज बचाने वाली मां वैष्णो, जिनके दर्शन करने लोग दूर-दूर से आते हैं। यह धाम जम्मू के कटरा नगर में स्थित है। यहां हर साल भक्तों का आना-जाना लगा रहता है लेकिन नवरात्रों में दिन-रात यहां भक्तों के जयकारे सुनने को मिलते हैं।
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वैष्णो देवी का मंदिर कटरा से 2500 फीट की उंचाई पर है। अधिकतर श्रद्धालु मंदिर की चढ़ाई पैदल ही रातों-रात तय करते हैं। जो लोग पैदल नहीं चल सकते उनके लिए बैटरी कार और घोड़े किराए पर मिल जाते हैं। जो लोग माता के जल्दी दर्शन करना चाहते हैं वो हेलीकॉप्टर द्वारा यात्रा करते हैं। इसका खर्च 700 से 1000 तक आता है। वैष्णो मां की यात्रा कर रहें श्रद्धालुओं के लिए खाने-पीने की विशेष व्यवस्था है। आमतौर पर श्रद्धालु कटरा पहुंच कर भोजन ग्रहण कर ही मां वैष्णो दरबार की यात्रा शुरू करते हैं। दरबार पहुंचते ही हर एक भक्त को अजीब सी शांति महसूस होती है।
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पौराणिक कथा के अनुसार एक बार मां वैष्णो के परम भक्त श्रीधर को माता ने भण्डारा करने को कहा। माता की बात मानकर श्रीधर ने पूरे गांव को आमंत्रित किया और साथ ही उन्होंने अपने गुरू गोरखनाथ और उनके शिष्य भैरवनाथ को भी यज्ञ का निमंत्रण दिया। सभी गांववासी हैरान थे कि ये गरीब ब्राह्मण इतना बड़ा यज्ञ कैसे संपन्न करेगा, यज्ञ वाले दिन सारे गांव वासी श्रीधर के घर पधारे। गोरखनाथ और उनके शिष्य भैरवनाथ व अन्य शिष्यों ने भी यज्ञ में हिस्सा लिया।
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श्रीधर अब परेशान थे कि इतने लोगों का भोजन कहां से आएगा, वो मन ही मन मां को याद करने लगे। इतने में मां वैष्णो स्वयं कन्या के रूप में श्रीधर के घर उपस्थित हुई। भण्डारा शुरू होने पर मां ने भक्त जनों को प्रसाद बांटना शुरू किया। श्रीधर हैरान थे कि इतना भोजन कहां से आ रहा है। लोग खाना खाकर जा रहे थे। वहीं बैठे भैरवनाथ मदिरा और मास मांग रहे थे। माता के लाख समझाने पर भी वो नहीं माना। गुस्से में आकर वो उस कन्या को पकड़ने लगा तो मां त्रिकुट पर्वत की ओर भागी और वहां एक गुफा में मां ने 9 महीने तक तपस्या की।
इस पवित्र गुफा को अर्धक्वांरी के नाम से जाना जाता है। इस गुफा के बाहर हनुमान पहरा दे रहे थे। जब भैरवनाथ ने अंदर जाने की कोशिश की तो हनुमान और भैरवनाथ के बीच युद्ध हुआ। इसके बाद भी जब भैरवनाथ ने हार न मानी तो मां स्वयं महाकाली के रूप में प्रकट हुई और भैरवनाथ का वध किया। जिस पर्वत पर भैरवनाथ का सिर गिरा वो स्थान भैरवनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।
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जिस जगह पर माता ने भैरवनाथ का वध किया वह स्थान वैष्णो देवी दरबार के नाम से प्रसिद्ध है। इस पवित्र गुफा में मां महाकाली, महासरस्वती और महालक्ष्मी पिण्डियों के रूप में विराजमान हैं। इन तीनों रूपों की मां वैष्णो के रूप में पूजा की जाती है। सच्चे दिल से आए भक्त मां के दरबार से कभी भी खाली हाथ नहीं लोटते।
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