Edited By Niyati Bhandari,Updated: 24 Feb, 2025 08:33 AM
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Maha Shivratri 2025: भगवान शिव के रूप अनन्त हैं उनके यथावत स्वरूप का ज्ञान किसी को नहीं है। वह काल से परे, स्वेच्छा से पुरुष रूप धारण करने वाले त्रिगुण स्वरूप एवं प्रकृति स्वरूप हैं।
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Maha Shivratri 2025: भगवान शिव के रूप अनन्त हैं उनके यथावत स्वरूप का ज्ञान किसी को नहीं है। वह काल से परे, स्वेच्छा से पुरुष रूप धारण करने वाले त्रिगुण स्वरूप एवं प्रकृति स्वरूप हैं।
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‘‘चंद्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:’’
मैं भगवान चंद्रशेखर के आश्रय में हूं तो यम मेरा क्या अहित कर सकते हैं। इस प्रकार उन्होंने भगवान शिव की आराधना कर शिव कृपा प्राप्त की। भगवान श्री राम जी ने रावण से युद्ध प्रारंभ होने से पूर्व भगवान शिव शम्भु जी की आराधना की।
‘‘नमामि शंभुं पुरुषं पुराणं नमामि सर्वज्ञ मपारभावं।’’
श्रीराम बोले- मैं पुराण पुरुष शंभु को नमस्कार करता हूं जिनकी असीम सत्ता का कहीं पार या अंत नहीं है, उन सर्वज्ञ शिव को मैं प्रमाण करता हूं।
शिवेति मंगलं नाम मुख्य यस्य निरन्तरम्। तस्यैव दर्शनादन्ये पवित्रा: सन्ति सर्वदा।।
जिसके मुख से शिव यह मंगल नाम सर्वदा निकलता है उस पुरुष के दर्शन मात्र से दूसरे प्राणी सदा पवित्र हो जाते हैं। चारों वेदों में लिंगार्चन से बढ़कर कोई पुण्य नहीं है। केवल शिवलिंग की पूजा से समस्त चराचर जगत की पूजा की जाती है। संपूर्ण शिव पुराण तथा शिव तत्व का सार है। पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय’।
ॐ नम: शिवाय’ मंत्र शिव स्वरूप है। यह पंचाक्षर मंत्र सम्पूर्ण मनोरथों की सिद्धि प्रदान करने वाला है। भगवान शिव की पूजा का विधान इतना सरल है कि वह पंचाक्षरी मंत्र और बिल्व पत्र अर्पित करने मात्र से ही संतुष्ट और प्रसन्न हो जाते हैं।
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ॐ नम: शिवाय’ मंत्र योगीजनों के लिए परम औषध रूप है। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति तथा संहार तीनों भगवान शिव के अधीन हैं लेकिन भगवान शिव दुखों को हरने वाले हैं। अत: भगवान शिव का स्वरूप कल्याणकारक है जिस प्रकार लोक कल्याण के लिए समुद्र मंथन के समय भयंकर हलाहल विष को भगवान शिव ने कंठ में धारण किया और नीलकंठ कहलाए, उसी प्रकार भोलेनाथ जी ने जगत कल्याण के लिए जो लीलाएं कीं उनसे उनके अनेकों प्रसिद्ध नाम हुए जिनमें महाकाल, आदिदेव, किरता, आशुतोष, शंकर, चंद्रशेखर, जटाधारी, नागनाथ, मृत्युंजय,त्र्यम्बक, महेश, विश्वेश, महारुद्र, नीलकंठ, महाशिव, उमापति, काल भैरव, भूतनाथ, रुद्र, शशिभूषण आदि मुख्य हैं। भगवान शिव की भक्ति शरणागत भक्तों के पाप रूपी वन को जलाने के लिए दावानल स्वरूप है।
गौरीपति मृत्युंजेश्वर भगवान शंकर समस्त लोकों के स्वामी, मोक्ष के अधिपति, श्रुतियों तथा स्मृतियों के अधीश्वर, दुर्गम भव सागर से पार कराने वाले हैं तथा भक्तों के एकमात्र आश्रय हैं। आदि शंकराचार्य भगवान शिव की स्तुति में कहते हैं।
प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ, महादेव शंभु महेश त्रिनेत्र।
शिवाकांत शांत स्मरारे पुरारे, त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य।।
हे प्रभो! हे शूलपाणे हे विभो! हे विश्वनाथ! हे महादेव! हे शम्भो! हे महेश्वर! हे त्रिनेत्र! हे पार्वतीवल्लभ! हे त्रिपुरारे! आपके अतिरिक्त न कोई श्रेष्ठ है, न माननीय है और न गणनीय है।
जयनाथ कृपासिन्धो जय भक्तार्तिभञ्जन। जय दुस्तर संसारसागरोत्तारण प्रभो।।
हे नाथ, हे भक्तों की पीड़ों का विनष्ट करने वाले कृपासिन्धो आप की जय हो। हे दुस्तर संसार सागर से पार लगाने वाले आप की जय हो।
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