Edited By Niyati Bhandari,Updated: 14 Jan, 2025 03:17 PM
Prayagraj Maha Kumbh 2025: कुम्भ की उत्पत्ति समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ी हुई है, जब देवता और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया, तब जो अमृत निकला उसको पीने के लिए दोनों पक्षों में युद्ध हुआ, जो 12 दिनों तक चला था। ये बारह दिन पृथ्वी पर बारह...
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Prayagraj Maha Kumbh 2025: कुम्भ की उत्पत्ति समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ी हुई है, जब देवता और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया, तब जो अमृत निकला उसको पीने के लिए दोनों पक्षों में युद्ध हुआ, जो 12 दिनों तक चला था। ये बारह दिन पृथ्वी पर बारह वर्षों के बराबर थे इसलिए कुम्भ का मेला 12 वर्षों में लगता है।
कुंभ का अर्थ होता है ‘कलश’। जब देवताओं और दानवों ने मिल कर समुद्र मंथन किया तब समुद्र से 14 दुर्लभ रत्न प्रकट हुए। इनमें अमृत से भरा कलश भी प्रकट हुआ। इस अमृत कलश को प्राप्त करने के लिए देवताओं और दानवों में धरती पर 12 वर्षों तक युद्ध होता रहा। इस युद्ध के दौरान अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरीं।
ये बूंदें प्रयाग और हरिद्वार में गंगा जी में, उज्जैन में शिप्रा तथा नासिक में गोदावरी नदी में गिरीं। बारह वर्ष तक चले युद्ध के कारण बारह वर्षों के अंतराल के बाद इन सभी स्थानों पर कुंभ का योग बनता है जबकि हरिद्वार तथा प्रयाग में छ: वर्षों के बाद अर्थात अर्ध कुंभ का योग बनता है।
जब दुर्वासा ऋषि के श्राप से देवता शक्तिहीन हो गए तथा दैत्य राज बलि का तीनों लोकों में स्वामित्व था। तब देवताओं ने भगवान विष्णु के पास जाकर प्रार्थना की और अपनी विपदा सुनाई। तब श्री भगवान बड़ी ही मधुर वाणी से बोले कि इस समय आपका संकट का काल है, दैत्य, असुर, उन्नति को प्राप्त हो रहे हैं।
अत: आप सब देवता दैत्यों से मित्रता कर लो। आप देवता और दैत्य क्षीर सागर का मंथन कर अमृत प्राप्त करो तथा उसका पान करो। तब श्री भगवान की आज्ञा से देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन कर अमृत से भरे कुंभ अथवा कलश को प्राप्त किया।