Madan Mohan Malviya jayanti: महान राष्ट्रभक्त एवं सनातन संस्कृति के रक्षक थे महामना पं. मदन मोहन मालवीय

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 25 Dec, 2024 09:03 AM

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Madan Mohan Malviya jayanti 2024: भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बहुत-सी महान विभूतियों ने भारतीय संस्कृति की अलख जगा कर जनमानस में राष्ट्रीय चेतना उत्पन्न करने में महान योगदान दिया, जिनमें महान दार्शनिक, शिक्षाविद, राष्ट्र भक्त एवं स्वतंत्रता...

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Madan Mohan Malviya jayanti 2024: भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बहुत-सी महान विभूतियों ने भारतीय संस्कृति की अलख जगा कर जनमानस में राष्ट्रीय चेतना उत्पन्न करने में महान योगदान दिया, जिनमें महान दार्शनिक, शिक्षाविद, राष्ट्र भक्त एवं स्वतंत्रता सेनानी तथा भारतीय वैदिक सनातन संस्कृति के मर्मज्ञ एवं रक्षक महामना पं. मदन मोहन मालवीय जी का नाम बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है। मालवीय जी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रणेता थे। उनका जन्म प्रयागराज में 25 दिसम्बर, 1861 को पं. ब्रजनाथ व मूनादेवी के यहां हुआ था।  

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सनातन धर्म व हिन्दू संस्कृति की रक्षा और संवर्धन में मालवीय जी का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। गांधी जी मालवीय जी का बड़े भाई तुल्य सम्मान करते थे। गांधी जी ने ही मालवीय जी को महामना की उपाधि से सुशोभित किया था।

अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ इन्होंने गांधी जी द्वारा चलाए गए सविनय अवज्ञा आंदोलन तथा असहयोग आंदोलन में सक्रियता से भाग लिया तथा इनको अंग्रेजी सरकार ने बहुत बार गिरफ्तार किया। पूरे भारतवर्ष में इन्होंने भ्रमण कर राष्ट्रीय चेतना उत्पन्न करने में महान योगदान दिया। 

‘सत्यमेव जयते’ को राष्ट्रीय उद्घोष अपनाने का आह्वान उन्होंने ही किया था। जिसे बाद में राष्ट्र के आदर्श वाक्य के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त हुई।  जब ब्रिटिश सरकार ने ‘चौरी-चौरा कांड’ में लगभग 170 लोगों को फांसी की सजा सुनाई, तब पंडित मदन मोहन मालवीय ने मुकद्दमे की पैरवी कर लगभग 151 लोगों को बचाया। 

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मालवीय जी पवित्र नदी गंगा की रक्षा के लिए लगातार सक्रिय रहे। उन्होंने 1913 में हरिद्वार में बांध बनाने की अंग्रेजों की योजना का विरोध किया था। उनके दबाव में अंग्रेज सरकार को झुकना पड़ा था। इनके द्वारा स्थापित श्री गंगा सभा आज भी हरिद्वार में कार्य कर रही है। उन्होंने मंदिरों में जातिगत और अन्य सामाजिक बाधाओं के उन्मूलन के लिए काम किया। गोधन की रक्षा तथा तीर्थों के जीर्णोद्धार के लिए मालवीय जी का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है।

 12 नवंबर, 1946 को इनका निधन हो गया। उन्हें वर्ष 2014 में मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। राष्ट्र सदा उनके द्वारा मातृ भूमि की सेवा में किए गए महान कार्य तथा उनके सद्आचरण से प्रेरणा लेता रहेगा। 

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