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इन अद्भुत चीज़ों से करते हैं महादेव श्रृंगार, जानें क्या है इसका महत्व

Edited By Jyoti,Updated: 09 Jul, 2019 12:51 PM

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अपनी वेबसाइट के माध्यम हम आपको बता चुके हैं कि 17 जुलाई से सावन का महीने शुरु हो रहा है। इस पूरे माह में सभी देवों के प्रिय महादेव की पूजा होती है

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अपनी वेबसाइट के माध्यम हम आपको बता चुके हैं कि 17 जुलाई से सावन का महीने शुरु हो रहा है। इस पूरे माह में सभी देवों के प्रिय महादेव की पूजा होती है। ज्योतिष शास्त्र में इस पूरे माह के लिए अलग-अलग उपाय, विभिन्न प्रकार की पूजन विधि और मंत्र आदि दिए गए हैं। यूं तो हिंदू धर्म के अनुसार साल के हर माह का बहुत महत्व होता है क्योंकि प्रत्येक माह का धार्मिक दृष्टि से अपना अलग महत्व होता है। मगर सावन का महीना भोलेनाथ के भक्तों के लिए बहुत ही खास महत्व रखता है। अब ऐसा हो भी क्यों न भोलेनाथ हैं ऐसे। इनका मनमोहक व भोलारूप सब के मन को भाता है। जब भी हम भोलेनाथ को याद करते हैं तो इनका एक अद्भुत और वैरागी स्वरूप हमारे ज़हन में आ जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि न जाने कितनी ही विचित्र चीज़ों को अपने श्रृंगार के रूप में महादेव ने धारण किया हुआ हैं जिनका कोई न कोई प्रतीक है।

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आईए जानते हैं भगवान शिव के श्रृंगार के पीछे का सत्य और महत्व-
भस्म
सबसे पहले बारी आती है भस्म की। शास्त्रों के अनुसार ये शिव जी का प्रमुख श्रृंगार है। कहते हैं एक और जहां यह दर्शाता है कि कैसे परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको ढालना चाहिए। तो वहीं दूसरी ओर भस्म लगाने का वैज्ञानिक कारण यह है कि ये शरीर के रोम छिद्रों को बंद कर देती है। जिससे शरीर अधिक सर्दी में सर्दी और गर्मी में अधिक गर्मी नहीं लगती।

रुद्राक्ष
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव ने संसार के उपकार के लिए कई वर्षों तक तप किया था। जब बहुत सालों के बाद उन्होंने अपनी आंखें खोली तो उनके नेत्र से कुछ आंसू ज़मीन पर गिर गए। जिससे रुद्राक्ष वृक्ष की उत्पत्ति हुई। कहा जाता है सच्चे मन से भगवान भोले की आराधना करने के बाद जो भी भक्त रुद्राक्ष धारण करता लेता है उसके तन-मन में सकारात्मकता का संचार होता है।

नागदेवता
पुराणों में वर्णन है भगवान शिव जी गले में जो नाग देवता सुशोभित हैं समुद्र-मंथन के समय इन्होंने रस्सी के रूप में काम करते हुए सागर को मथा था। वासुकी नामक यह नाग भगवान शिव का परम भक्त था। कहा जाता है इनकी भक्ति से ही प्रसन्न होकर भोलाथ ने उन्हें अपने गले में आभूषण की तरह लिपटे रहने का वरदान दिया।

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खप्पर
शास्त्रों के अनुसार इसका मतलब है कि अगर हमारे द्वारा किसी का भी कल्याण होता है, तो उसको प्रदान करना चाहिए।

पैरों में कड़ा
शिव जी के पैरों के कड़े स्थिरता और एकाग्रता को दर्शाते हैं।

डमरू
शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव के हाथों में विद्यमान डमरू जब बजता है तो आकाश, पाताल एवं पृथ्वी एक लय में बंध जाते हैं।

त्रिशूल
त्रिशूल सत, रज और तम गुणों के सांमजस्य को दर्शाता है। यह दर्शाता है कि इनके बीच सांमजस्य के बिना सृष्टि का संचालन सम्भव नहीं है।

शीश पर गंगा
पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब पृथ्वी की विकास यात्रा के लिए माता गंगा का आवाहन किया गया तब शिव जी ने मां गंगा को अपनी जटाओं में स्थान दिया। इससे ये पता चलता है कि दृढ़ संकल्प के माध्यम से किसी भी अवस्था को संतुलित किया जा सकता है।

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चन्द्रमा
भगवान शंकर का स्वभाव से शीतल चंद्रमा को धारण करने का अर्थ है कि कितनी भी कठिन परिस्थिति क्यों न हो, लेकिन मन को हमेशा ठंडा ही रखना चाहिए।
 

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