Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 Feb, 2025 06:28 PM
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Maha Kumbh Mela 2025: महाकुंभ मेला जो हर 12 वर्ष में एक बार होता है, भारत के 4 प्रमुख तीर्थ स्थलों इलाहाबाद (प्रयागराज), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है। 13 जनवरी 2025 को प्रयागराज में आरंभ हुए महाकुंभ में संगम तट पर अब तक लगभग 50 करोड़...
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Maha Kumbh Mela 2025: महाकुंभ मेला जो हर 12 वर्ष में एक बार होता है, भारत के 4 प्रमुख तीर्थ स्थलों इलाहाबाद (प्रयागराज), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है। 13 जनवरी 2025 को प्रयागराज में आरंभ हुए महाकुंभ में संगम तट पर अब तक लगभग 50 करोड़ लोगों ने स्नान किया है। महाकुंभ 2025 का आखिरी स्नान 26 फरवरी महाशिवरात्रि को होगा। फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि का शुभ आरंभ 26 फरवरी को 11.08 बजे होगा और समापन अगले दिन 27 फरवरी को सुबह 08.54 पर होगा। शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव की पूजा प्रदोष काल में किए जाने का विधान है। अत: 26 फरवरी की शाम को रात्रि के 4 पहर शिवलिंग की पूजा करने से अमोघ फलों की प्राप्ति होगी।
महाकुंभ और महाशिवरात्रि का गहरा संबंध है खासकर जब महाकुंभ मेला इलाहाबाद (प्रयागराज) में होता है। महाशिवरात्रि, जो भगवान शिव के भक्तों द्वारा विशेष रूप से मनाई जाती है, महाकुंभ के समय भी एक महत्वपूर्ण पर्व होता है। इस समय महाशिवरात्रि का पर्व श्रद्धा और भक्ति के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। महाकुंभ में विशेष रूप से वह दिन जब महाशिवरात्रि पड़ती है उस दिन को शिव स्नान के रूप में मनाया जाता है। यह दिन प्रयागराज में सबसे अहम दिन होता है और लाखों श्रद्धालु भगवान शिव की पूजा और व्रत रखते हुए पवित्र नदियों में स्नान करने के लिए एकत्रित होते हैं।
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इसके अलावा महाकुंभ के दौरान शिव भक्तों का एक विशेष समूह, जिन्हें शिव अखाड़ा कहा जाता है, अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। ये अखाड़े महाशिवरात्रि के दिन अपने व्रत, तप और पूजा में शामिल होते हैं। शिवरात्रि की रात्रि को विशेष रूप से रुद्राभिषेक, रात्रि जागरण और शिव मंत्रों का उच्चारण किया जाता है, ताकि भगवान शिव की कृपा प्राप्त की जा सके।
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महाकुंभ और महाशिवरात्रि का संबंध धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दोनों ही एक ही समय पर होते हैं और एक दूसरे के पूरक होते हैं, विशेषकर उन स्थानों पर जहां शिव की पूजा अधिक होती है।
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महाकुंभ मेले का समापन एक विशेष स्नान (पवित्र नहाना) के साथ होता है, जिसे शाही स्नान कहा जाता है। महाकुंभ के समापन का प्रमुख दिन शाही स्नान होता है। यह दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसे पवित्रता और आत्मा की शुद्धि के रूप में देखा जाता है।
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महाकुंभ समापन के दिन संगम तट पर प्रमुख संत, श्रद्धालु और साधु अखाड़ों के सदस्य नदियों में स्नान करते हैं। ये स्नान धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि विश्वास किया जाता है कि संगम के पवित्र जल में डुबकी लगाने से पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। महाकुंभ का समापन एक दिव्य और आत्मिक अनुभव होता है, जो लाखों लोगों को एकजुट करता है और यह भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है।
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