Edited By Jyoti,Updated: 18 Sep, 2022 08:52 AM
जिस तरह इस वर्ष जन्माष्मटी के व्रत को लेकर देशभर में असमंजस में थे, ठीक उसकी तरह इस बार भाद्रपद मस में पड़ने वाले महालक्ष्मी व्रत के समापन के लेकर लोगों कन्फ्यूजन
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जिस तरह इस वर्ष जन्माष्मटी के व्रत को लेकर देशभर में असमंजस में थे, ठीक उसकी तरह इस बार भाद्रपद मस में पड़ने वाले महालक्ष्मी व्रत के समापन के लेकर लोगों कन्फ्यूजन रही है जहां कुछ लोगों ने 3 सितंबर से शुरू हुए इस महालक्ष्मी व्रत का समापन 17 सितंबर को किया है तो वहीं कुछ लोग आज यानि 18 सितंबर को कर रहे हैं। बता दें प्रत्येक वर्ष पितृ पक्ष की अष्टमी तिथि में महालक्ष्मी व्रत का समापन होता है। इसी के उपलक्ष्य में आज हम आपको बताने जा रहे हैं महालक्ष्मी व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा। कहा जाता है जो महिलाएं इस दौरान व्रत करती हैं उनके लिए व्रत का फल पाने के लिए इस कथा को पढ़ना या इसका श्रवण करना अधिक जरूरी माना गया है। तो चलिए बिना देरी किए जानते हैं क्या है महालक्ष्मी व्रत कथा-
प्राचीन समय की बात है किसी गांव में एक ब्रह्मण रहता था। वह नियमित रूप से भगवान विष्णु जी की अराधना करता था। एक दिन उस ब्राह्मण के पूजा-पाठ से विष्णु जी ने खुश होकर उसे दर्शन दिए और वर मांगने के लिए कहा। तब ब्राह्मण ने उनसे वर मांगा कि लक्ष्मी जी मेरे घर में निवास करें। ब्राह्मण का वर सुनने के बाद भगवान विष्णु जी ने उन्हें लक्ष्मी जी की प्राप्ति का मार्ग बताया और कहा कि मंदिर के समक्ष एक स्त्री आती है, जो यहां आकर उपले थापती है, तुम उसे अपने घर आने के लिए निमंत्रित करना, वही देवी लक्ष्मी हैं। जब धन की देवी तुम्हारे घर आएगी तो तुम्हारा घर धन व धान्य से भर जाएगा। इतनी बात कहकर विष्णु जी अंतर्ध्यान हो गए। अगले सुबह ब्राह्मण मंदिर के बाहर जाकर बैठ गया। जब लक्ष्मी जी उपले थापने के लिए आई तो ब्राह्मण ने उनसे अपने घर पधारने का निवेदन किया। ब्राह्मण की बात सुनकर लक्ष्मीजी समझ गईं, कि यह सब विष्णुजी के आज्ञा के चलते हो रहा है।
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लक्ष्मी मां ने उस ब्राह्मण से कहा कि मैं तुम्हारे घर चलूंगी लेकिन उससे पहले तुम्हें महालक्ष्मी व्रत करना होगा। 16 दिनों तक व्रत करने और 16वें दिन रात्रि को चंद्रमा को अर्घ्य देने से तुम्हारी अभिलाषा पूरी होगी। ब्राह्मण ने धन की देवी के कहे अनुसार व्रत और पूजन किया और देवी को उत्तर दिशा की ओर मुंह करके पुकारा। इसके बाद देवी लक्ष्मी ने अपना वचन पूरा किया। मान्यता है कि उसी दिन से इस व्रत की परंपरा शुरू हुई थी।