Edited By Niyati Bhandari,Updated: 10 Oct, 2022 08:50 AM
महाकाल कोरिडोर बनकर तैयार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11 अक्तूबर को इसके पहले चरण का उद्घाटन करेंगे। राज्य सरकार ने 900 मीटर से अधिक लंबे इस गलियारे का नाम महाकाल लोक रखा है। इसके
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Mahakal Lok Lokarpan: महाकाल कोरिडोर बनकर तैयार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11 अक्तूबर को इसके पहले चरण का उद्घाटन करेंगे। राज्य सरकार ने 900 मीटर से अधिक लंबे इस गलियारे का नाम महाकाल लोक रखा है। इसके दो भव्य द्वार हैं जिन्हें नंदी द्वार और पिनाकी द्वार कहा जाता है। पहले चरण का निर्माण 350 करोड़ रुपए की लागत से हुआ है। उज्जैन पांच हजार साल से अधिक पुराना नगर है। यह कालगणना का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। इसलिए यहां के प्रधान देवता श्री महाकाल हैं। गुरु सांदीपनि से यही श्रीकृष्ण ने विद्या अध्ययन किया था। महाकाल का अद्वितीय सांध्य आरती चित्रण कालिदास ने मेघदूत में किया है।
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शक्तिपीठ : हरसिद्धि मंदिर
उज्जैन में शक्तिपीठ भी है। महाकाल वन में स्थित हरसिद्धि मंदिर जिस जगह पर है वहां माना जाता है कि देवी सती के दाहिने हाथ की कोहनी गिरी थी।
रंगीन रोशनियां
महाकाल कोरिडोर में रंगीन रोशनियों और फव्वारों से अनोखी छटा दी गई है। रात्रि में यह नजारा अद्भुत लगता है।
परिसर में अनेक मंदिर
महाकाल गलियारे के इस दिव्य परिसर में 36 मंदिर हैं। इनमें लक्ष्मी नृसिंह मंदिर, ऋद्धि-सिद्धि गणेश, श्रीराम दरबार, विट्ठल पंढरीनाथ मंदिर, अवंतिकादेवी, चंद्रादित्येश्वर, साक्षी गोपाल, मंगलनाथ, अन्नपूर्णा देवी, ओंकारेश्वर महादेव, प्रवेश द्वार के गणेश, वांच्छायन गणपुत, सती माता मंदिर, नागचंद्रेश्वर, सिद्धि विनायक, श्री सिद्धदास हनुमान, स्वप्रेश्वर महादेव, बृहस्पतेश्वर महादेव, नवग्रह मंदिर, त्रिविष्टपेश्वर महादेव, मारुतिनंदन हनुमान, मां भद्रकाल्ये मंदिर, श्रीराम मंदिर, नीलकंठेश्वर, शिव की प्राचीन प्रतिमाएं, सूर्यमुखी हनुमान, वीरभद्र, लक्ष्मीप्रदाता मोढ़ गणेश मंदिर, प्राचीन नागबंध, कोटेश्वर महादेव, अनादिकल्पेश्वर महादेव, दक्षिणी मराठों का मंदिर, सिद्ध तंत्रेश्वर महादेव, चंद्रमौलेस्वर, सप्तऋषि मंदिर शामिल हैं।
वृषभ वाहन भगवान
वृषभ भगवान शिव का वाहन है। मान्यता है कि वृषभ पर ही वे देवी पार्वती के साथ विराजमान होकर संध्याकाल में कैलाश से निकलकर तीनों लोकों का अवलोकन करते हैं।
भस्म आरती
प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में गाय के उपलों की भस्म अर्पित की जाती है। आरती से पूर्व जल अर्पित करने को पुरुषों को रेशमी धोती और महिलाओं को साड़ी में ही गर्भगृह जाने की अनुमति है। 16 पुजारी परिवार ही इस आरती के लिए अधिकृत हैं। महाशिवरात्रि पर्व के दूसरे दिन फाल्गुन अमावस्या को सेहरा उतरने के बाद साल में केवल एक बार भस्म आरती दोपहर को होती है।