Edited By Niyati Bhandari,Updated: 17 Jan, 2025 03:05 PM
Maha Kumbh 2025: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में संगम के तट पर अक्षयवट स्थित है। यह हिंदू धर्म के पावन वृक्षों में से एक है। अक्षय का अर्थ होता है, जिसका कभी क्षय न हो। अत: यह पेड़ अजर-अमर है। जब से धरती होंद में आई, तभी से ये पावन वृक्ष भी यहां...
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Maha Kumbh 2025: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में संगम के तट पर अक्षयवट स्थित है। यह हिंदू धर्म के पावन वृक्षों में से एक है। अक्षय का अर्थ होता है, जिसका कभी क्षय न हो। अत: यह पेड़ अजर-अमर है। जब से धरती होंद में आई, तभी से ये पावन वृक्ष भी यहां विराजित है। आप भी महाकुंभ प्रयागराज में आस्था की डूबकी लगाने जा रहे हैं तो इस वट वृक्ष के दर्शन करना न भूलें। आईए जानें, इस पेड़ से जुड़ी पूरी जानकारी-
The Legend of Akshay Vat अक्षय वट की पौराणिक कथा
अक्षय वट भारत के प्रयागराज (प्राचीन काल में इलाहाबाद) में संगम तट पर स्थित एक विशाल और पवित्र बरगद का वृक्ष है। इसे अमरता और सृष्टि के चिरस्थायी चक्र का प्रतीक माना जाता है। अक्षय वट से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं और रहस्यमय कथानक हैं। यहां एक ऐसी कथा प्रस्तुत है:
कथा प्रलय और अक्षय वट की अमरता:
जब सृष्टि की रचना के बाद पहली बार प्रलय आया, तो पूरी पृथ्वी जलमग्न हो गई। भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार धारण कर वेदों की रक्षा की। इस समय केवल अक्षय वट का वृक्ष ही था, जो प्रलय की विनाशकारी जलधारा में भी अडिग और स्थिर खड़ा रहा।
कहा जाता है कि भगवान शंकर ने इस वृक्ष को अमरता का वरदान दिया था। उन्होंने कहा था, "यह वट वृक्ष सृष्टि के हर प्रलय का साक्षी बनेगा और इसकी जड़ें कभी नष्ट नहीं होंगी।"
यही कारण है कि इसे अक्षय यानी जिसका क्षय न हो कहा जाता है।
अक्षय वट की अन्य कथा सृष्टि के चक्र का केंद्र:
एक और कथा के अनुसार, ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना के समय अक्षय वट को ऊर्जा का केंद्र बनाया। उन्होंने इसे ऐसा स्थान बताया जहां तीनों लोकों की शक्तियां एकत्रित होती हैं। यह भी कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस वृक्ष की छाया में ध्यान करता है, उसे मोक्ष प्राप्त होता है।
भगवान श्रीकृष्ण और अक्षय वट की कथा, बालक भगवान श्रीकृष्ण का खेल:
कथाओं में उल्लेख है कि बाल भगवान श्रीकृष्ण ने अपने बालपन में ब्रह्मांड को अपने मुख में धारण किया था। ऐसा ही एक दृश्य अक्षय वट के नीचे भी प्रकट हुआ था। यशोदा मैया ने जब बाल कृष्ण को यहां खेलते हुए देखा, तो उन्हें सृष्टि के विराट रूप का दर्शन हुआ। तब यशोदा ने अक्षय वट को "अमृत का साक्षी" कहा।
कथा, तपस्वियों और ऋषियों का केंद्र:
पुराणों के अनुसार, अनेक ऋषि-मुनियों ने अक्षय वट के नीचे तपस्या की। यह वृक्ष कालजयी ज्ञान और तप का प्रतीक है। कहा जाता है कि ऋषि मार्कंडेय ने यहां बैठकर भगवान शिव की आराधना की थी और उन्हें मृत्यु पर विजय का वरदान मिला।
अक्षय वट का आध्यात्मिक महत्व:
यह केवल एक वृक्ष नहीं है, बल्कि जीवन, अमरता और आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक है।
यह ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता), विष्णु (पालनकर्ता), और महेश (संहारकर्ता) की त्रिदेव ऊर्जा को अपने भीतर समेटे हुए है।
इसे देखने और इसकी पूजा करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।