Edited By Niyati Bhandari,Updated: 22 Nov, 2021 12:21 PM
जब धर्मराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ आयोजित किया तो उसमें दूर-दूर तक के राजाओं और आम लोगों को आमंत्रित किया गया। चूंकि यज्ञ व्यापक स्तर पर हो रहा था, इसलिए काम भी अधिक था।
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Mahabharat: जब धर्मराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ आयोजित किया तो उसमें दूर-दूर तक के राजाओं और आम लोगों को आमंत्रित किया गया। चूंकि यज्ञ व्यापक स्तर पर हो रहा था, इसलिए काम भी अधिक था।
Rajsuya Yagh: युधिष्ठिर ने सोचा कि यदि यज्ञ से संबंधित कार्यों को विभिन्न व्यक्तियों के मध्य विभाजित कर दिया जाए तो आयोजन की समस्त व्यवस्थाएं ठीक से हो पाएंगी और आयोजन भी सुचारू रूप से सम्पन्न हो सकेगा। न कोई कमी रहेगी और न ही आमंत्रित व्यक्तियों को कोई असुविधा। उन्होंने स्वयं कुछ काम अपने जिम्मे रख कर शेष कार्य चारों भाइयों, पत्नी द्रौपदी, माता कुन्ती और अन्य सहयोगियों में बांट दिया।
Krishna gyan: जब समस्त कार्यों का विभाजन हो गया और सभी ने अपना कार्य पूर्ण समर्पण के साथ निष्पादित करने का आश्वासन दिया, तभी योगेश्वर श्री कृष्ण वहां उपस्थित हुए।
उन्होंने धर्मराज से कहा, ‘‘आपने यज्ञ की सुचारू रूप से सम्पन्नता के लिए सभी को कुछ न कुछ काम सौंपा है। मुझे भी कोई काम दीजिए। मैं यूं ही हाथ पर हाथ धरे तो नहीं बैठ सकता।’’
युधिष्ठिर सहित सभी पांडव श्री कृष्ण के प्रति अत्यंत श्रद्धा भाव रखते थे इसलिए युधिष्ठिर ने उनसे आग्रह किया, ‘‘आपकी कृपा के बिना तो कुछ भी संभव नहीं है। आपके लिए हमारे पास कोई काम नहीं। बस आप तो विराजमान होकर देखते रहिए कि सभी लोग अपने-अपने कार्य ठीक ढंग से कर रहे हैं या नहीं।’’
श्री कृष्ण बोले, ‘‘मैं बिना कार्य के तो रह ही नहीं सकता। कोई काम तो मेरे लायक अवश्य होगा।’’
युधिष्ठिर हंस कर बोले, ‘‘मेरे पास तो आपके लिए कोई काम नहीं है। यदि आपको कुछ करना ही है तो आप स्वयं अपना काम तलाश लीजिए।’’
श्री कृष्ण बोले, ‘‘तो ठीक है मैंने अपना काम खोज लिया।’’
युधिष्ठिर ने पूछा, ‘‘क्या काम खोज लिया आपने क्षण भर में?’’
श्री कृष्ण ने कहा, ‘‘मैं सभी की जूठी पत्तलें उठाऊंगा और सफाई करूंगा।’’
यह सुनकर युधिष्ठिर हैरान रह गए। फिर उन्होंने श्री कृष्ण को रोका किन्तु उन्होंने यज्ञ के दौरान इस सेवा कार्य को किया और असीम सुख पाया। सेवा परम आदर्श है। यह दूसरों के प्रति वह सद्भाव है जो लोक कल्याण को साकार करता है।