Edited By Prachi Sharma,Updated: 11 Aug, 2024 07:23 AM
एक बार दुर्योधन को गंधर्वों ने बंदी बना लिया। उसके सैनिक रोते हुए युधिष्ठिर की शरण में आए। युधिष्ठिर ने भीम को
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एक बार दुर्योधन को गंधर्वों ने बंदी बना लिया। उसके सैनिक रोते हुए युधिष्ठिर की शरण में आए। युधिष्ठिर ने भीम को दुर्योधन को मुक्त कराने का आदेश दिया।
भीम यह सुनते ही क्रोध से भर उठे और बोले, “भैया आप उस पापी को मुक्त कराने की बात कर रहे हैं जिसके कारण हमें वनवास की यातनाएं झेलनी पड़ीं।
आप उस अन्यायी को छुड़ाने की बात कर रहे हैं जिसने भरी सभा में द्रौपदी के चीर हरण का आदेश दिया था। भैया, ऐसे दुष्ट को छुड़ाने मैं नहीं जाऊंगा।”
यह सुनकर युधिष्ठिर की आंखें भर आईं। अर्जुन यह सब चुपचाप सुन रहे थे। उन्हें युधिष्ठिर की भावनाओं को समझने में देर नहीं लगी।
वे दुर्योधन के प्रति अपने वैर भाव को भूल गए और चुपचाप गांडीव उठाकर चल पड़े।
उन्होंने गंधर्वों को पराजित कर दुर्योधन को छुड़ा लिया। इस पर धर्मराज युधिष्ठिर बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने अपने भाइयों को समझाया-“हम पांच पांडव और एक सौ कौरव भले ही आपस में लड़ते-झगड़ते हैं मगर बाहर वालों के लिए तो हम एक सौ पांच भाई हैं।’
‘‘कोई भी बाहरी ताकत हम में से किसी पर हमला करती है तो हमें उससे संघर्ष करना चाहिए।”
युधिष्ठिर की इस बात को सुनकर भीम लज्जित हो गए।