Edited By Niyati Bhandari,Updated: 28 Apr, 2022 08:58 AM
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श्रीकृष्ण का शांति संदेश ठुकराने के बाद कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध निश्चित हो गया था। कुरुक्षेत्र के मैदान में सेनाएं आमने-सामने
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Mahabharata: श्रीकृष्ण का शांति संदेश ठुकराने के बाद कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध निश्चित हो गया था। कुरुक्षेत्र के मैदान में सेनाएं आमने-सामने आ खड़ी हुईं। युद्ध से पहले युधिष्ठिर ने अपने शस्त्र रथ में रख दिए। फिर रथ से उतरे और पैदल सामने खड़ी कौरवों की सेना की ओर चल दिए। युधिष्ठिर को यूं नि:शस्त्र प्रतिपक्ष की ओर जाते देख श्रीकृष्ण सहित चारों छोटे भाई आश्चर्य में पड़ गए। युधिष्ठिर सीधे भीष्म के पास पहुंचे। उन्होंने भीष्म को प्रणाम किया और युद्ध की आज्ञा मांगी। फिर युधिष्ठिर द्रोणाचार्य के पास पहुंचे, आशीर्वाद लिया और फिर उन पर विजय का उपाय पूछा। द्रोण ने बताया कि यदि किसी प्रियजन की मृत्यु का समाचार मिले तो उस अवस्था में मेरा वध संभव है। फिर युधिष्ठिर कुलगुरु कृपाचार्य के पास पहुंचे और उनसे भी उन पर विजय का उपाय पूछा।
कृपाचार्य ने कहा, ‘‘मैं अवध्य हूं लेकिन मैं तुम्हारी विजय की प्रार्थना करूंगा।’’
युधिष्ठिर अपने मामा शल्य के पास पहुंचे तो उन्होंने भी आशीर्वाद दिया। यह भी भरोसा दिलाया कि कर्ण को लगातार निष्ठुर वचन कह कर मैं युद्ध भूमि में उसे हतोत्साहित करूंगा।
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चारों बड़ों का आशीष लेकर युधिष्ठिर लौटे और युद्ध का शंखनाद किया। सभी जानते हैं इसके बाद युद्ध में पांडवों की विजय हुई।
युधिष्ठिर ने प्रारंभ में ही शत्रु पक्ष में खड़े बड़ों को अपनी विनम्रता से पराजित कर दिया था जो विजय का आशीर्वाद न दे सके उन्होंने अपनी मृत्यु के उपाय बताए।
पांडवों को भरोसा हुआ कि विनम्रता से किस तरह अपनी विजय सुनिश्चित की जा सकती है। अच्छा तो यह हो कि हमारी किसी से शत्रुता ही न हो। यदि शत्रु सामने आ भी जाए तो हम उसके प्रति विनम्रता का आचरण करें तो शत्रु से भी विजय का आशीष ले सकते हैं।
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