Edited By Lata,Updated: 20 Mar, 2020 09:45 AM
महाकवि कालिदास के कंठ में साक्षात सरस्वती का वास था। शास्त्रार्थ में उन्हें कोई पराजित नहीं कर सकता था।
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महाकवि कालिदास के कंठ में साक्षात सरस्वती का वास था। शास्त्रार्थ में उन्हें कोई पराजित नहीं कर सकता था। अपार यश, प्रतिष्ठा और सम्मान पाकर एक बार कालिदास को अपनी विद्वता का घमंड हो गया। उन्हें लगा कि उन्होंने विश्व का सारा ज्ञान प्राप्त कर लिया है और अब सीखने को कुछ बाकी नहीं बचा। एक बार पड़ोसी राज्य से शास्त्रार्थ का निमंत्रण पाकर कालिदास रवाना हुए। गर्मी का मौसम था, लगातार यात्रा से उन्हें प्यास लग गई। थोड़ी दूरी तय करने पर उन्हें एक टूटी झोंपड़ी दिखाई दी और झोंपड़ी के सामने एक कुआं भी था। उसी समय झोंपड़ी से एक छोटी बालिका निकली और कुएं से पानी भरकर जाने लगी।
कालिदास उसके पास जाकर बोले-बालिके! बहुत प्यास लगी है, थोड़ा पानी पिला दे। बालिका ने पूछा-आप कौन हैं? मैं आपको जानती भी नहीं, पहले अपना परिचय दीजिए। कालिदास बोले-बालिके, अभी तुम छोटी हो इसलिए मुझे नहीं जानती। घर में कोई बड़ा हो तो उसको भेजो। वह मुझे देखते ही पहचान लेंगे। मैं बहुत विद्वान व्यक्ति हूं। कालिदास के बड़बोलेपन और घमंड भरे वचनों से अप्रभावित बालिका बोली-आप असत्य कह रहे हैं। संसार में सिर्फ 2 ही बलवान हैं और उन दोनों को मैं जानती हूं। अपनी प्यास बुझाना चाहते हैं तो उन दोनों का नाम बताएं।
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थोड़ा सोचकर कालिदास बोले-मुझे नहीं पता, तुम ही बता दो मगर मुझे पानी पिला दो। मेरा गला सूख रहा है। बालिका बोली-वह 2 बलवान हैं अन्न और जल। भूख और प्यास में इतनी शक्ति है कि बड़े से बड़े बलवान को भी झुका दें। देखिए प्यास ने आपकी क्या हालत बना दी है। कलिदास चकित रह गए। लड़की का तर्क चंचल था। बड़े-बड़े विद्वानों को पराजित कर चुके कालिदास एक बालिका के सामने निरुत्तर खड़े थे।